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दूसरे दलों से आए कार्यकर्ताओं ने BJP को बनाया नंबर वन : दानवे

डिजिटल डेस्क, नागपुर। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रावसाहब दानवे ने कहा कि दूसरे दल से आए कार्यकर्ताआें के कारण ही उनकी पार्टी राज्य में नंबर वन बन सकी है। उन्होंने कहा कि 15 साल से भाजपा के काम कर रहे नेताओं को अन्य दल के नेता कहना ठीक नहीं है। दानवे के अनुसार राज्य मंत्रिमंडल विस्तार शीतसत्र के बाद होगा। नारायण राणे के मसले पर उन्होंने दो टूक शब्दों में कहा कि शिवसेना को नाराज नहीं होना चाहिए। महाराष्ट्र पर्यटन विकास महामंडल के सभागृह में दानवे ने कहा कि राजनीतिक मजबूरियों को भी समझना जरूरी है। राज्य में भाजपा तीसरे और चौथे स्थान पर रही है। पार्टी को दूसरे स्थान पर लाने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने किया। इसके अलावा दूसरे दलाें के अच्छे कार्यकर्ताआें के आने से पार्टी को बल मिला है। हालांकि दानवे ने यह भी कहा कि लंबे समय से पार्टी कार्यकर्ताओं का महत्व भी कुछ कम नहीं हुआ है। राज्य में 83 से 84 प्रतिशत विधायक पुराने कार्यकर्ता ही हैं।
बीजेपी-शिवसेना के बीच विवाद का ठीकरा मीडिया के सिर फोड़ा
दानवे ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस के विरोध में लगातार बयान दे रहे गाेंदिया भंडारा के सांसद नाना पटोले का विषय अलग है। कुछ मामलों पर उनसे चर्चा की जाएगी। संसद के अधिवेशन के दौरान उनसे मुलाकात होगी। गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर उन्होंने कहा कि वहां पहले से ज्यादा संख्याबल के साथ भाजपा जीतेगी। वहां किसी तरह का भय नहीं है। गुजरात में भाजपा की नाक में दम नहीं आया है। कर्जमाफी को लेकर उन्होंने कहा कि राशि दिसंबर अंत तक लाभार्थी किसानों के खातों में आ जाएगी। गठबंधन को लेकर उन्होंने कहा कि भाजपा और शिवसेना में कोई बड़ा विवाद नहीं है। जो दिख रहा है वह मीडिया के कारण है। सभी को अपना संगठन बढ़ाने का अधिकार है। शिवसेना अपने हिसाब से काम कर रही है। भाजपा भी संगठन को बढ़ा रही है।
महामंडल में नियुक्तियों को लेकर विवाद
महामंडल के पुनर्गठन और लंबित नियुक्तियों में मामले में दानवे ने पहले की आघाडी सरकार को दोषी ठहराया। उन्होंने कहा कि महामंडलों में नियुक्तियों को लेकर विवाद उठते हैं, इसलिए नियुक्तियां नहीं की गई। उन्होंने कहा कि पिछली सरकार ने महामंडलों के लिए तिथि के साथ नियुक्तियां की थी। लिहाजा नई नियुक्तियों को चुनौती देते हुए पुराने पदाधिकारी न्यायालय तक जाते रहे। नई नियुक्तियों पर स्थगन लगता रहा, लेकिन जहां किसी तरह का विवाद नहीं था, वहां महामंडल का गठन कर अध्यक्षों की नियुक्तियां की गई हैं।
Created On :   30 Nov 2017 5:57 PM IST