हाईकोर्ट ने पूछा- कुपोषण से होने वाली मौत को रोकने सरकार ने क्या किया?

The High Court asked- what did the government do to prevent death from malnutrition?
हाईकोर्ट ने पूछा- कुपोषण से होने वाली मौत को रोकने सरकार ने क्या किया?
हाईकोर्ट ने पूछा- कुपोषण से होने वाली मौत को रोकने सरकार ने क्या किया?

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि कुपोषण से बच्चों की मौत चिंता का विषय है। अदालत ने सवाल किया है कि सरकार ने इन मौतो को रोकने के लिए क्या कदम उठाए? अदालत ने मेलघाट की स्थिति को लेकर भी सरकार से जानकारी मांगी। सुनवाई के दौरान सरकारी वकील नेहा भिडे ने कहा कि बच्चों की मौत सिर्फ कुपोषण से नहीं हुई हैं। मानसून के दौरान मौसम की वजह से भी बच्चों की जाने जाती हैं। पिछले दिनों हमने मेलघाट में महिलाओं व बच्चों के तीन अतिरिक्त डाक्टरों की नियुक्ति की थी। इसके साथ ही समय-समय पर वहां पर चिकित्सा शिविर आयोजित किए जा रहे हैं।

एकीकृत बाल विकास योजना के तहत भी वहां पर काफी काम किया जा रहा है। वहीं याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील क्रांति एलसी ने कहा कि सरकार आंगनवाडियों की नियुक्ति को लेकर प्रभावी कदम नहीं उठा रही है। राज्य में करीब 6 हजार आंगनवाडियों के पद रिक्त हैं। इस पर सरकारी वकील ने कहा कि आदिवासियों इलाकों में आंगनवाडिया काम कर रही है। उन्होंने कहा कि इस मामले से जुड़े दस्तावेज फिलहाल उनके पास उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन इस मामले को लेकर सरकार की ओर से उठाए गए कदमों की जानकारी विभिन्न रिपोर्टों व हलफनामों में दी गई है। इस दौरान केंद्र सरकार के वकील ने भी मामले में हलफनामा दायर करने के लिए समय मांगा। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई दो सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दी और अगली सुनवाई के दौरान सहयोग के लिए राज्य के महाधिवक्ता को उपस्थित रहने को कहा। 

ड्रेस कोड नहीं चाहते शिक्षक, फैसले के खिलाफ पहुंचे हाईकोर्ट
   
उधर दूसरे मामले में प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड तय किए जाने के खिलाफ बांबे हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका में दावा किया गया है कि शिक्षकों को एक खास तरह के कपड़े पहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। कोई भी कानून शिक्षकों को ड्रेस कोड के लिए बाध्य नहीं करता। लिहाजा ड्रेस कोड को लेकर सोलापुर जिला परिषद की ओर से अक्टूबर 2018 में जारी किए गए परिपत्र को निरस्त किया जाए। महाराष्ट्र राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ की सोलापुर इकाई के सचिव ने यह याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि जिला परिषद में एक प्रस्ताव पारित कर सोलापुर जिला परिषद के प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों को जिला परिषद के प्रतिक चिन्ह (लोगो) वाले काले रंग का ब्लेजर (कोट) पहनना अनिवार्य होगा। साथ ही पैंट व शर्ट का रंग स्कूल के मुख्याध्यापक को शिक्षकों की सहमति से तय करने के लिए कहा गया है। याचिका में जिला परिषद के इस परिपत्र को मनमानीपूर्ण व भेदभावपूर्ण बताया गया है। 

अनुशासन बनाए रखने के लिए फैसला 

हालांकि सोलापुर जिला परिषद के प्रस्ताव में कहा गया है कि अनुशासन के उद्देश्य से शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड तय किया गया है। याचिका में कहा गया है कि जिला परिषद के पास शिक्षकों का ड्रेस कोड तय करने का अधिकार नहीं है। सरकार की ही ऐसा कर सकती है। इसके अलावा ड्रेस कोड का नियम सिर्फ प्राथमिक स्कूल के शिक्षकों के लिए लागू किया गया है। माध्यमिक स्कूलों के शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड नहीं लागू है। इस लिहाज से जिला परिषद का निर्णय भेदभाव पूर्ण है। ड्रेस कोड वकील, शिक्षक, नर्स पुलिस व सेना के जवानों के अलावा विद्यार्थियों के लिए होता है। एक शिक्षक कि पहचान और सम्मान उसके आचरण, नैतिक मूल्यों, ज्ञान व अध्यापन से होती है, उसे ड्रेस कोड में नहीं बाधा जा सकत। आमतौर पर शिक्षक वैसे भी भडकिले व फैशनवाले कपड़े पहनने से बचते हैं। शिक्षकों को ड्रेस कोड के लिए बाध्य करना उन्हें संविधान के तहत मिली स्वतंत्रता का हनन है। याचिकाकर्ता के वकील एसबी तलेकर ने बताया कि याचिका जल्द ही सुनवाई के लिए आएगी। 

दहेज न लेने का घोषणा पत्र न देने से अधर में लटकी नौकरी

एक और मामले में दहेज न लेने का घोषणा पत्र न देने के चलते नियुक्ति पत्र मिलने के बाद भी एक शख्य की नौकरी अधर में लटक गई है। इससे परेशान बुलढाणा के रहनेवाले निलेश पसरकर ने बांबे हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका के अनुसार पसरकर जब मुंबई सिटी सिविल कोर्ट में नौकरी ज्वाइन करनेके लिए पहुंचे तो वहां के रजिस्ट्रार ने दहेज न लेने का घोषणा पत्र मांगा और उसमें पत्नी व ससूर के हस्ताक्षर लाने को कहा। लेकिन पसरकर ने यह घोषणा पत्र देने में असमर्थता जाहिर की। याचिका में पसरकर ने कहा है कि उसने सिटी सिविल कोर्ट के रजिस्ट्रार के सामने कहा कि उसकी पत्नी ने उसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है जिसमें उसने मुझ पर पांच लाख रुपए दहेज मांगने का आरोप लगाया है। इसलिए मैं दहेज न लेने के विषय में घोषणापत्र देने में असमर्थ हूं।

रजिस्ट्रार ने पसरकर की बात नहीं सुनी और उसके मामले को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के पास भेज दिया। वहां से उसे कोई राहत नहीं मिली लिहाजा उसने अधिवक्ता एसबी तलेकर के माध्य से हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि नौकरी के लिए जो विज्ञापन जारी किया गया था उसमें कही पर इस बात का जिक्र नहीं किया गया था कि नियुक्ति के बाद दहेज न लेने का घोषणा पत्र देना होगा। लिहाजा अब उसे यह घोषणा पत्र देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति अभय ओक व न्यायमूर्ति संदीप शिंदे की खंडपीठ ने याचिका पर गौर करने के बाद कहा कि वह सिविल कोर्ट को घोषणा पत्र न देने से छूट दिए जाने को लेकर किए गए आवेदन की प्रति पेश करे। यह कहते हुुए खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 3 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी। 

Created On :   21 Nov 2018 3:45 PM GMT

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