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देश को काफी उम्मीदें... मृदुभाषी, सरल और स्वतंत्र विचारों के धनी हैं न्यायमूर्ति उदय ललित

डिजिटल डेस्क, नागपुर। भारत के 49वें मुख्य न्यायाधीश उदय ललित नागपुर पहुंचने वाले हैं। 3 सितंबर को हाईकोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा उनका सत्कार समारोह आयोजित किया गया है। न्या.ललित का नागपुर से घनिष्ठ संबंध रहा है। उन्होंने यहां बचपन बिताया है, तो वहीं वकील रहते समय उनका नागपुर के विधि जगत से अच्छा खासा संपर्क रहा है।
खासियत... पद का कभी गुमान नहीं किया, हर जिम्मेदारी बखूबी निभाई
न्या.उदय ललित के पिताजी उमेश ललित बॉम्बे हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायमूर्ति थे। तब मेरे पिता भी हाईकोर्ट में जज थे। इस कारण हमारे पारिवारिक संबंध थे। इस दौरान देश में आपातकाल लागू था। अदालत के काम भी कड़ी निगरानी में होते थे। इसके बावजूद न्या.उमेश ललित काफी स्वतंत्र और निर्भीक जज थे। उनके बेबाक अंदाज के कारण ही तत्कालीन सरकार ने उन्हें ज्यादा दिन काम नहीं करने दिया। इसके बाद उनका परिवार दिल्ली शिफ्ट हो गया। मेरे वकालत शुरू करने के बाद कई बार उनसे संपर्क हुआ। इससे ये तो कह ही सकता हूं कि न्या.उदय ललित एक मृदुभाषी और सुशील व्यक्तित्व के धनी हैं। अपने पद का कभी गुमान नहीं किया। वो एक माने हुए वकील थे, तब भी उन्होंने अपनी शक्ति का कभी दुरुपयोग नहीं किया। न्या.ललित देश के ऐसे चुनिंदा वकीलों में से है, जिन्हें सीधे सर्वोच्च न्यायालय का जज बनने का मौका मिला। अब तक उन्होंने ये जिम्मेदारी बखूबी निभाई और आगे भी निभाते रहेंग- आशुतोष धर्माधिकारी, अधिवक्ता
मानधन की परवाह नहीं की
न्या.ललित को मैं 86 के दशक से जानता हूं। सर्वोच्च न्यायालय में जब वो वकालत करते थे, तो मुकदमों के सिलसिले में कई बार उनसे संपर्क में आया और मित्रता गहरी होती गई। न्या.ललित जज बनने के पहले नामी वकील रह चुके हैं। कई हाईप्रोफाइल मुकदमे उनके पास रहे हैं। लेकिन जब उन्हें कोई मामला जंच जाता, तो वो मानधन की परवाह किए बगैर उस मुकदमे को जीतने के लिए जी-जान लगा देते थे। बात वर्ष 2014 के आसपास की है। जब अमरावती के प्रसिद्ध अम्बादेवी देवस्थान की जमीन की औने-पौने दामों में बिक्री कर दी गई थी। मैं देवस्थान का वकील था और सर्वोच्च न्यायालय में मुकदमा लड़ने के लिए हमने तत्कालीन वरिष्ठ अधिवक्ता उदय ललित को जिम्मेदारी सौंपी थी। ये वो दौर था जब ललित देश के चर्चित वकील थे और एक दिन में उनके 20-20 बड़े मामले सर्वोच्च न्यायालय में लगा करते थे। उस वक्त देवस्थान की ओर से उतना मानधन भी नहीं मिलता था। मुझे याद है कि अपने कमिटमेंट के कारण एड.ललित सभी मुकदमे छोड़ कर देवस्थान का मुकदमा लड़ने पहुंचे थे। ऐसा ही किस्सा 90 के दशक का है, जब अमरावती जिलाधिकारी कार्यालय के उत्तम लेवरकर ने राजेश पांडे व अन्य के खिलाफ मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया। अमरावती न्यायालय ने प्रतिवादियों के खिलाफ समन जारी किया। इसे नागपुर खंडपीठ में चुनौती देने पर भी जब राहत नहीं मिली, तो मामला सर्वोच्च न्यायालय तक गया। मैं इसमें प्रतिवादियों का वकील था और तत्कालीन वकील उदय ललित को हमने यह मुकदमा सौंपा। सर्वोच्च न्यायालय से अंतरिम राहत मिलने के बाद लंबे वक्त तक यह मुकदमा लंबित रहा। इधर सब प्रतिवादी सेवानिवृत्त भी हो गए। इस बीच हमें इस मुकदमे की फीस मिलनी भी बंद हो गई। इसके बावजूद एड.ललित इस मुकदमे को आखिर तक लड़ते रहे। अंतत: नतीजा हमारे पक्ष में आया और यह देश का एक चर्चित केस-लॉ बना।
- वरिष्ठ अधिवक्ता जुगल किशोर गिल्डा, पूर्व महाधिवक्ता छत्तीसगढ़ राज्य
Created On :   2 Sept 2022 4:30 PM IST