18 साल पहले लिया था 300 रुपए की रिश्वत , बीएसएनएल कर्मचारी को अब हुई जेल

18 साल पहले लिया था 300 रुपए की रिश्वत , बीएसएनएल कर्मचारी को अब हुई जेल

Anita Peddulwar
Update: 2020-02-03 06:33 GMT
18 साल पहले लिया था 300 रुपए की रिश्वत , बीएसएनएल कर्मचारी को अब हुई जेल

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने अपने हालिया फैसले में साफ किया है कि भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के कर्मचारी सरकारी सेवक होते हैं। उन पर वे सभी भ्रष्टाचार प्रतिरोधक अधिनियम पूरी तरह से लागू होते हैं, जो अन्य सरकारी सेवकों पर। हाईकोर्ट ने इसी आधार पर रिश्वत लेने वाले बीएसएनएल के एक टेलीफोन मेकैनिक को दोषी करार देते जेल भेज दिया है। यह 18 वर्ष पुराना मामला है। अपने बचाव के लिए कर्मचारी का तर्क था कि वह बीएसएनएल का कर्मचारी है, ऐसे में वह सरकारी कर्मचारी की श्रेणी में नहीं आता।

लिहाजा भ्रष्टाचार प्रतिरोधक अधिनियम के तहत उसे सजा नहीं सुनाई जा सकती। मामले में विविध फैसलों और नियमों के अध्ययन के बाद कोर्ट ने आदेश दिया कि टेलीकॉम सेवा को डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्युनिकेशन से अलग करके बीएसएनएल नामक कंपनी बनाई गई। इसमें केंद्र सरकार के शेयर हैं। ऐसे में बीएसएनएल पर सभी सरकारी नीतियां तो लागू होती हैं, लेकिन वह पूरी तरह सरकार द्वारा नहीं चलाया जा रहा है। बीएसएनएल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के पास निर्णय लेने के कई अधिकार होते हैं। इस बोर्ड में सरकार के भी प्रतिनिधि होते हैं। हां, सरकार ने निजी कंपनियों को भी टेलीकॉम लाइसेंस िदए हैं, लेकिन उनके कर्मचारियों को सरकारी कर्मचारी नहीं माना जा सकता। 

दोषी कर्मचारी का नाम अरुण काले (42) है और वह बुलढाणा जिले के असलगांव का निवासी है। वर्ष 2002 में टेलीफोन ठीक करने के लिए 300 रुपए की रिश्वत लेने के मामले में उसे दोषी पाया गया है। हाईकोर्ट ने आरोपी को एक साल की जेल और 10 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। उसे बुलढाणा की विशेष अदालत में समर्पण के लिए दो माह का समय दिया गया है। एसीबी मंे दर्ज मामले के अनुसार घटना 12 फरवरी 2002 की है। बुलढाणा जिले के सुलज निवासी सुरेश महसारे के भाई की दुकान पर लगा टेलीफोन खराब हो गया था। टेलीफोन ठीक करने के लिए महसारे ने अरुण काले से संपर्क किया था। फोन ठीक करने के लिए अरुण ने कुल 400 रुपए की मांग की थी। अंतत: 300 रुपए में बात बनी। इसके बाद महसारे ने अरुण की शिकायत एसीबी से कर दी। मामले में अरुण को दो वर्ष की जेल और जुर्माने की सजा सुनाई थी। याचिकाकर्ता की उम्र और मामले के लंबित रहने की अवधि देख कर हाईकोर्ट ने यह निर्णय दिया है। 

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