बुजुर्ग माता-पिता को प्रताड़ित करनेवाले बेटे-बहू को हाईकोर्ट ने घर खाली करने का दिया निर्देश

The High Court directed the son and daughter-in-law, who harassed elderly parents, to vacate the house
बुजुर्ग माता-पिता को प्रताड़ित करनेवाले बेटे-बहू को हाईकोर्ट ने घर खाली करने का दिया निर्देश
बच्चे की परिभाषा के दायरे में नहीं आती “बहू” बुजुर्ग माता-पिता को प्रताड़ित करनेवाले बेटे-बहू को हाईकोर्ट ने घर खाली करने का दिया निर्देश

डिजिटल डेस्क, मुंबई।  बांबे हाईकोर्ट ने बुजुर्ग  माता-पिता को प्रताड़ित करनेवाले बेटे व बहू को उनका घर खाली करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही बेटे को अपनी मां को प्रति माह 25 हजार रुपए मेडिकल खर्च व गुजारा भत्ते के रुप में देने का निर्देश दिया है। इससे पहले वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं को सुननेवाले न्यायाधिकरण ने भी माता-पिता के पक्ष में फैसला सुनाया था। जिसे न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे की खंडपीठ ने कायम रखते हुए बेटे-बहू को विलेपार्ले इलाके में स्थित तीन हजार वर्ग फुट के बंगले को खाली कर 80 वर्षीय बुजुर्ग मां को घर का कब्जा सौपने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में बहू अपनी सास को गुजारा भत्ता नहीं देगी क्योंकि वह बच्चों की परिभाषा के दायरे में नहीं आती है। 

खंडपीठ ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद पाया कि घर के मालिक माता-पिता है। जबकि बेटा गहने बनानेवाली बड़ी कंपनी में कार्यरत है और बहू पेशे से फैशन डिजाइनर है। दोनों अच्छा वेतन पाते है। बहू-बेटे की मानसिक व शारीरिक यातना से तंग आकर मात-पिता ने बुजुर्गों के कल्याण व उनकी समस्याओं को सुनने के लिए बनाए गए न्यायाधिकरण के सामने शिकायत की थी। इस बीच पिता का निधन हो गया लेकिन न्यायाधिकरण ने बहू व बेटे को 15 दिन के भीतर अपने माता-पिता का घर खाली करने का निर्देश दिया। यही नहीं बहू व बेटों को मिलकर मां को गुजारे भत्ते व मेडिकल खर्च के रुप में 25 हजार रुपए देने का निर्देश दिया। न्यायाधिकरण ने बहू-बेटे को अपने रहने का अलग इंतजाम करने का निर्देश दिया। 

न्यायाधिकरण के इस आदेश को चुनौती देते हुए बहू ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिस पर खंडपीठ के सामने सुनवाई हुई। इस दौरान बहू की ओर से पैरवी कर रही वकील ने मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑप पैरेंटस एंड सीनियर सिटीजन एक्ट 2017 की धारा 2ए का उल्लेख करते हुए कहा कि इस धारा में बच्चों की परिभाषा में बेटा,बेटी, पोता-पोती आते है। इस तरह मेरी मुवक्किल(बहू) इस धारा के दायरे में नहीं आती है। इसलिए उसे अपनी सास को गुजारा भत्ता देने के लिए नहीं कहा जा सकता है। इस दौरान बहू की वकील ने कहा कि मेरी मुवक्किल को घर खाली करने के संबंध में न्यायाधिकरण की ओर से दिया गया आदेश खामीपूर्ण है। इसलिए इसे रद्द कर दिया जाए। इसके साथ ही मेरी मुवक्किल का अपने पति के साथ भी विवाद चल रहा है।  वहीं इस दौरान मां की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि मेरे मुवक्किल के बेटे व बहू उन्हें लगातार प्रताड़ित कर रहे है। उनका जीवन मुश्किल भरा बना दिया है। उन्होंने कहा कि न्यायाधिकरण का फैसला सही है।

मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि हमे इस मामले में न्यायाधिकरण की ओर से दिया गया फैसला वैध नजर आ रहा है। चूंकि बहू बच्चों की परिभाषा के दायरे में नहीं आती है। इसलिए उसे सास को गुजारा भत्ता देने के लिए नहीं कहा जा सकता है। लिहाजा  न्यायाधिकरण के आदेश के उस हिस्से को रद्द किया जाता है जिसके तहत बहू को सास को गुजारा भत्ता देने के लिए कहा गया था।  इस तरह खंडपीठ ने न्यायाधिकरण के आदेश को कायम रखते हुए बहू की याचिका को खारिज कर दिया। 

Created On :   7 May 2022 6:57 PM IST

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