महिलाओं को पत्थर तोड़ते देख छोड़ दी थी नौकरी, अब बदल रहीं हैं उनका जीवन

World Economic Forum the story of Co-president chetna gala
महिलाओं को पत्थर तोड़ते देख छोड़ दी थी नौकरी, अब बदल रहीं हैं उनका जीवन
महिलाओं को पत्थर तोड़ते देख छोड़ दी थी नौकरी, अब बदल रहीं हैं उनका जीवन

डिजिटल डेस्क, मुंबई।  मनोज दुबे। यह पहली बार है कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के 50 वर्ष के इतिहास में सभी सह-अध्यक्ष महिलाएं हैं। ये दुनिया में श्रेष्ठ कार्य करने वाली पांच महिलाएं हैं। इनमें से भारत की ओर से मानदेशी फाउंडेशन चलाने वाली चेतना गाला सिन्हा भी हैं। इनके साथ क्रिस्टीन लेगार्डे (आईएमएफ), नार्वे की प्रधानमंत्री एरना सोलबर्ग, आईबीएम की प्रमुख जिनी रोमेटी जैसी महिलाएं हैं। यह सम्मेलन दावोस में 23 से 26 जनवरी तक चलेगा।


चेतना प्रोफेसर थीं लेकिन महिलाओं की स्थिति ने उन्हें ऐसा झकझोरा कि उन्हें नौकरी छोड़ गरीबों के लिए फाउंडेशन चलाना शुरू किया। मुंबई में कच्छी गुजराती गाला परिवार में पांच भाई थे। संयुक्त परिवार था। पांचों भाई नल बाजार में किराने की दुकान चलाते थे। इन्हीं में एक भाई मगनलाल गाला की बेटी चेतना हैं, जिनकी चार बहनें, दो भाई हैं। भास्कर से बात करते हुए चेतना ने बताया कि मेरी इकोनॉमिक्स में रुचि थी, लिहाजा मुंबई यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में मास्टर्स डिग्री ले ली। उन दिनों जयप्रकाश नारायण का आंदोलन चल रहा था तो अर्थशास्त्र की छात्र होने के कारण मेरी रुचि इस समाजवादी आंदोलन में भी थी। फिर नौकरी मिल गई तो प्रोफेसर बन गई। वे बताती हैं बात 1981 की है। मैं और विजय सिन्हा जेपी आंदोलन से जुड़े हुए थे। दोनों सतारा जिले के अकालग्रस्त इलाकों में लोगों की स्थितियां देखने गए। तब भी रोजगार गारंटी योजना हुआ करती थी। रोजगार के नाम पर महिलाओं से पत्थर तोड़ने का काम कराया जाता था। उन्हें देख मेरे मन में ये भाव आया कि ये काम तो आजीवन कारावास भुगतने वाले कैदियों को दिया जाता है। सम्मान अपनी रोटी जुटाने वाली महिला को ये काम क्यों दिया जाता है? सवालों ने मुझे घेर लिया और मन विकल्प भी सुझाता जा रहा था कि क्या कोई इस तरह का काम नहीं दे सकते, जो महिलाओं और पुरुषों के लिए ठीक हो और जिससे समाज का भला भी हो। 



उन्हीं दिनों सतारा जिले में ही एक घटना और घटी, एक महिला जो सड़क पर चाकुओं की धार करती थीं, वह बैंक में पैसे जमा कराना चाहती थी, लेकिन किसी ने उसे तवज्जो नहीं थी। वह महिला मिन्नतें करती रहीं कि मुझे एक टपरी खरीदना है, इसलिए बचत करना चाहती हूं, लेकिन बैंक अफसर टस से मस नहीं हुए। दरअसल, उन दिनों बहुत गर्मी थी औा मैंने महिला से बात की तो कहने लगी कि इस इलाके में 49 डिग्री तक तापमान रहता है और इतनी गर्मी में बच्चों को चक्कर आ जाते हैं और वे बेहोश हो जाते हैं, इसलिए मैं एक झोपड़ी में उन्हें सुरक्षित रखना चाहती हूं। ये सुनकर मैं सिहर उठी, मेरे जेहन में ये घटना हमेशा रहीं। मैंने 1986 में जब विजय से शादी की तो उसके बाद अपनी अर्थशास्त्र की प्रोफेसर की नौकरी छोड़कर लोगों की मदद करने की ठानी। 



चेतना बताती हैं कि उन्होंने सबसे पहले इन महिलाओं की मदद के लिए 1996 में सहकारी बैंक बनाने का फैसला किया, लेकिन रिजर्व बैंक की ओर से लाइसेंस सिर्फ इसलिए नहीं मिला, क्योंकि प्रमोटर के रूप में शामिल महिलाएं पढ़ी-लिखी नहीं थीं। गौरतलब है कि तब चेतना ने सतारा के अकालग्रस्त इलाकों में जाकर पढ़ाना शुरू किया और पांच ही माह के बाद फिर से लाइसेंस के लिए आवेदन किया। रही बात पत्थर तोड़ने की तो चेतना के प्रयासों से ही कालांतर में इसी अकालग्रस्त इलाके में बांध बनाने का काम मिलने लगा और जो इलाका अकालग्रस्त था, वह हरा-भरा हो गया। छोटी बचत और छोटे कर्ज महिलाओं को देने के लिए ही वे काम करती हैं। अभी मानदेशी बैंक के 90 हजार क्लाइंट्स हैं और 3 लाख 10 हजार महिलाओं को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। पति विजय अभी खेती ही करते हैं। चेतना पूरी तरह से शाकाहारी हैं। विदेश में सलाद और फलों पर ही निर्भर रहती हैं। तीन बच्चे हैं। प्रभात सबसे बड़े हैं, जो मानदेशी में ही स्पोर्ट्स प्रोग्राम देखते हैं। इसके बाद जुड़वा हैं, करण इसके बाद जुड़वा हैं, करण ने राजनीति की पढ़ाई की है। पार्थ लंदन में म्यूजिक में मास्टर्स डिग्री ले रहे हैं।

Created On :   21 Jan 2018 9:55 PM IST

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