Whatsapp से मिली 955 को नई जिंदगी, सदस्य कर रहे रक्तदान

Whatsapp से मिली 955 को नई जिंदगी, सदस्य कर रहे रक्तदान

Bhaskar Hindi
Update: 2018-08-27 08:05 GMT
Whatsapp से मिली 955 को नई जिंदगी, सदस्य कर रहे रक्तदान

डिजिटल डेस्क, परासिया/छिंदवाड़ा। खून के रिश्ते कहते हैं कि बहुत मजबूत होते हैं, बस यही सोच लेकर परासिया का वाट्सएप ग्रुप खून का रिश्ता लोगों की जान बचाते हुए मानवता का रिश्ता भी मजबूत कर रहा है। ग्रुप के सदस्य एक कॉल पर अपना काम छोड़कर दूसरों को खून देने स्वयं के खर्च पर लम्बा सफर तय कर जिला चिकित्सालय तक पहुंचने में जरा भी देरी नहीं करते हैं। ग्रुप के सदस्यों ने अब तक 955 लोगों को रक्तदान कर उन्हें नया जीवन दिलाने में अहम भूमिका निभाया है।

सोशल मीडिया का बेहतरीन उपयोग कर यह ग्रुप मानव सेवा का अनूठा प्रयोग सफलता पूर्वक कर रहा है। इस ग्रुप में लगभग 750 से अधिक सदस्य जुड़े हैं, जिसमें से कुछ सदस्य हर तीन माह, कुछ साल में एक बार और कुछ सदस्यों ने सिर्फ एक बार ही वाट्सएप ग्रुप के माध्यम से रक्तदान किया है। ग्रुप में लगभग 80 फीसदी सदस्य परासिया क्षेत्र, दस फीसदी सदस्य छिंदवाड़ा, अमरवाड़ा, तामिया और जुन्नारदेव ब्लाक से जुड़े हैं। शेष सदस्य अन्य ब्लाकों और जिलों से जुड़े हैं। ग्रुप द्वारा अब तक दस रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। जिसकी शुरूआत गुरू द्वारा प्रांगण परासिया में 9 जून 16 लगे शिविर से हुई, जिसमें 63 महिल-पुरूषों ने रक्तदान किया। यहां से शुरू हुआ यह सिलसिला अब लगभग एक हजार रक्तदान तक पहुंच रहा है।

एडमिन बने रोल मॉडल
रक्तदान की यह मुहिम ग्रुप एडमिन 45 वर्षीय रितेश ऊर्फ रिंकू चौरसिया ने शुरू किया। उन्होंने अपने वाट्सएप ग्रुप जागते रहो के माध्यम से ऐसे लोगों को जोड़ने का प्रयास किया जो रक्तदान करने के इच्छुक हैं। इन दोनों वाट्सएप ग्रुप से लगभग दो हजार लोग जुड़े हुए हैं। जागते रहो ग्रुप मानव सेवा गौ सेवा, बेटी बचाओ और पर्यावरण संरक्षण कार्य करता है। ग्रुप एडमिन को रेडक्रास सोसायटी भोपाल द्वारा नवम्बर 17 में उनके सराहनीय कार्य के लिए सम्मानित किया गया। कई संस्थाओं और संगठनों द्वारा अब तक वे और उनका ग्रुप सम्मानित हो चुका है।

ढाई हजार में खरीदा था एक-एक यूनिट खून
ग्रुप एडमिन एडमीन रितेश चौरसिया बताते हैं कि उन्होंने पहली बार 18 वर्ष की उम्र में उस समय रक्तदान किया था, जब वो अपने किसी परिचित से मिलने जिला अस्पताल छिंंदवाड़ा गए थे। वहां एक गरीब महिला को अपने 8 माह के शिशु के लिए रक्तदाता नहीं मिलने से रोते-बिखलते देखकर रक्तदान किया था। वहीं इसके बाद शौक से कई बार रक्तदान किया, किन्तु तीन साल पहले नागपुर में एक परिचित के ऑपरेशन के लिए चार यूनिट खून जुटाना उनके लिए काफी मुश्किल हो गया। स्वयं ने रक्तदान किया, किन्तु शेष तीन यूनिट रक्त के लिए कोई व्यवस्था नहीं होने पर उन्होंने ढाई-ढाई हजार रुपए खर्च करना पड़ा। जिसके बाद उन्होंने रक्तदाताओं का समूह बनाने का निर्णय लिया और सक्रिय हो गए।

 

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