यूनिवर्सिटी की जारी रहेगी परंपरा, सीनेट सदस्य पूछ सकेंगे प्रश्न

VC of Nagpur University pulled his steps back on Issue of asking questions to CNET members
यूनिवर्सिटी की जारी रहेगी परंपरा, सीनेट सदस्य पूछ सकेंगे प्रश्न
यूनिवर्सिटी की जारी रहेगी परंपरा, सीनेट सदस्य पूछ सकेंगे प्रश्न

डिजिटल डेस्क, नागपुर। सीनेट की बैठक में सदस्यों से ‘प्रश्न पूछने का अधिकार’ छीन लेने संबंधी आदेश जारी करने वाले राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के कुलगुरु डाॅ.सिद्धार्थविनायक काणे ने आखिरकार अपने कदम पीछे खींच लिए। यूनिवर्सिटी से जुड़े शिक्षा वर्ग और सीनेट सदस्यों के भारी विरोध के बाद रविवार को अवकाश के दिन आनन-फानन में नागपुर विश्वविद्यालय ने नई अधिसूचना जारी की है, जिसके अनुसार सीनेट की सभा में सदस्यों को प्रश्न पूछने के अधिकार लौटा दिए गए हैं। ऐसे में यूनिवर्सिटी में करीब 43 वर्षों से जारी प्रश्न पूछने की यह प्रथा अब आगे भी ऐसी ही जारी रहेगी। अधिसूचना में विश्वविद्यालय ने स्पष्ट किया है कि सीनेट सदस्य यूनिवर्सिटी से जुड़े प्रशासनिक कार्य पर प्रश्न या सप्लिमेंट्री प्रश्न पूछ सकते हैं पर इसके लिए उन्हें बैठक के 15 दिन पूर्व नोटिस देना होगा। शर्त रहेगी कि प्रश्न में किसी का नाम या निजी हित समाविष्ट नहीं होना चाहिए। फिजूल या बिना सिर-पैर के सवाल नहीं पूछे जाने चाहिए। प्रत्येक सदस्य तीन से ज्यादा प्रश्न पूछने का नोटिस नहीं दे सकता। प्रश्न पूछने देने के अंतिम अधिकार कुलगुरु के पास सुरक्षित रहेंगे। 

छीन लिए थे अधिकार
दरअसल, नागपुर यूनिवर्सिटी कुलगुरु ने यह तर्क देते हुए सीनेट सदस्यों के प्रश्न पूछने के अधिकार छीन लिए थे कि वर्ष 2001 के नियमों में सदस्यों को प्रश्न पूछने के अधिकार दिए गए थे। लेकिन सूचना का अधिकार कानून लागू होने के बाद सदस्य इस कानून के तहत प्रश्न पूछ कर जवाब पा सकते हैं। ऐसे में 18/2018 अधिसूचना में कुलगुरु ने सदस्यों के प्रश्न पूछने के अधिकार हटा दिए थे। इसका सीनेट सदस्यों की ओर से पुरजोर विरोध हुआ। शिक्षण मंच की ओर से विष्णु चंगादे, सेकुलर पैनल के एड.अभिजीत वंजारी, एड.मनमोहन वाजपेयी और फागा-फाटा के डॉ.जयंत जांभुलकर ने इसका विरोध किया था। नागपुर यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन की ओर से पूर्व सचिव डॉ.अनिल ढगे ने भी कुलगुरु को पत्र देकर इस फैसले का विरोध किया था। 

कम सदस्यों की उपस्थिति में भी होंगे फैसले
प्रश्न पूछने के अधिकार हटा लेने के साथ ही यूनिवर्सिटी प्रशासन ने एक और फैसला लिया था। पूर्व में सीनेट की सभा में कम से कम 20 सदस्यों की उपस्थिति हो तो ही कोई फैसला या प्रस्ताव मान्य किया जा सकता था, लेकिन हाल ही में इस नियम को हटा दिया गया। अब 20 से कम सदस्य भी सभा में उपस्थित हो तो फैसले हो सकते हैं। सदस्यों ने इसका भी विरोध किया है, लेकिन अब तक यूनिवर्सिटी ने यह नियम फिर से लागू नहीं किया है। डॉ.अनिल ढगे के अनुसार 20 से कम सदस्यों की उपस्थिति में होने वाले फैसले एकतरफा होंगे और प्रशासन के रबर स्टैंप की तरह बैठकें होगी, जो उन्हें मंजूर नहीं है। उन्होंने इस संबंध में राज्यपाल से भी शिकायत की है। 

इसलिए किया गया विरोध 
सीनेट सदस्यों के अनुसार, यूनिवर्सिटी ने प्रश्न पूछने के अधिकार छीन कर सीनेट के लोकतांत्रिक स्वरूप को ठेस पहुंचाई थी। इससे सीनेट का स्वरूप चरमरा जाता। सीनेट में प्रश्न पूछकर सदस्यों द्वारा व्यवस्था को बेहतर बनाने की दिशा में प्रयास किया जाता है। इसके लिए विधि मंडल की प्रक्रिया के तहत ही कुछ दिन पहले ही प्रश्न भेजे जाते हैं। सरकार ने जो यूनिफार्म स्टेट्यूट के लिए मसौदा तैयार किया है, उसमें भी प्रतियुक्ति का प्रावधान किया गया है।  लेकिन कुलगुरु द्वारा जारी सवाल नहीं पूछने संबंधी अध्यादेश अलोकतांत्रिक है।  आरोप थे कि नए एक्ट के प्रावधानों को मनमाने तरीके से इस्तेमाल करने का कार्य किया जा रहा है, जो विश्वविद्यालय के स्वायत्त ढांचे के लिए उचित नहीं है। इसमें दुरुस्ती कर नया अध्यादेश जारी किए जाने की मांग की गई थी। 

Created On :   1 Oct 2018 12:31 PM IST

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