पंचायतों में बदलाव की बयार, रिक्शेवाले से लेकर दिहाड़ी मजदूर तक बने ग्राम प्रधान

Winds of change in panchayats, village headmen from rickshaw to daily wage laborers
पंचायतों में बदलाव की बयार, रिक्शेवाले से लेकर दिहाड़ी मजदूर तक बने ग्राम प्रधान
झारखंड पंचायतों में बदलाव की बयार, रिक्शेवाले से लेकर दिहाड़ी मजदूर तक बने ग्राम प्रधान

डिजिटल डेस्क, रांची। झारखंड में पंचायत चुनाव के पहले चरण के नतीजे सामाजिक बदलाव के सुखद संकेत दे रहे हैं। कई ग्राम पंचायतों में बेहद गरीब और पिछड़े तबके से आने वाले प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की है। इनमें दिहाड़ी मजदूर से लेकर रिक्शा चालक तक शामिल हैं। पहले चरण में 21 जिलों की 1127 ग्राम पंचायतों में हुए चुनाव में से लगभग आठ सौ पंचायतों के नतीजे बुधवार तक आ चुके हैं। लोकतांत्रिक सुधारों पर काम करनेवाली चर्चित संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) के राज्य संयोजक सुधीर पाल का अनुमान है कि अब तक घोषित नतीजों में सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक तौर पर हाशिए पर माने जाने वाले तबकों के दो सौ से भी ज्यादा उम्मीदवारों को सफलता मिली है।

रांची जिले की राहे ग्राम पंचायत के लोगों ने जिस कृष्णा पातर मुंडा को मुखिया यानी ग्राम प्रधान पद के लिए चुना है, वह रांची शहर में रिक्शा चलाते हैं। वह पिछले दस साल से हर दिन बस से रांची शहर आते हैं और यहां किराये पर लिया गया पैडल रिक्शा चलाते हैं। इससे वह पांच सदस्यों वाले अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी भी बेहद मुश्किल से जुटा पाते हैं। कृष्णा पातर ने आईएएनएस से अपनी कहानी साझा की। उन्होंने कहा कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए पैसा नहीं था। गांव के लोगों ने ही चंदा कर उन्हें पैसा दिया और चुनाव लड़वाया।

वह इसके पहले दो बार चुनाव में खड़े हुए थे, लेकिन हार गये थे। हार के बावजूद वह पंचायत के लोगों की समस्याओं को लेकर मुखर रहे। इस बार गांव के लोगों ने ही उन्हें चुनाव लड़ने को कहा। चुनाव प्रचार से लेकर पर्चा भरने तक का पैसा लोगों ने ही जुटाया। उन्हें एक मोबाइल फोन भी खरीदकर दिया। कृष्णा पातर का कहना है कि पंचायत के लोगों ने उन्हें इतना प्यार दिया है कि वह सबके कर्जदार बन गये हैं। उनकी कोशिश होगी कि जनप्रतिनिधि के तौर पर वह सबके काम आयें। पंचायत के हर गांव में विकास के काम हों, इसके लिए वह किसी भी अधिकारी के पास जाने से नहीं हिचकेंगे।

इसी तरह चतरा जिले की मोकतमा पंचायत से मुखिया के पद पर जीत दर्ज करनेवाली पार्वती देवी के पति दिहाड़ी मजदूरी करते हैं। जरूरत पड़ने पर पार्वती देवी भी मजदूरी करती हैं। वह कहती हैं कि पंचायत के लोगों ने जाति-धर्म से ऊपर उठकर उनका समर्थन किया है। लोगों ने उनपर जो भरोसा जताया है, वह उसे टूटने नहीं देंगी। पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला प्रखंड की बाघुड़िया पंचायत से सबर नामक आदिम जनजाति की सुशीला सबर ने पंचायत समिति सदस्य का चुनाव जीता है। सबर झारखंड की विलुप्त होती आदिम जनजाति है। पूरे झारखंड में इनकी कुल आबादी महज कुछ हजार है। वह इस जनजाति की पहली महिला हैं, जिन्होंने कोई चुनाव जीता है।

चौपारण प्रखंड की चोरदाहा पंचायत में मुखिया का चुनाव जीतने वाली अर्चना हेमरोम कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से आती हैं। उन्होंने हाल में जेपीएससी सिविल सर्विस की मुख्य परीक्षा पास की है। साक्षात्कार भी हो चुका है और इस परीक्षा में अंतिम तौर पर चयन होने पर वह अफसर बन सकती हैं। उनका कहना है कि पंचायत के लोगों ने उन्हें जिन उम्मीदों के साथ अपना प्रतिनिधि चुना है, उसपर खरा उतरने की कोशिश करेंगी। इसी प्रखंड की दादपुर पंचायत के मुखिया चुने गये गंदौरी दांगी बताते हैं कि उन्होंने दूसरे के खेतों की बंटाईदारी पर खेती करते हुए पढ़ाई की। पंचायत के लोगों ने हर दृष्टि से मजबूत प्रत्याशियों की तुलना में उनपर ज्यादा विश्वास जताया। उनकी कोशिश होगी कि कमजोर वर्ग के लोगों की आवाज पंचायती राज व्यवस्था में मजबूती के साथ उठायी जाये।

विनोबा भावे विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के व्याख्याता प्रो. प्रमोद कुमार कहते हैं कि जो लोग अब तक सामाजिक तौर पर हाशिए पर रहे हैं, उनकी चुनावी सफलताओं के मायने बेहद गहरे हैं। इसे स्वस्थ सामाजिक-लोकतांत्रिक संकेत माना जाना चाहिए। लेकिन सही अर्थों में राजनीतिक बदलाव तभी आयेगा, जब पंचायतों के आगे विधानसभाओं और लोकसभा में भी ऐसे लोगों को प्रतिनिधित्व मिले। एडीआर के राज्य संयोजक सुधीर पाल कहते हैं कि कमजोर तबके के लोगों की सफलता का एक लाभ यह भी होगा कि पंचायतों में जमीनी स्तर पर समस्याओं के समाधान की दिशा में ज्यादा प्रभावी तरीके से काम होने की उम्मीद बढ़ेगी।

 

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Created On :   18 May 2022 1:30 PM GMT

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