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आदिवासी पिता ने 7 साल की बेटी के शव को 16 किमी पैदल ढोया, देखें VIDEO

डिजिटल डेस्क, सतना। केन्द्र सरकार की हालिया अति-महत्वाकांक्षी "आयुष्मान भारत योजना" भले ही गरीबों के लिए राहत की बात लेकर आई है, मगर गांवों में आज भी "स्वास्थ्य की गारंटी" नहीं है। ऐसा ही एक मामला मध्य प्रदेश के सतना जिले से सामने आ रहा है। यहां जिला मुख्यालय से तकरीबन 50 किमी दूर मझगवां के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पर एक आदिवासी पिता को शव वाहन नहीं मिला। इसके बाद वह बेबस पिता अपनी 7 साल की बेटी के शव को कंधे पर लादकर करीब 16 किलोमीटर दूर अपने गांव ले गया। उस आदिवासी परिवार का दुर्भाग्य ऐसा कि दो साल पहले भी छोटी बेटी का शव ऐसे ही हाथों में उठाकर अपने गांव ले गया था।
क्या है मामला
मलगौसा ग्राम पंचायत के रामनगर खोखला शुक्रवार-शनिवार की दरमियानी रात फूलचंद मवासी की 7 वर्षीय बेटी प्रतिज्ञा की तबियत निमोनिया के कारण बिगड़ी तो वह अपनी पत्नी बिटुलिया के साथ बेटी को लेकर मझगवां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र पहुंचा। मगर वहां कोई भी डॉक्टर प्रतिज्ञा को देखने नहीं पहुंचा। आदिवासी परिवार डॉ. संदीप चतुर्वेदी के घर पहुंचे तो आधी रात को डॉक्टर ने बड़ी मुश्किल से दरवाजा खोला। डॉक्टर ने प्रतिज्ञा का चेकअप करने के बाद मृत घोषित कर दिया। यह सुनते ही आदिवासी दंपति के सिर पर मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
न जेब में पैसा, न CHC में शव वाहन
आदिवासी दंपति के पास इतना पैसा नहीं था कि वह अपनी बेटी का शव किसी वाहन से गांव तक ले जा सके। सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र (CHC) में भी एक अदद शव वाहन नहीं है कि आदिवासी परिवार को कोई मदद मिल सकती। मजबूरी में आदिवासी परिवार तड़के 4 बजे अपनी बेटी के शव को अपने कंधे पर लादकर 16 किमी दूर अपने गांव रामनगर खोखला के लिए पैदल ही निकल पड़ा। कभी पिता अपनी बेटी का शव कंधे पर लादता तो कभी मां उसे अपने सीने से लगाकर रास्ता तय करती। बेटी के शव को लेकर वह दोपहर 12 बजे अपने गांव पहुंचे।
छोटी बेटी का भी ढोया था शव
यह इस आदिवासी परिवार का दुर्भाग्य ही है कि दो साल पहले वह अपनी छोटी बेटी का शव भी इसी तरह पैदल लेकर गांव पहुंचा था। पत्नी बिटुलिया ने बताया कि 3 साल की शीलता को चेचक निकल आए थे, उसे इलाज के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र मझगवां ले गए थे। उस समय डॉक्टरों ने कहा था कि यहां ऐसी दवाइयां उपलब्ध नहीं हैं, जिससे चेचक का उपचार किया जा सके। नतीजतन, इसी आदिवासी परिवार ने दवाइयों के नाम पर 8 हजार रुपए खर्च कर दिए थे। इसके बाद भी शीलता की जान नहीं बचाई जा सकी थी। फूलचंद प्रतिज्ञा की तरह ही अपनी छोटी बेटी का शव भी इसी तरह कंधे पर लादकर 16 किमी पैदल ले गया था।
वायदे के बाद भी न मिला शव वाहन
जानकारों का कहना है कि करीब 3 साल पहले मझगवां में लगाए गए जनसमस्या निवारण शिविर के दरमियान सांसद गणेश सिंह ने सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र को एक शव वाहन उपलब्ध कराने की घोषणा की थी, मगर यह वाहन अब तक CHC को नसीब नहीं हो सका। आज भी लोग अपने मरीजों को चारपाई पर लाने ले जाने को मजबूर हैं।
मझगवां के बीएमओ डॉ. तरुणकांत त्रिपाठी ने कहा कि यह सही है कि CHC में कोई भी शव वाहन नहीं है। पर आधी रात बेटी को गंभीर हालत में 108 एम्बुलेंस के माध्यम से जिला अस्पताल रेफर किया था, मगर आदिवासी परिवार ले जाने को तैयार नहीं हुआ। 10 मिनट बाद मासूम की मौत हो गई। मैंने उसको वाहन उपलब्ध कराने की बात कही थी, लेकिन वो बगैर बताए अपनी बेटी के शव को लेकर चले गए।
सतना कलेक्टर मुकेश कुमार शुक्ला ने मामले में कहा कि पीड़ित ने किसी भी पंचायत के सचिव या संबंधित तहसील के नायब तहसीलदार या तहसीलदार को सूचना दी कि नहीं, ये देखना पड़ेगा। सूचना देने के बाद भी यदि पीड़ित को शव वाहन नहीं मिल पाया है तो इसकी जांच कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करूंगा।
Created On :   3 Jun 2018 9:03 PM IST