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यादें बन कर रह गए होली के पारंपरिक आयोजन

डिजिटल डेस्क, नागपुर। पिछले दो साल से कोरोना ने तीज-त्योहारों की खुशियां कम कर दी थीं। इस साल शहर में पर्व पर भारी उत्साह देखा जा रहा है। शहर के अति व्यस्ततम इलाका इतवारी में होली का रंग पांच दिन पहले से दिखाई देता था। यहां के सर्राफा बाजार की होली की चर्चा पूरे विदर्भ में होती थी। यहां हर साल सेठों के सेठ नाथूराम की स्थापना व उनकी बारात निकलने के साथ ही होली का पर्व शुरू हो जाता था। व्यापारी संगठन पूरी शिद्दत के साथ यह पर्व मनाते थे, लेकिन अब ऐसा माहौल दिखाई नहीं देता। करीब 8 साल से नाथूराम सेठ की स्थापना व बारात नहीं निकाली जाती है। यह प्रथा किसी कारणवश बंद करनी पड़ी है।
होली के लिए आमंत्रित करते थे
जानकारों ने बताया कि होली के दो दिन पहले इतवारी के एक भवन से बग्घी पर सेठ नाथूराम की शाही बारात निकाली जाती थी। सर्राफा बाजार व आसपास के क्षेत्र का भ्रमण करने के बाद बाजार के धर्मकांटा परिसर में स्थापना की जाती थी। यह करीब 100 साल पुरानी प्रथा थी। स्थापना के बाद इतवारी में रंग लगाओ होली शुरू हो जाती थी। इतवारी का व्यापारी वर्ग एक स्थान पर जमा होकर एक-दूसरे के प्रतिष्ठानों में जाकर उन्हें होली खेलने आमंत्रित करते थे। सभी बड़े सम्मान से रंगों से सराबोर होते थे। व्यापारी अपना प्रतिष्ठान बंद कर देते थे। उनके लिए ठंडाई व अल्पाहार का आयोजन किया जाता था।
नाथूराम की बारात के बिना होली का रंग फीका
नाथ्ूराम सेठ के बारे में मान्यता है कि किसी समय इतवारी में होली के पर्व पर सेठ नाथ्ूराम मस्ती के माहौल में निकला करते थे। हालांकि इस बारे में जितने मुंह उतनी बातें हैं। नाथूराम कौन थे, कहां के थे, इस बारे में किसी के पास कोई प्रमाण नहीं है। कोई उन्हें राजस्थान का सेठ बताते हैं, तो कोई उन्हे मध्यप्रदेश का निवासी बताते हैं। नागपुर व इतवारी के साथ उनके क्या संबंध थे, इस बारे में किसी को नहीं पता। बस दूसरे राज्यों में यह प्रथा है, इसलिए नागपुर में भी होली के पर्व पर इसकी शुरुआत की गई। 100 साल तक यह प्रथा चली। 2014 से इस प्रथा को बंद कर दिया गया। नाथूराम की लकड़ी की मूर्ति थी। जबसे यह प्रथा बंद हुई है, तबसे इतवारी की होली का रंग भी फीका हुआ है।
यहां बनती हैं होली की टोपियां
लालगंज नाईक तालाब के पास स्थित बैरागीपुरा बस्ती के 25 से अधिक बैरागी परिवार टोपियां बनाने का काम करते हैं। एक परिवार सीजन में 5 से 10 हजार टोपियां बनाता है। 10 हजार टोपी बनाने पर एक लाख रुपए का खर्च आता है। एक परिवार को 40 से 50 हजार रुपए का मुनाफा होता है। महिलाएं- बच्चे सब अपना योगदान देते हैं। यहां से पूरे विदर्भ और सीमावर्ती राज्यों में टोपियों का निर्यात होता है। पहले यहां आगरा के पंखों का आयात कर टोपियां बनाई जाती थीं, लेकिन जबसे चायनीज टोपियों ने बाजार पर कब्जा किया है, तबसे आगरा के पंखों की टोपियां बनाने का काम बंद हो गया है।
महामूर्ख सम्मेलन का आयोजन भी रुका
शहर के अनेक संगठनों द्वारा होली के अवसर पर महामूर्ख सम्मेलन का आयोजन किया जाता था। सम्मेलन में शहर के गणमान्य व्यक्तियों के अलावा कवियों को आमंत्रित किया जाता था। इस दौरान व्यक्तियों को विशेष उपाधियों से नवाजा जाता था। हास्य-व्यंग्य व हंसी-ठिठोली का कार्यक्रम होता था, लेकिन पिछले दो साल से कोरोनाकाल होने से यह आयोजन नहीं हाे पाया।
Created On :   19 March 2022 3:25 PM IST