मंत्रिमंडल विस्तार शीघ्र, इच्छुकों की लंबी है फेहरिस्त, चुनावी रणनीति का रहेगा असर

There is a stir in the BJP on the expansion of the state cabinet in Maharashtra
मंत्रिमंडल विस्तार शीघ्र, इच्छुकों की लंबी है फेहरिस्त, चुनावी रणनीति का रहेगा असर
मंत्रिमंडल विस्तार शीघ्र, इच्छुकों की लंबी है फेहरिस्त, चुनावी रणनीति का रहेगा असर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। राज्य मंत्रिमंडल के विस्तार को लेकर भाजपा में अंदरुनी तौर पर हलचल मची है। 13 अक्टूबर को विस्तार की संभावना व्यक्त की जा रही है। इस बीच मंत्रिपद पाने के इच्छुकों की लंबी कतार होने की खबर मिल रही है। भाजपा के अलावा अन्य दलों के नेता मंत्रिमंडल में स्थान पाना चाहते हैं। बताया जा रहा है कि विस्तार के लिए निर्णायक चर्चा हो चुकी है। इस मंत्रिमंडल विस्तार पर चुनाव तैयारी की रणनीति का प्रभाव साफ तौर पर रहेगा। जातीय समीकरण का ध्यान दिया जाएगा। साथ ही क्षेत्रीय स्थिति को भी महत्व दिया जाएगा। मंत्रिमंडल विस्तार व महामंडल पदाधिकारियों की नियुक्ति के संबंध में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस कह चुके हैं कि जल्द ही निर्णय लिया जाएगा। 

आरपीआई को मंत्रिपद तय 
मंत्रिमंडल में आरपीआई को स्थान मिलना तय है। आरपीआई अध्यक्ष व केंद्रीय राज्यमंत्री रामदास आठवले ने कहा है कि उनके दल को 6-6 माह के लिए दो मंत्रिपद मिलनेवाला है। आरपीआई के एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भी इस तरह का वादा खुले तौर पर कर चुके हैं। आरपीआई ने इस संबंध में दबाव की राजनीति भी बनाई है। दो दिन पहले ही शहर के आरपीआई की विदर्भ स्तरीय बैठक हुई। कहा गया है कि विदर्भ में आंबेडकरवादियों की संख्या को देखते हुए यहां आरपीआई को सत्ता में सम्मानजनक भागीदारी मिलना चाहिए। आरपीआई के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश थूलकर दो दिन से मुंंबई में डटे हुए हैं। 

सामाजिक समीकरण समीक्षा
बताया जा रहा है कि चुनाव तैयारी के तहत सामाजिक समीकरण का भी ध्यान रखा जा रहा है। राज्य में ओबीसी राजनीति गर्माने लगी है। कुणबी ओबीसी का मामला भी गर्म है। नाना पटोले ने भाजपा छोड़ने के बाद ओबीसी राजनीति को जोर देते हुए विदर्भ में कुणबी समाज के नेताओं को लामबंद करने का प्रयास किया है। विशेषकर पूर्व विदर्भ में कुणबी समाज के बारे में कहा जा रहा है कि उन्हें सामाजिक न्याय नहीं मिल पा रहा है। पूर्व विदर्भ से कुणबी समाज का एक भी मंत्री या सांसद नहीं है। कांग्रेस इस मामले को और अधिक तीव्र तरीके से भुनाने का प्रयास कर सकती है। लिहाजा भाजपा ने सामाजिक समीकरण की समीक्षा में कुणबी का मामला प्रमुखता से चर्चा में लाया है। सुधाकर देशमुख, परिणय फुके, सुधाकर कोहले, समीर मेघे, पंकज भोयर, संजय धोटे जैसे विधायक कुणबी समाज से संबंधित है। यह भी सुना जा रहा है कि कुछ नेताओं की नाराजगी दूर करने का प्रयास किया जा सकता है।

अमरावती के विधायक सुनील देशमुख व मलकापुर के विधायक चैनसुख संचेती को महामंडल की जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन नाराजगी दूर नहीं हो पाई। संचेती ने तो विदर्भ विकास महामंडल के अध्यक्ष पद का भार भी नहीं संभाला है।  महामंडल की जिम्मेदारी विभागीय आयुक्त ही संभाल रहे हैं। संचेती का भाजपा के संगठन कार्यों में भी अधिक सहयोग नहीं मिल पा रहा है। उधर, सामाजिक न्याय मंत्री राजकुमार बडोले व आदिवासी विकास राज्यमंत्री आत्राम के बारे में कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री उनके काम से असंतुष्ट हैं। दलित, आदिवासी समाज को प्रतिनिधित्व के तौर पर दोनों को मंत्रिमंडल में स्थान मिला है। माना जा रहा है कि उनके स्थान पर समाज के अन्य प्रतिनिधियों को स्थान मिलेगा। पूर्व नागपुर के विधायक कृष्णा खोपड़े आरंभ से ही मंत्रिमंडल में स्थान पाने के इच्छुकों में शामिल हैं।

Created On :   12 Oct 2018 2:23 PM IST

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