छोड़ी बंदूक, थामी किताब ,शिक्षा से बदलना चाहते हैं जीवन

youths of Gadhchiroli left behind the Naxal protest and coming towards education
छोड़ी बंदूक, थामी किताब ,शिक्षा से बदलना चाहते हैं जीवन
छोड़ी बंदूक, थामी किताब ,शिक्षा से बदलना चाहते हैं जीवन

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  इंसान कुछ करना चाहे तो उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं होता यह बात इन दिनों गड़चिरोली जिले के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में देखी जा रही है। मजबूरीवश नक्सलियों से जुड़ने के बाद वापस समाज से जुड़ने वाले युवाओं का सामने आना एक अच्छा संकेत माना जा सकता है। विदर्भ के नक्सलग्रस्त गड़चिरोली जिले से इससे जुड़ी अच्छी खबरें आ रही हैं। कई युवा, जो नक्सल आंदोलन में शामिल हो चुके थे, अब समाज की मुख्य धारा में लौटने लगे हैं। इनका मानना है कि समाज को आगे लाना हो तो शिक्षा ही सर्वोत्तम मार्ग है। हिंसा से समाज में परिवर्तन संभव नहीं है। बानगी के तौर पर हम बात कर रहे हैं गड़चिरोली जिले के कुरखेड़ा की। यहां के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के स्टडी सेंटर में समर्पण करने वाले नक्सली भी शिक्षा ले रहे हैं। 

12 साल बाद मुख्य धारा से जुड़ा,शुरू की शिक्षा
केंद्र में बैचलर्स प्रिपरेट्री प्रोग्राम के विद्यार्थी विनोद (परिवर्तित नाम) ने अपने विचार साझा किए। गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले विनोद ने बताया- माता-पिता खेतों में मजदूरी करते थे। गांव के ही स्कूल से 11वीं कक्षा तक पढ़ाई की। परिवार में गरीबी और कलह के कारण मन में द्वेष उत्पन्न हो गया। महज 19 वर्ष की उम्र में 1995 में नक्सल आंदोलन में शामिल हो गया। अगले 12 वर्षों तक नक्सली दल की विविध जिम्मेदारियां संभाली। इस दौरान पाया कि मेरे विचार नक्सली विचारधारा से मेल नहीं खा रहे हैं। दल की कार्यप्रणाली देख कर समझ में आया कि मेरा यह उद्देश्य नहीं था। इसलिए वर्ष 2015 में नक्सल आंदोलन छोड़ कर सरकार के समक्ष समर्पण कर दिया। समाज की मुख्यधारा में वापस लौट कर भी अच्छा लगा। यह सोचने लगा कि समाज के लिए कुछ करना चाहिए, पर इसके लिए शिक्षा जरूरी थी। 12 वर्ष पहले छूट चुकी पढ़ाई फिर से शुरू करने की ठानी।

आर्थिक तंगी ले जाती है नक्सलियों के पास
इग्नू में लिया प्रवेश | वर्ष 2017 में क्षेत्र में ही इग्नू का स्टडी सेंटर खुला, तो 6 माह के  बीपीपी कोर्स में दाखिला ले लिया। इसके बाद बैचलर ऑफ सोशल वर्क की पढ़ाई करके समाजकार्य की राह चुनने का फैसला किया। मेरा मानना है कि इस आंदोलन से जुड़े अन्य युवा भी इच्छाशक्ति के बूते समाज की मुख्यधारा में वापस लौट कर शिक्षा ले सकते हैं। आदिवासी क्षेत्रों में आर्थिक परेशानियों के कारण युवा नक्सल आंदोलन से जुड़ते हैं। यदि क्षेत्र में शिक्षा और रोजगार जैसी सुविधाएं हो, तो युवा उस मार्ग पर नहीं जाएंगे। 

Created On :   21 Nov 2018 6:21 AM GMT

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