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सरकार से मिलने वाली कर्जमाफी किसानों के लिए है नाकाफी, जटिल शर्तों के चलते नहीं मिलता लाभ

लिमेश कुमार जंगम ,नागपुर। मुंबई में किसानों के ऐतिहासिक मोर्चे के बाद सरकार ने आश्वासन देकर किसानों को वापस लौटा तो दिया है लेकिन उन्हें सही मायने में सरकारी लाभ कितने प्रतिशत मिलेगा यह सवाल उठने लगा है। उल्लेखनीय है कि 30 हजार किसान संपूर्ण कर्जमाफी की मांग लेकर नाशिक से पैदल मुंबई पहुंचे। उन्हें सरकार ने कर्जमाफी का आश्वासन भी दिया है। बता दें कि इसके पूर्व 24 जून 2017 को राज्य सरकार ने कर्ज माफी का बड़ा ऐलान करते हुए 89 लाख किसानों को 34 हजार करोड़ रुपए देने की घोषणा की थी। नागपुर संभाग के ढाई लाख किसानों में अब तक 782 करोड़ रुपए बांटे गए। इसके बावजूद किसान आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। बीते आठ माह में जहां महाराष्ट्र के 1497 किसानों ने आत्महत्या कर ली, वहीं पूर्व विदर्भ के करीब 200 किसानों ने मौत को गले लगा लिया। इसमें नागपुर के 30 किसान हैं। बीते 2 माह में ही 45 किसानों ने अपना जीवन समाप्त कर दिया। कृषि क्षेत्र की बदहाली के कारण वर्ष 2001 से अब तक महाराष्ट्र में जहां 26339 किसानों की आत्महत्याएं दर्ज की गई हैं, वहीं नागपुर जिले में 710 समेत पूर्व विदर्भ में 3813 किसानों ने कर्ज से परेशान होकर मौत को गले लगा लिया।
यह है किसानों की मुख्य समस्याएं
बैंक व साहूकारों के कर्ज का बोझ
कर्ज वसूली के लिए प्रताड़ित किया जाना
लागत के मुकाबले में उत्पादन न होना
बारिश की अनियमितता व सिंचन सुविधा की कमी
कृषि बिजली बिलों में बेतहाशा बढ़ोतरी
घटिया बीजों से उत्पादन क्षमता पर बुरा असर
फसलों पर विविध बीमारियों का प्रकोप-खाद व कीट कनाशकों के बढ़ते दाम
कर्जमाफी योजना की जटिल शर्तें
न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल पाना
स्वामिनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू न करना
फॉरेस्ट राइट एक्ट-2006 में जमीन सुनिश्चित न करना
15 दिन में समिति लेती है फैसला
किसान आत्महत्या का मामला उजागर होते ही संबंधित जिम्मेदार पुलिस अधिकारी को जांच रिपोर्ट पेश करना पड़ता है। पश्चात संबंधित तहसीलदार, पुलिस अधिकारी, तहसील कृषि अधिकारी का दल घटनास्थल पर जाकर जांच कर अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी को पेश करते हैं। जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित समिति 15 दिन में बैठक लेती है, जिसमें जिप के सीईओ, एसपी, जिला कृषि अधीक्षक, एक किसान प्रतिनिधि व एक सामाजिक संस्था का प्रतिनिधि आत्महत्या के काबिल मामलों पर फैसला लेते हैं, जिसके बाद ही काबिल मामलों में मृतक के परिजनों को 30 हजार रुपए नकद एवं 70 हजार रुपए मासिक प्राप्ति योजना में बैंक में जमा कराए जाते हैं।
क्या कहता है मुआवजे का मापदंड?
जो किसान फसलों के बर्बाद होने, राष्ट्रीयकृत अथवा सहकारी बैंक के कर्ज को न चुका पाने, कर्ज वसूली से परेशान होने के कारण आत्महत्या करेगा, उसी मृतक किसान के परिवार को एक लाख रुपए के मुआवजे के काबिल माना जाएगा। मृतक किसान के नाम पर कृषि भूमि का उल्लेख होना अथवा वह परिवार का कर्ता-धर्ता होना अनिवार्य है।
किसानों को कर्जमाफी का पूरी तरह से लाभ नहीं मिलता
सरकार ने 34 हजार करोड़ की कर्जमाफी का ऐलान किया था, लेकिन अब तक केवल 13 हजार करोड़ रुपए ही रिलीज किए जा चुके हैं। पूर्व में एक करोड़ किसानों को कर्जमाफी देने की बात कही गई थी, जिसे घटाकर 49 लाख कर दिया गया। आधे से अधिक किसान इस योजना से वंचित हो गए। कर्ज में डूबे किसानों की आत्महत्याएं इसलिए नहीं रुक रही हैं, क्योंकि कृषि लागत बढ़ रही है और उत्पादन घट रहा है। फसल को उचित दाम नहीं मिलता। ऐसे में जरूरत की हर चीजों के दाम बढ़ने से वे अपने परिवार का भरण-पोषण नहीं कर पा रहे हैं। मौजूदा सरकार, पूर्व की सरकारों पर दोष मढ़ रही है, किंतु बीते 4 वर्षों में कृषि संबंधित नीतियों में ठोस बदलाव नहीं किया जा सका।{विजय जावंधिया, किसान नेता)
Created On :   13 March 2018 11:44 AM IST