महिलाओं के हौसले, जज्बे और जुनून की कहानी है 'महादवाड़ी गांव'

The story of womens fame, passion and passion is Mahadwadi village
महिलाओं के हौसले, जज्बे और जुनून की कहानी है 'महादवाड़ी गांव'
महिलाओं के हौसले, जज्बे और जुनून की कहानी है 'महादवाड़ी गांव'

डिजिटल डेस्क,चंद्रपुर। कहते हैं कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है। इस कहावत पर महादवाड़ी गांव की महिलाएं खरा उतरी हैं। अपने हुनर और प्रतिभा के दम पर नेशनल वेटरन्स एथलेटिक्स में कई खिताब अपने नाम किए हैं। एक की जगाई अलख के बाद धीरे-धीरे बीते दो दशक में दो दर्जन महिलाओं ने खेल के कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खिताब अपने नाम किए हैं।

चंद्रपुर जिला मु्ख्यालय से कोसों दूर चिमूर तहसली का दुर्गम गांव महादवाड़ी। गांव की कुल आबाजी लगभग 850 है। यहां 35 साल से अधिक उम्र की महिलाओं ने पारंपरिक महाराष्ट्रीयन ग्रामीण 'लुगड़ा' पहन कर तो कभी फुपैंट पहनकर मैदान में उतर कर हर किसी को चौंका दिया। अपने खेल के कारण अभिनेता आमिर खाने ने भी अपने शो सत्यमेव जयते में इन महिलाओं को बुलाया था।

पारखी ने तराशे हीरे
महादवाड़ी के मूलनिवासी और वेकोलि नागपुर मुख्यालय में अधीक्षक अभियंता रहे समाजसेवी संपत रामटेके ने अपने गांव की महिलाओं की प्रतिभा को तराशा और देश के सामने लाया। दरअसल 1994 में नागपुर में वेटरन महिला-पुरुषों की खेल प्रतियोगिता हुई थी। यह देखकर रामटेके को अपने गांव की महिलाएं याद आई। रामटेक ने किसी तरह गांव की महिलाओं को खेल के लिए राजी कर लिया। इस काम में उनकी डॉक्टर बेटी ने भी साथ दिया और महिलाओं को प्रेरित किया।

13 गोल्ड मेडल जीते
1995 में नागपुर में विदर्भ वेटरन्स एथलेटिक्स एसोसिएशन की विविध खेल प्रतियोगिताएं हुई। इसमें दौड़, पैदल चलना, भालाफेंक, लंबी छलांग में रमाबाई महिला मंडल की महिलाओं ने हिस्सा लिया। महिलाओं ने 4 गोल्ड के साथ कुल 12 पदक हासिल किएष। पहले साल केवल दलित महिलाओं ने शिरकत की थी। इसके बाद 10 से बढ़कर इन महिलाओं की संख्या 24 पर पहुंची। इन्हीं महिलाओं ने 4 बार नेशनल वेटरन्स एथलेटिक्स में 13 गोल्ड के साथ 42 मेडल जीते। 1998 में श्रीलंका और जापान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा के लिए 10 खिलाड़ी चुनी गईं। हालांकि आर्थिक सहायता के अभाव में वंचित रह गईं।

महादवाड़ी गांव बना आदर्श ग्राम
शुरूआत में यहां रमाबाई महिला मंडल था। इसके माध्यम से सामाजिक कार्य होते थे। गांव छोटा होने के कारण यहां जातिभेद भी अधिक रहा। महिलाएं खेत में एक-दूसरे का भोजन नहीं खाती थीं। ऐसे हालात में दलित महिलाओं ने स्वयं श्रमदान कर गांव में कुआं खोदा। गांव की सड़क के दोनों ओर पेड़ लगाएं। गांव की महिलाओं ने ही गंदगी मुक्त का नारा बुलंद किया। यहीं वजह है कि 1992 में समाजसेवी अण्णा हजारे ने महादवाड़ी गांव को आदर्श ग्राम के लिए चुना। 1994 में तत्कालीन राज्यपाल को भी इस गांव से भेंट करने के लिए आए थे।

महादवाड़ी में बनेगा दुग्ध भंडार
सरकार ने महादवाड़ी को दुग्ध भंडार बनाने 55 हजार रुपए का अनुदान दिया। 40 महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया गया। वह पूरा नहीं हो पाया। यहां नीम के पेड़ों का परकोट बनाने का सपना भी धरा का धरा रह गया है। यह पूरा करने के साथ ही इन महिलाओं में कई सदस्य बुजुर्ग और उम्रदराज हो चुकीं हैं। खेती-किसानी के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। ऐसे में संपत रामटेके का कहना है कि हर माह मानधन देने की व्यवस्था की जानी चाहिए। 

'सत्यमेव जयते' में आमिर ने सराहा
मई 2013 में ही 'सत्यमेव जयते' के लिए इन महिला खिलाडियों को बुलाया गया। किसी कारण सीजन-2 में दिखाया नहीं गया। जून 2014 में अभिनेता आमिर खान ने कहा कि पारंपारिक मराठी ग्रामीण परिधान 'लुगड़ा' में खिलाड़ियों की शूटिंग करनी चाहिए। धान की रोपाई के समय गीत गाते हुए गांव में ही शूटिंग भी हुई। इन महिलाओं ने आमिर खान के सत्यमेव जयते में शिरकत करने पहली बार हवाई जहाज की यात्रा भी की।

Created On :   26 July 2017 12:40 PM IST

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