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स्मृति मंदिर को श्रद्धा स्थान मानने की कानूनी लड़ाई , हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मांगी जानकारी

डिजिटल डेस्क, नागपुर। रेशमबाग स्थित स्मृति मंदिर के आस-पास के निर्माण कार्य का विरोध करती याचिका पर हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। मामले में नागपुर महानगर पालिका और राज्य सरकार ने बीती सुनवाई में कोर्ट में सफाई दी थी कि सरकार ने स्मृति मंदिर को श्रद्धा स्थल के रूप में मान्यता दी है, इसलिए इसे पर्यटन स्थल का दर्जा दिया गया है। ऐसे में वहां नागपुर महानगर पालिका की निधि से प्रस्तावित कामकाज सही है। इस मामले में हुई सुनवाई में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और मनपा से शपथपत्र प्रस्तुत कर यह स्पष्ट करने के लिए कहा है कि यह स्थल श्रद्धा स्थान कैसे हुआ? जिसके आधार पर स्मृति मंदिर को पर्यटन स्थल का दर्जा दिया गया है। कोर्ट ने अब इस मामले को अंतिम सुनवाई के लिए दाखिल कर लिया है। मामले में याचिकाकर्ता जनार्दन मून के अधिवक्ता अश्विन इंगोले ने इसका विरोध किया है कि एक निजी स्थल को पर्यटन का दर्जा कैसे दिया जा सकता है। उसे पर्यटन स्थल का दर्जा मिलने के बाद क्या वह जगह सार्वजनिक जगह हो जाती है। इस पर कोर्ट ने सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। सरकार को यह बताने के लिए कहा गया है कि वह श्रद्धा स्थल घोषित करते समय कौन से दिशा-निर्देशों का पालन करती है, क्या निजी स्थलों को ऐसा दर्जा दिया जा सकता है।
यह है मामला
याचिकाकर्ता के मुताबिक, नागपुर महानगर पालिका की स्टैंडिंग कमेटी ने स्मृति मंदिर परिसर में सुरक्षा दीवार बनाने के लिए और यहां से सड़क बनाने के लिए 1 करोड़ 37 लाख रुपए मंजूर किए हैं। याचिकाकर्ता का इस पर विरोध है। दलील है कि आरएसएस एक गैर-पंजीकृत संस्था है। ऐसे में आरएसएस के लिए लाभकारी निर्माणकार्य करके मनपा करदाताओं के पैसों का दुरुपयोग कर रही है, जबकि अन्य जनकल्याणकारी योजनाओं के लिए मनपा के पास फंड की कमी है। उन्होंने निर्माणकार्य को अवैध बता कर इसे रद्द करने का आदेश जारी करने की प्रार्थना हाईकोर्ट से की है।
आरएसएस ने किया है किनारा
पूर्व में हाईकोर्ट में संघ की ओर से दायर शपथ-पत्र में सफाई दी गई है कि रेशमबाग स्थित स्मृति मंदिर से उनका कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कोर्ट में जानकारी दी है कि डाॅ. हेडगेवार स्मारक समिति से आरएसएस का कोई संबंध ही नहीं है। संघ का दावा है कि स्मारक समिति का गठन सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट,1960 के तहत स्वतंत्र संस्था के रूप में हुआ है। संघ के अनुसार यह याचिका महज सियासी पैंतरा है। संघ ने इसे पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन की जगह पॉलिटिकल इंट्रेस्ट लिटिगेशन बताया है। संघ की दलील है कि याचिकाकर्ता जनार्दन मून धर्मादाय आयुक्त कार्यालय में आरएसएस के नाम पर सोसायटी पंजीकृत कराने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि जनसामान्य में भ्रम पैदा किया जा सके।
Created On :   4 Oct 2018 3:47 PM IST