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महिला का हाथ पकड़ने वाले को नहीं मिली अग्रिम जमानत

डिजिटल डेस्क, मुंबई। महिला की मर्जी के बिना केबिन में उसका हाथ पकड़ना छेड़छाड़ के अपराध के दायरे में आता है। यह बात कहते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने जिला अस्पताल के आरोपी सिविल सर्जन को अग्रिम जमानत देने से इंकार कर दिया है। आरोपी सिविल सर्जन डॉक्टर पर वहां कार्यरत एक महिला सुरक्षाकर्मी ने जबरन उसका हाथ पकड़ने, मोबाइल फोन पर आपत्तिजनक बातें करने, अनुचित तरीके से स्पर्श करने,घर पर बुलाने, नौकरी से निकालने की धमकी देने व किसी न किसी बहाने केबिन में बुलाने का आरोप लगाया था।
आरोपी सिविल सर्जन के खिलाफ पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 354ए(1) व 506 के तहत मामला दर्ज किया था। मामले में गिरफ्तारी की आशंका को देखते हुए सिविल सर्जन ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन दायर किया था। न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल ने मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद कहा कि मामले में आरोपी का आचरण अस्वीकार योग्य है। क्योंकि ड्यूटी खत्म होने के बाद रात दस बजे आरोपी को शिकायतकर्ता को फोन करने का कोई मतलब नहीं था।मामले में आरोपी की हरकते उसके इरादों को स्पष्ट करती हैं। ऐसे में यदि आरोपी द्वारा शिकायतकर्ता का हाथ पकड़ना व उसे नौकरी से निकालने की धमकी देने की बातों को संयुक्त रुप से देखा जाए तो इससे भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत अपराध उभर कर सामने आता है। इसके अलावा अन्य पीड़िताओं ने भी आरोपी के खिलाफ शिकायतकर्ता जैसे ही आरोप लगाए हैं। आरोपी पर लगे आरोप गंभीर नजर आ रहे हैं।
आरोपी की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने शिकायतकर्ता के सारे अरोपों को गलत बताया। उन्होंने कहा कि मेरे मुवक्किल को राजनीति के चलते निशाना बनाया गया है। इसके अलावा जिस दिन मामले से जुड़ा अपराध घटित होने का दावा किया गया है। उस दिन मेरे मुवक्किल कोर्ट के किसी मामले को लेकर परभणी में थे। मेरे मुवक्किल ने हाथ पकड़ने के दौरान किसी आपराधिक बल का प्रयोग नहीं किया है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि मेरे मुवक्किल ने महिला को रोका।
वहीं सरकारी वकील पल्लवी दाभोलकर ने आरोपी की जमानत का विरोध करते हुए कहा कि अस्पताल की 10 और पीड़िताओं ने आरोपी को लेकर शिकायतकर्ता जैसी परेशान जाहिर की। इस दौरान उन्होंने आरोपी द्वारा शिकायतकर्ता से फोन पर कई बार की गई आपत्तिजनक बातचीत की रिकॉर्डिंग भी पेश की। इसके अलावा न्यायमूर्ति को बताया कि आरोपी ने निचली अदालत के निर्देश के बावजूद जांच में सहयोग नहीं किया है। इसलिए आरोपी को जमानत न दी जाए।मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने व सभी पहलुओं पर विचार करने के बाद न्यायमूर्ति ने आरोपी के वकील की दलीलों के प्रति असहमति व्यक्त की और आरोपी के जमानत आवेदन को खारिज कर दिया।
Created On :   27 March 2021 5:46 PM IST