- Home
- /
- मेडिकल में आईवीआईजी इंजेक्शन का...
मेडिकल में आईवीआईजी इंजेक्शन का टोटा

डिजिटल डेस्क, नागपुर। मेडिकल में दवाओं व इंजेक्शन का टोटा नई बात नहीं है। पिछले चार महीने से यहां आईवीआईजी नामक इंजेक्शन की कमी होने से मरीजों को बाहर से इंजेक्शन लाने पड़ रहे हैं। महात्मा ज्योतिबा फुले जनस्वास्थ्य योजना अंतर्गत राशि मंजूर होने के बावजूद इसका लाभ मरीजों को नहीं मिल रहा है। मेडिकल प्रशासन द्वारा 40 वायल का ऑर्डर देने पर मात्र 10 ही मिल पा रही है। ऐसे में मरीजों के परिजनों को बाहर से इंजेक्शन लाने के लिए हजारों रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। कोरोनाकाल में रेमडेसिविर की जमाखोरी व कालाबाजारी के कई मामले सामने आए थे। बाद में जिलाधिकारी व अन्न व औषधि प्रशासन ने इस पर नियंत्रण रखा था। आईवीआईजी के मामले में भी कृत्रिम टोटा पैदा किया गया है। जमाखोरी कर कालाबाजारी की जाने लगी है।
बाजार में कीमत 8500 से 9000 रुपए तक: मेडिकल सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार पिछले चार महीने से आईवीआईजी इंजेक्शन का टोटा है। यह इंजेक्शन जीबीएस (गुलियन बैरे सिंड्रोम) नामक बीमारी से ग्रस्त रोगियों को दिया जाता है। मेडिकल में हर महीने इस बीमारी से ग्रस्त 10 से अधिक मरीज आते हैं। गंभीर अवस्था में पहुंचे मरीजों को 20 इंजेक्शन देने पड़ते हैं। यह इंजेक्शन काफी महंगा है। वर्तमान में इसकी बाजार में कीमत 8500 से 9000 रुपए तक है। इसके बावजूद मरीजों को यह आसानी से नहीं दिया जाता। मेडिकल प्रशासन द्वारा आपूर्ति करने वाली एजेंसियों को इसका ऑर्डर दिया गया है। लेकिन 40 का ऑर्डर देने पर केवल 10 ही वॉयल देते हैं। बाद में टोटा होने या दाम बढ़ने का बहाना बनाकर आपूर्ति रोक दी जाती है।
जिला प्रशासन का नियंत्रण नहीं : दवा और इंजेक्शन के स्टॉक और दाम को नियंत्रित रखने की जिम्मेदारी जिलाधिकारी और अन्न व औषधि प्रशासन विभाग की है। कोरोनाकाल के दौरान रेमडेसिविर की जमाखोरी व कालाबाजारी के मामले उजागर हुए थे। उस समय जिलाधिकारी व अन्न व औषधि प्रशासन विभाग ने इस पर नियंत्रण रख पूरी निगरानी की थी। आईवीआईजी के मामले में भी यही स्थिति है। इसलिए इस इंजेक्शन के अलावा अन्य जीवनदायी व महंगी दवाओं व इंजेक्शन के उत्पादन, बिक्री व मरीजों तक पहुंचाने के लिए नियंत्रण की आवश्यकता जताई जा रही है।
ऑर्डर दिया लेकिन मिले नहीं : चार महीने पहले एक आपूर्तिकर्ता एजेंसी को आईवीआईजी के 40 वॉयल की आपूर्ति के लिए ऑर्डर दिया गया था। उस समय केवल 10 वॉयल ही मिल पाए थे। एजेंसी ने हाथ उपर कर लिए थे। इंजेक्शन की अनुपलब्धता और दाम बढ़ने का कारण गिनाया गया था। इसके बाद मुंबई में हाफकिन कंपनी को ऑर्डर दिया गया। इस कंपनी ने जवाब दिया कि यह इंजेक्शन फिलहाल बाजार में उपलब्ध नहीं नहीं है। कंपनी ने एक महीने का समय दिया है। इसके बाद भी मिलेगा या नहीं इसकी गारंटी नहीं है। 15 दिन पहले तीन एजेंसियों से कोटेशन प्राप्त हुआ। इनमें से एक एजेंसी को 40 वायल का ऑर्डर दिया। अब कहा जा रहा है कि आईवीआईजी उपलब्ध नहीं है।
पहले जमाखोरी फिर कालाबाजारी : सूत्रों ने बताया कि इस इंजेक्शन का कृत्रिम टोटा पैदा किया गया है। जमाखोरी की गई है। अब इसकी कालाबाजारी होने लगी है। 4 महीने पहले यह इंजेक्शन 5700 रुपए का था। 15 दिन पहले जब कोटेशन मंगाया गया था तो इसकी कीमत 6800 रुपए तय हुई थी। अब इंजेक्शन का टोटा और अनुपलब्धता बताकर इसकी कीमत 8500 से 9000 तक बताई जा रही है। चार महीने में इस इंजेक्शन की कीमत 3000 रुपए बढ़ा दी गई है। मेडिकल में इंजेक्शन उपलब्ध नहीं होने से मरीजों के परिजनों को मजबूरी में बाहर से 8500 से 9000 रुपए तक खर्च करना पड़ रहा है। इंजेक्शन की कमी दूर करने के लिए मेडिकल प्रशासन द्वारा इस हफ्ते कोटेशन मंगाए जाएंगे।
Created On :   29 Nov 2021 3:18 PM IST