सरकार ने पेंशन स्किम में किए बड़े बदलाव, 18 लाख कर्मचारियों को होगा फायदा
सरकार ने पेंशन स्किम में किए बड़े बदलाव, 18 लाख कर्मचारियों को होगा फायदा
- केंद्र सरकार ने कर्मचारियों को तोहफा दिया है।
- रिटायरमेंट पर निकाले जाने वाली पेंशन का 60 प्रतिशत रकम को भी कर मुक्त कर दिया है।
- वित्त मंत्री अरुण जेटली ने NPS के तहत दिए जाने वाले सरकारी योगदान को बढ़ाकर 14 प्रतिशत कर दिया है।
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने नेशनल पेंशन स्किम (NPS) में बड़ा बदलाव किया है। सरकार ने इस स्कीम के तहत कर्मचारियों की बेसिक सैलरी पर दिए जाने वाले सरकारी योगदान को 10 फीसदी से बढ़ाकर 14 फीसदी कर दिया है। जबकि कर्मचारियों के न्यूनतम योगदान को 10 फिसदी ही रखा गया है। इसके अलावा केंद्र सरकार ने रिटायरमेंट पर निकाली जाने वाली 60 फिसदी रकम को भी पूरी तरह से टैक्स फ्री कर दिया है। सरकार के इस फैसले से सरकारी खजाने पर 2019- 20 में 2,840 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।
अरुण जेटली ने कहा, "कर्मचारियों के हितों को ध्यान में रखते हुए यह बदलाव किया गया है।" इस बदलाव का फायदा करीब 18 लाख केंद्रीय कर्मचारियों को मिलेगा। हालांकि अभी यह नहीं बताया गया है कि ये बदलाव कब से लागू किए जाएंगे। 6 दिसंबर को हुई कैबिनेट बैठक में ये फैसला लिया गया था। राजस्थान और तेलंगाना में 7 दिसंबर को होने वाले मतदान के चलते इस फैसले की घोषणा नहीं की गई थी।
नेशनल पेंशन स्कीम में फिलहाल सरकार और कर्मचारियों का योगदान 10-10 फीसदी है। नए नियमों के लागू होने के बाद कर्मचारियों को चार फीसदी का फायदा मिलेगा। वहीं मौजूदा नियमों के मुताबिक, रिटायरमेंट तक जमा हुए कुल फंड की 40% रकम से एन्यूटी खरीदी जाती है। ये पूरी तरह से टैक्स फ्री होती है। बची हुई 60% रकम को निकालने पर उसमें से 40% रकम टैक्स फ्री होती है, जबकि 20% पर टैक्स लगता है। अब नए नियमों के मुताबिक पूरी की पूरी 60% रकम टैक्स फ्री होगी।
सरकारी कर्मचारियों के पास नए नियम लागू होने के बाद पेंशन फंड चुनने के ज्यादा विकल्प होंगे। वह अपने हिसाब से इक्विटी और डेब्ट फंड का चयन कर सकेंगे। कैबिनेट ने 2004-2012 के बीच NPS योगदान में हुई देरी के लिए मुआवजे के भुगतान को भी मंजूरी दे दी है।
बता दें कि नेशनल पेंशन स्किम (NPS) एक रिटायरमेंट सेविंग्स अकाउंट है। इसकी शुरुआत भारत सरकार ने 1 जनवरी, 2004 को की थी। पहले यह स्कीम सिर्फ सरकारी कर्मचारियों के लिए शुरू की गई थी। हालांकि 2009 के बाद इसे निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए भी शुरू किया गया है।