रेप पीड़ित युवती को गर्भपात की अनुमति से हाईकोर्ट का इंकार

The High Court refuses permission of abortion to rape victim
रेप पीड़ित युवती को गर्भपात की अनुमति से हाईकोर्ट का इंकार
रेप पीड़ित युवती को गर्भपात की अनुमति से हाईकोर्ट का इंकार

डिजिटल डेस्क, जबलपुर। सिवनी की रहने वाली रेप पीड़ित युवती को गर्भपात की अनुमति देने से हाईकोर्ट ने इंकार कर दिया है। कोर्ट के इस फैसले के बाद अब युवती को बच्चे को जन्म देना होगा। बता दें कि युवती की गर्भपात अनुमति की याचिका पर कोर्ट ने जबलपुर मेडिकल कॉलेज की 3 महिला रोग विशेषज्ञों की टीम की रिपोर्ट आने के बाद फैसला सुनाया है। इस रिपोर्ट के अनुसार युवती के गर्भ में शिशु 28 सप्ताह से ज्यादा का है और ऐसे में गर्भपात होने पर जच्चा और बच्चा दोनों की ही जान को खतरा रहेगा। इस रिपोर्ट पर गौर करने के बाद जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की एकलपीठ ने याचिकाकर्ता युवती को गर्भपात की अनुमति देने से इंकार कर दिया।

गौरतलब है कि सिवनी जिले के बरघाट में रहने वाली एक 23 वर्षीय युवती न हाईकोर्ट में यह याचिका दायर की थी। युवती का कहना था कि गरीब परिस्थिति के कारण उसने कपड़ों की सिलाई करने का मन बनाया और बरघाट में टेलरिंग की दुकान चलाने वाले राजेश से संपर्क किया। युवती का आरोप था कि पहले से शादीशुदा राजेश ने अपने शादीशुदा होने की बात छिपाकर उसे शादी का लालच दिया और फिर उसके साथ शारीरिक भी संबंध बना लिए, जिससे वह गर्भवती हो गई। इसके बाद जब याचिकाकर्ता ने राजेश से शादी की बात कही तो वह मुकर गया। इस पर याचिकाकर्ता ने राजेश के खिलाफ बरघाट थाने में भादंवि की धारा 376 के तहत 9 दिसंबर 2017 को एफआईआर दर्ज कराई। पेट में 4 माह का गर्भ होने पर याचिकाकर्ता ने गर्भपात कराने का निर्णय लिया, लेकिन डॉक्टरों द्वारा अनुमति न दिए जाने पर यह याचिका हाईकोर्ट में दायर की गई थी। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता राहुल त्रिपाठी ने पैरवी की।

दो बार की डॉक्टरों ने जांच: इस मामले पर हाईकोर्ट ने विगत 28 दिसंबर को याचिकाकर्ता की जांच कराने के निर्देश सिवनी जिला अस्पताल के सीएमओ दो दिए थे। वहां पर 3 विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम ने याचिकाकर्ता की जांच की और रिपोर्ट देकर कहा कि यदि याचिकाकर्ता का गर्भपात कराया जाता है तो उसकी जान को खतरा रहेगा। इस रिपोर्ट पर गौर करने के बाद जस्टिस वंदना कसरेकर की एकलपीठ ने विगत 3 जनवरी को याचिकाकर्ता की जांच जबलपुर मेडिकल कॉलेज में 3 विशेषज्ञ चिकित्सकों से कराकर 48 घंटे में रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे।

जान के लिए होगा खतरनाक: जबलपुर मेडिकल कॉलेज की विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम द्वारा दी गई रिपोर्ट शासकीय अधिवक्ता अंकित अग्रवाल ने शुक्रवार को अदालत के सामने पेश की। रिपोर्ट में कहा गया कि याचिकाकर्ता के गर्भ में शिशु 28 सप्ताह से ज्यादा (करीब 7 माह) का है। याचिकाकर्ता एनिमिक (खून की कमी से पीड़ित) है। ऐसे में यदि उसका गर्भपात कराया जाता है वह याचिकाकर्ता और होने वाले बच्चे के लिए खतरा साबित होगा जिससे दोनों की जान जाने की संभावना हो सकती है।

क्या कहता है कानून
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 की धारा 3(2) (बी) में दिए गए प्रावधान के मुताबिक जिस मामले में प्रेग्नेंसी 12 सप्ताह से अधिक और 20 सप्ताह से कम हो, उस मामले में किसी रजिस्टर्ड प्रेक्टिशनर से गर्भपात की इजाजत दी जा सकती है। 

सरकार सुनिश्चित कराएगी बेहतर जीवन
हाईकोर्ट से गर्भपात की अनुमति न मिलने के बाद यह तय हो गया कि याचिकाकर्ता को अनचाहे शिशु को जन्म देना ही पड़ेगा। अब सवाल यह उठा कि जन्म लेने वाले बच्चे का क्या होगा। इस बारे में दैनिक भास्कर ने प्रदेश के महाधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव से बच्चे के भविष्य को लेकर बात की। कौरव ने बताया कि रेप पीड़ितों को लेकर मध्य प्रदेश सरकार द्वारा विभिन्न योजनाएं संचालित की जा रही हैं। सरकार इस मामले का परीक्षण करके याचिकाकर्ता और उसके जन्म लेने वाले शिशु को पूरा लाभ मुहैया कराएगी, ताकि दोनों सुरक्षित और बेहतर जीवन जी सकें। 

Created On :   5 Jan 2018 8:46 PM IST

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story