पूरी जमीन पाने के लिए 5000 वर्ग फीट पर 3 मंजिला भवन के प्रस्ताव को भी ठुकराया

To get the entire land, the proposal of a 3-storey building on 5000 square feet was also rejected.
पूरी जमीन पाने के लिए 5000 वर्ग फीट पर 3 मंजिला भवन के प्रस्ताव को भी ठुकराया
एनवीसीसी पूरी जमीन पाने के लिए 5000 वर्ग फीट पर 3 मंजिला भवन के प्रस्ताव को भी ठुकराया

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  नाग विदर्भ चेंबर ऑफ कॉमर्स (एनवीसीसी) के जमीन विवाद में रोज नए खुलासे हो रहे हैं। एनवीसीसी के जमीन सौदे की सच्चाई सामने आने के बाद 13 लाख से अधिक व्यापारी अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं, जो चेंबर से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हुए हैं। 2015-16 में करीब 40 हजार वर्ग फीट जमीन छोड़ने के बदले रमेश रांधड ने एनवीसीसी को एक प्रस्ताव दिया था, जिसमें 5000 वर्ग फीट पर तीन मंजिला सुसज्जित भवन बनाकर देने की बात कही थी। इसकी डिजाइन भी बन गई थी। मगर कुछ पदाधिकारियों ने यह कहकर खारिज कर दिया कि 40 हजार वर्ग फीट जमीन किसी भी हाल में नहीं छोड़ेंगे। ऐसे में वर्तमान कार्यकारिणी ने मात्र 4000 वर्ग फीट जमीन, वह भी परिसर से दूर देने पर सहमति कैसे दे दी? इस पर सवाल उठ रहे हैं। आखिर इसके लिए कौन से गोपनीय समझौते किए गए हैं, इस पर व्यापारियों के बीच जमकर चर्चा है।

3.51 करोड़ का गोपनीय सौदा पर्चे छपने पर विफल हुआ 
खास बात यह है कि रमेश रांधड कई तरह के हथकंडे अपनाकर इस जमीन को एनवीसीसी से खाली करवाना चाहते थे। चेंबर से जुड़े सूत्रों से मिली जानकारी के आधार पर वर्ष 2005 से 2007 के दौरान चेंबर के दो पदाधिकारियों ने इस जमीन को छोड़ने के लिए एक गोपनीय समझौता किया, जिसके तहत रांधड से एनवीसीसी की खरीदी जमीन के 27 शेयर मांगे गए। एक शेयर की कीमत 13 लाख थी। यानी 3 करोड़ 51 लाख में सौदा किया। यह फाइनल डील अकोला में हुई। सब कुछ प्लानिंग के हिसाब से चल रहा था कि इस गोपनीय सौदे की भनक चेंबर से जुड़े किसी पदाधिकारी को लग गई और उसने पूरी डील के पर्चे छपवाकर व्यापारियों के बीच बांट दिए। इसके कारण यह डील रद्द हो गई।

चेंबर के पदाधिकारियों का कार्यकाल अधिकतम 2 साल तय किया 
नाग विदर्भ चेंबर के सभी पदाधिकारियों का कार्यकाल केवल 2 साल, दो टर्म तक ही हो सकता है। यह नियम 31 दिसंबर 1954 को एमपी चेंबर ऑफ कॉमर्स की एजीएम में बनाया गया था। उक्त आदेश भास्कर के पास मौजूद है। इसे अपने फायदे के लिए भुला दिया गया। कुछ अध्यक्षकों ने अपने निजी हितों के लिए पूरी तरह इस नियम की अनदेखी की। इस मामले में अब वर्तमान पदाधिकारियों का कहना है कि हमें ऐसा आदेश याद नहीं। 

चेंबर के नाम जमीन खरीदने के अधिकार दिए, मगर खुद के नाम खरीद ली
नाग विदर्भ चेंबर ऑफ काॅमर्स काे वर्ष 1947 में सीपी एंड बेरार चेंबर ऑफ कॉमर्स के नाम से जाना जाता था। उस समय व्यापारियों की सभा में चेंबर के भवन के लिए जगह खरीदने का प्रस्ताव रखा गया था, जिसके लिए व्यापारियों ने बाकायदा चंदा भी जमा किया था। चेंबर के पास 14000 रुपए जमा भी हुए थे। उस समय तात्कालीन अध्यक्ष गोपालदास मोहता थे। उन्हें चेंबर की जमीन खरीदने के लिए एजीएम ने अधिकार दिए थे।  मोहता ने इन अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए एमपी चेंबर ऑफ कॉमर्स के नाम से एक नई संस्था बनाई और इसी नाम से जमीन खरीदकर अपने नाम कर ली। व्यापारी आज भी इस सौदे से ठगे महसूस कर रहे हैं। 

5000 वर्ग फीट जगह में ऑफिस निर्माण का प्रस्ताव आया था
यह सही है कि वर्ष 2014-15 में एनवीसीसी की जमीन सरेंडर करने के बदले रमेश रांधड ने 5000 वर्ग फीट जगह में ऑफिस िनर्माण को लेकर प्रस्ताव लाया था। इसकी तैयारी भी की गई थी, लेकिन इस प्रस्ताव को अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका था। वहीं 1954 में पदाधिकारियों का कार्यकाल 2 साल रखने पर पास हुए प्रस्ताव की जानकारी मुझे नहीं है। इसलिए मैं इस पर कोई टिप्प्णी नहीं कर सकता।   -अश्विन मेहाड़िया, अध्यक्ष, एनवीसीसी
 

Created On :   25 Nov 2021 3:49 PM IST

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