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राज्य सरकार ने कोविडरोधी टीके वापस लेने के मुद्दे पर नहीं लिया निर्णय

डिजिटल डेस्क , मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने इस्तेमाल न हो सके कोविडरोधी टीकों को वापस लेने के मुद्दे पर राज्य सरकार द्वारा निर्णय न लिए जाने पर अप्रसन्नता व्यक्त की है। और मामले की सुनवाई बुधवार को रखी है। इससे पहले सहायक सरकारी वकील ने कहा कि यह केंद्र सरकार से जुड़ा नीतिगत मामला है। इसलिए इस मामले में केंद्र सरकार को बुलाया जाए। इस पर न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे व न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ ने कहा कि हम मामले से जुड़े नीतिगत पहलू पर बाद में विचार करेंगे। पहले हमे यह बताया जाए कि जब पिछली सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को टीकों को वापस लेने से जुड़े निवेदन पर निर्णय लेने को कहा गया था तो उस पर फैसला क्यों नहीं किया गया। इस पर सहायक सरकारी वकील ने कहा कि उन्हें इस मामले में निर्देश लेने के लिए समय दिया जाए।
खंडपीठ के सामने पालघर जिले में स्थित एक निजी मैटरनिटी होम की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता उदय वारुंजेकर व सुमीत काटे ने कहा कि याचिकाकर्ता की ओर से अदालत के निर्देश के तहत पहले ही निवेदन दिया गया था। लेकिन फैसला लेने में विलंब हो रहा है। जिसके चलते कई कोविडरोधी टीके नष्ट हो सकते है।
याचिका में दावा किया गया है कि मैटरनिटी होम ने कोविशिल्ड के 6000 वाइल टीके खरीदे थे। इसमें से 3490 टीके शेष बच गए है। जिनकी कीमत 21 लाख 98 हजार रुपए है। 3490 में से 349 टीके दो मई 2022 तक एक्सपायर(खत्म) हो जाएगे। यह टीके नष्ट नहीं होने चाहिए इसलिए याचिकाकर्ता ने पहले राज्य सरकार के अधिकारियों से टीकों की रकम को वापस करने का आग्रह किया था लेकिन अधिकारियों ने टीकों को मुफ्त में दान के रुप में लौटाने को कहा गया है। याचिका में मांग की गई है कि राज्य सरकार को कोविडरोधी टीके को वापस लेने से जुड़ी नीति का खुलासा करने का निर्देश दिया जाए। क्योंकि इस मामले को लेकर सरकार की कोई स्पष्ट नीति नहीं है। इस विषय को लेकर सरकार की ओर से नीति न बनाना अतर्किक व मनमानीपूर्ण है।
याचिका में कहा गया है कि देश के प्रधानमंत्री व राज्य के मुख्यमंत्री व पालघर के जिलाधिरकारी ने टीकाकरण अभियान चलाने की अपील की थी। इसके मद्देनजर नालासोपारा स्थित विजयलक्ष्मी मैटरनिटी (याचिकाकर्ता) होम ने भी टीकाकरण अभियान चलाया था। याचिकाकर्ता में शुरुआत में बड़ी संख्या में वरिष्ठ नागरिकों सहित अन्य लोगों का टीकाकरण किया था। याचिकाकर्ता ने जनहित व अपने सार्वजनिक दायित्व के मद्देनजर टीकाकरण अभियान चलाया था। इसलिए टीके खरीदने में याचिकाकर्ता द्वारा खर्च की गई राशि के बारे में भी सरकार को विचार करना चाहिए। सरकार ने टीके को राष्ट्रीय संपत्ति माना है इसलिए यह सुनिश्चित होना चाहिए की टीके की एक भी खुराक नष्ट न हो। चूंकि याचिकाकर्ता ने पैसों का भुगतान करके टीके खरीदे है इसलिए इन्हें मुफ्त में वापस मांगना बिल्कुल भी न्यायसंगत नहीं है।
Created On :   19 April 2022 8:37 PM IST