अब जैविक सफेद सोने से चमकेगी विदर्भ के किसानों की किस्मत

Vidarbha farmers fate will now shine with organic white gold
अब जैविक सफेद सोने से चमकेगी विदर्भ के किसानों की किस्मत
अब जैविक सफेद सोने से चमकेगी विदर्भ के किसानों की किस्मत

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बीटी कॉटन के बीजों से प्रति एकड़ करीब 4 क्विंटल कपास का उत्पादन हो रहा है, लेकिन इस बीज और कीटनाशकों के प्रभाव के चलते जमीन की उर्वरकता पूरी तरह से प्रभावित हो रही है। इतना ही नहीं विदर्भ में प्राकृतिक बरसात आधारित खेती होने से कम और ज्यादा बरसात दोनों ही स्थिति में किसानों को परेशान होना पड़ता है। लागत के अनुपात में मुनाफा कम होने के साथ ही रासायनिक खाद से जमीन को भी नुकसान हो रहा है। विदर्भ में कपास उत्पादन करने वाले वर्धा और यवतमाल जिलों के किसानों को इन समस्याओं से अब छुटकारा मिल जाएगा। दोनों जिलों में कपास उत्पादकों की दयनीय स्थिति को देखते हुए मुंबई की वेलस्पन संस्था ने अब सहायता का हाथ बढ़ाया है। इस संस्था ने दोनों जिलों के किसानों को आर्गेनिक कपास उत्पादन के लिए सहायता देने की योजना बनाई है।

वेलस्पन की कपास खरीदी और हालैंड की एनजीओ सॉलीडरीडेड की सुनियोजित योजना और डेल्फ तकनीकी विद्यापीठ के प्रोफेसर साकेत पांडे की अनुसंधान तकनीक से किसानों से आर्गेनिक कपास उत्पादन कराया जाएगा। इस कपास को वेलस्पन खरीदी कर किसानों के कपास को टेक्सटाईल्स यूनिट में इस्तेमाल करेगी। चार सालों तक चलने वाले अभियान में 1500 किसानों के समूह का चयन कर प्रशिक्षण आरंभ कर दिया गया है। इस साल से दोनों जिलों में किसान अब आर्गेनिक कपास का उत्पादन शुरू कर देंगे। तकनीकी सहायता की बदौलत किसानों को प्रति एकड़ पर 6 क्विंटल कपास उत्पादन होने की उम्मीद की जा रही है। इसके साथ ही वेलस्पन समूह की ओर से नगदी खरीदी कर किसानों को अतिरिक्त 10 फीसदी की सहायता भी दी जाएगी।

10 फीसदी की अतिरिक्त सहायता
विदर्भ के वर्धा एवं यवतमाल जिले में कपास उत्पादक किसानों के दिन बहुर सकते हैं। महंगे बीज और रासायनिक खाद की खरीदी के लिए कर्ज लेने की नौबत भी नहीं आएगी। कम लागत में बेहतर तकनीक के साथ मिलने वाली कपास को नगदी में खरीदी होने पर अतिरिक्त 10 फीसदी की सहायता भी मिलेगी। हालैंड की एनजीओ, डेल्फ्ट तकनीकी यूनिवर्सिटी और वेलस्पन फाऊंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में दोनों जिलों में अभियान शुरू किया गया है। आर्गेनिक कपास उत्पादन प्रोजेक्ट को अगले 4 सालों तक क्रियान्वयन किया जाएगा। इस साल से आर्गेनिक कपास उत्पादन अभियान काे शुरू करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

साल 2018-19 में वर्धा में करीब 800 हेक्टेयर क्षेत्र के 1500 किसानों काे जोड़ा गया है। इन किसानों को बीटी कॉटन बीज छोड़कर कपास के सामान्य बीज को इस्तेमाल करना होगा। इसके अलावा रासायनिक दवा एवं छिड़काव की पाबंदी होगी। रासायनिक खाद के विकल्प के रूप में जैविक एवं गोमूत्र निर्मित जैविक खाद का उपयोग किया जाएगा। किसानों के प्रतिनिधियों को प्रोजेक्ट की जानकारी देने के लिए हाल ही में कार्यशाला का आयोजन भी किया गया।

कार्यशाला में कपास अनुसंधान केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक आर.बी. सिंघनधुपे, विजय वाघमारे, रामेती केन्द्र के संचालक डॉ. उदय पाटील, वेलस्पन समूह के महेश रामकृष्णन, गैर सरकारी संस्था सॉलिडरीडेड के अनुकूल नेगी, सिंचन विशेषज्ञ शिरीष आप्टे, डेल्फ्ट तकनीकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर साकेत पांडे एवं डच दूतावास की प्रतिनिधि श्रीमती आचार्य मौजूद थे। इस दौरान दोनों जिलों के किसान प्रतिनिधियों को अभियान की सविस्तार जानकारी दी गई थी। किसानों की समस्या और जिज्ञासा का भी समाधान किया गया।

किसान आत्महत्या के लिए विश्वभर में पहचान बना चुके विदर्भ के किसानों के दिन आने वाले समय में अच्छे हो सकते हैं। इसका कारण है आर्गेनिक कपास। जी हां, जिस कपास की खेती के कारण विदर्भ के किसान आत्महत्या के लिए मजबूर हो रहे हैं वहीं कपास अब उनको नई राह दिखा सकता है। सरकारी, साहूकारी और आसमानी मार झेल रहे विदर्भ के किसानों में नई उम्मीद जगी है। शुरुआत में यह अभियान वर्धा और यवतमाल में प्रारंभ किया जा रहा है। वर्धा की तीन तहसीलों के 1500 किसानों के समूह का चयन कर इन्हें प्रशिक्षण देने का काम शुरू हो चुका है। सामान्य कपास का उत्पादन जहां एक एकड़ में करीब 4 क्विंटल होता है वहीं आर्गेनिक कपास का उत्पादन लगभग 6 क्विंटल हो सकता है। यही नहीं किसानों को अार्गेनिक कपास का न केवल उचित दाम मिलेगा बल्कि इन्हें खरीदने वाली कंपनी 10 प्रतिशत अतिरिक्त सहायता भी देगी।

Created On :   1 July 2018 6:27 PM IST

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