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राज्यपाल के फैसले में नहीं करेंगे हस्तक्षेप : हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विधानपरिषद का सदस्य मनोनीत किए जाने की सिफारिश को लेकर मंत्रिमंडल की ओर से भेजे गए प्रस्ताव पर राज्यपाल ने निर्णय नहीं लिया है। लिहाजा हम फिलहाल इस मामले में न तो हस्तक्षेप कर सकते हैं और न ही कोई अंतरिम आदेश जारी कर सकते हैं। अभी इस मामले में हस्तक्षेप करने का मतलब राज्यपाल को निर्णय लेने से रोकने जैसा होगा क्योंकि अभी मामले से जुड़ा प्रस्ताव राज्यपाल के सामने विचाराधीन है।
हाईकोर्ट में राज्य मंत्रिमंडल द्वारा श्री ठाकरे को विधानपरिषद का सदस्य मनोनीत किए जाने की सिफारिश के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता रामकृष्ण गोविंदस्वामी की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। याचिका में इस सिफारिश की वैधता पर सवाल उठाए गए हैं और इसे रद्द करने का आग्रह किया गया है। सोमवार को यह याचिका न्यायमूर्ति एस जे कथावाला के सामने सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ए.दामले ने दावा किया कि पिछले दिनों राज्य के उपमुख्यमंत्री अजित पवार की अध्यक्षता में मंत्रिपरिषद की एक बैठक हुई थी। बैठक के बाद राज्य के राज्यपाल को एक प्रस्ताव भेजा गया था। इस प्रस्ताव में मुख्यमंत्री श्री ठाकरे को विधानपरिषद का सदस्य मनोनीत करने की सिफारिश की गई है।
‘उपमुख्यमंत्री’ को संवैधानिक मान्यता नहीं
उन्होंने ने कहा कि उपमुख्यमंत्री के पद को संवैधानिक मान्यता नहीं है। मुख्यमंत्री श्री ठाकरे ने उपमुख्यमंत्री अजित पवार को मंत्रिमंडल की बैठक लेने के लिए प्राधिकृत किए जाने के संबंध में कोई निर्देश नहीं जारी किया है। ऐसे में उपमुख्यमंत्री श्री पवार की बैठक को कैसे वैध माना जा सकता है। जब यह बैठक ही वैध नहीं है तो राज्यपाल को मंत्रिमंडल की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को कैसे वैध माना जा सकता है। याचिका में इस प्रस्ताव को रद्द करने का आग्रह किया गया है। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे फिलहाल विधानमंडल के किसी भी सदन के सदस्य नहीं है।
नियमानुसार मुख्यमंत्री या मंत्री पद की शपथ लेन के 6 माह के भीतर विधानमंडल के किसी एक सदन की सदस्यता हासिल करना अनिवार्य होता है। मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने के लिए उद्धव ठाकरे को 28 मई 2020 तक विधायक बनना होगा। इसके मद्देनजर मंत्रिमंडल की ओर से श्री ठाकरे को विधानपरिषद का सदस्य मनोनीत करने को लेकर राज्यपाल को प्रस्ताव भेजा गया है। वहीं राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे महाधिवक्ता आशुतोष कुम्भकोणी ने कहा कि यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। क्योंकि अभी तक मंत्रिमंडल की ओर से भेजे गए प्रस्ताव पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है। इसलिए इस अपरिपक्व याचिका पर सुनवाई न की जाए।
राज्यपाल निर्णय लेने स्वतंत्र
मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि राज्यपाल इस विषय पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। चूंकि उन्होंने इस मामले में कोई निर्णय नहीं लिया है। इसलिए फिलहाल हम इस मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकते। यह बात कहते हुए न्यायमूर्ति ने मामले मे कोई अंतरिम आदेश जारी करने से इंकार कर दिया और याचिका पर सुनवाई स्थगित कर दी।
Created On :   20 April 2020 6:25 PM IST