"श्री' पर बारिश का असर, नहीं सूख रहीं मूर्तियां, दाम दोगुना से भी अधिक

The effect of rain on Shri, the idols are not drying, the price is more than double
"श्री' पर बारिश का असर, नहीं सूख रहीं मूर्तियां, दाम दोगुना से भी अधिक
नागपुर "श्री' पर बारिश का असर, नहीं सूख रहीं मूर्तियां, दाम दोगुना से भी अधिक

डिजिटल डेस्क, नागपुर। पिछले कुछ दिनों से हो रही लगातार बारिश का असर मूर्तियों के निर्माण पर होने लगा है। मिट्‌टी की मूर्तियां बनाने व सूखाने में बाधाएं आ रही हैं। दिन-रात एक करने के बाद भी यहां 75 हजार से अधिक मूर्तियों का निर्माण नहीं हो पाएगा। जिले में 3 लाख मूर्तियों की मांग होती है। यहां केवल एक लाख मूर्तियों का निर्माण होगा। बारिश के चलते इसकी भी गारंटी नहीं है। इसलिए अधिकतर मूर्ति विक्रेता पहले से बाहर से मूर्तियां लाकर संग्रहित करने लगे हैं। नागपुर के मूर्ति विक्रेता दूसरे शहरों में जाकर ऑर्डर देने लगे हैं। वे जिन शहरों में जा रहे हैं वहां भी मूर्तियों की कमी बताई गई है। लगातार बारिश का असर वहां भी हो रहा है। एक ओर मूर्तियों की कमी होगी, वहीं इसके चलते दाम महंगे होंगे।

प्रतिबंध हटाने में हुआ विलंब
सरकार ने कोरोनाकाल के दौरान गणेशोत्सव पर लगाए प्रतिबंध को हटाया है। यह प्रतिबंध मात्र गणेशोत्सव से डेढ़ महीना पहले हटाए जाने से मूर्तियों के निर्माण के लिए काफी कम समय मिला है। कम समय में अधिकाधिक मूर्तियां बनाने के लिए मूर्तिकार दिन-रात एक कर रहे हैं। इसके बावजूद मूर्तिकार अपने सालाना लक्ष्य को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। इसके पिछे सबसे बड़ी बाधा लगातार हो रही बारिश है। मूर्तियों के निर्माण के लिए अधिकतर मूर्तिकारों के पास सुविधाजनक स्थायी जगह नहीं है। 15 फीसदी को छोड़ दिया जाए तो बाकी मूर्तिकार किराए की जगह पर काम करते हैं। किसी का खुला प्लॉट या मैदान लेकर वहां पंडाल डालकर मूर्तियों का निर्माण किया जाता है।

मूर्तियां बनाना हुआ बंद
लगातार बारिश होने से जमीन में नमी आ जाती है। वहीं मूर्तियां सूखाने में भी परेशानी होती है। मूर्तियों को अाग दिखाकर सूखाया जाता है। बारिश होने के कारण मिट्‌टी की मूर्तियां पूरी तरह नहीं सूख पाती हैं। गणेशोत्सव के समय को देखते हुए अब मूर्तिकारों ने ऑर्डर लेना बंद कर दिया है। वहीं घरेलू मूर्तियों का हाल और खराब हो चुका है। 15 दिन पहले तक जितनी मूर्तियां बन सकी हैं, उतनी को ही अंतिम स्वरूप देने का काम किया जा रहा है। नई मूर्तियां बनाने का काम लगातार बारिश के चलते बंद किया गया है। इन मूर्तियों के सूखने के बाद टूट-फूट और मरम्मत करनी पड़ती है। यानी दो बार काम करना पड़ता है। मौसम को देखते हुए अब जोखिम उठाने का समय बचा नहीं है। यदि मूर्तियां पूरी तरह सूख नहीं पाईं तो उन पर रंग चढ़ाना मुश्किल होता है, कामचलाऊ काम होता है। 

दूसरे व्यवसाय से जुड़े मूर्तिकार
नागपुर जिले में मूर्तिकला से 450 से 500 लोग जुड़े हैं। इनमें से कोई 2 महीने, कोई 4 महीने, कोई 6 महीने और कोई सालभर काम करता है। जो कलाकार मूर्तिकला को कम समय देते हैं, वे दूसरे व्यवसाय करते हैं। उनके लिए गणेश मूर्तियाें का निर्माण केवल सीजनेबल होता है। छोटी मूर्तियों बनाने वाले औसत 400 से 500 व बड़ी मूर्तियां बनाने वाले अधिकतम 60 मूर्तियां बनाते हैं। प्रतिबंध हटाने के बाद से काम तेजी से शुरू हुआ है। समय कम मिलने से गणेशमूर्तियों के निर्माण का सालाना औसत प्रमाण पूरा हो पाना मुश्किल हो चुका है।

ऑर्डर बंद, घरेलू की बुकिंग शुरू : सूत्रों ने बताया कि कुछ शहरों में कच्चे मकानों में मूर्तियां बनाने वालों के यहां तैयार मूर्तियां पानी के कारण खराब हो गई हैं। अधिकतर मूर्तियां मिट्‌टी बन गई हैं। नागपुर जिले में यहां गणेशोत्सव को लेकर चार गुना जोश है। मंडलों ने मूर्तियां बुक कर रखी हैं। वहीं घरेलू ग्राहक भी अभी से मूर्तियों की बुकिंग करा रहे हैं। इसे देखते हुए यह अनुमान लगाया जा रहा है कि महंगी होने के बावजूद मूर्तियों की कमी होगी।     

मूर्तियों के जुगाड़ में दूसरे शहरों का रुख
जिले में 3 लाख मूर्तियों की मांग होती है। मांग पूरी करने के लिए बाहर से मूर्तियों का आयात करना पड़ेगा। पिछले साल शहर में लगे 270 कृत्रिम तालाबों में 1.28 लाख मूर्तियों का विसर्जन हुआ था। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में 75 हजार से अधिक मूर्तियां स्थापित होती हैं। मूर्तियों के जुगाड़ में विक्रेता पेण, मुंबई, अमरावती, बडनेरा, परतवाड़ा, अहमदनगर, पुणे, वाशिम, अकोला, कोल्हापुर आदि शहरों का रुख कर रहे हैं। कुछ विक्रेताओं ने मूर्तियां लाकर संग्रहित कर रखी हैं। नागपुर बड़ा केंद्र होने से यहां मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा सहित पूरे विदर्भ से मूर्तियों के थोक ग्राहक आते हैं। इसलिए मूर्तियों की मांग अधिक होती है। सामग्रियां महंगी होने से 30 फीसदी दाम बढ़ चुके हैं।

उत्पादन कम, मांग बढ़ी
मिट्‌टी की मूर्तियों का उत्पादन कम होता है। इस बार सरकार ने प्रतिबंध हटाने में काफी समय लगा दिया। हर जगह आधा ही उत्पादन हो पाया है। हालात यह है कि मूर्ति विक्रेताओं को नागपुर तो क्या बाहर भी मांग के हिसाब से मूर्तियां नहीं मिल पा रही हैं। वहां मूर्तियां के दाम दो साल के मुकाबले दो गुना से अधिक बताए जा रहे हैं। जिसे 500 मूर्तियां चाहिए, उसे 100 या 150 मूर्तियां ही मिल पा रही हैं। मिट्‌टी को छोड़ पीओपी की मूर्तियों का निर्माण भी मांग के हिसाब से नहीं हो पाया है। 
-विनोद गुप्ता, मूर्ति विक्रेता, नागपुर

 

Created On :   10 Aug 2022 4:18 PM IST

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