आज दिखेगी अनोखी खगोलीय घटना, आधी रात को होगी सिंह राशि की उल्का वर्षा

आज दिखेगी अनोखी खगोलीय घटना, आधी रात को होगी सिंह राशि की उल्का वर्षा

Bhaskar Hindi
Update: 2017-11-18 10:10 GMT
आज दिखेगी अनोखी खगोलीय घटना, आधी रात को होगी सिंह राशि की उल्का वर्षा

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  वैसे तो खगोलीय घटनाएं अनोखी,अद्भुत और रहस्यमयी होती हैं। ऐसी ही एक घटना इस बार शनिवार-रविवार की रात देखी जा सकती है। जिसमें माना जा रहा है कि सिंह राशि की परिक्रमा के चलते प्रति घंटे 15 से 20 उल्काएं देखने मिल सकती है। माना जा रहा है कि ये घटना 33 साल बाद घट रही है। रामटेक स्थित एडवेंचर विलेज के संचालक अमोल खंते ने इस दुर्लभ खगोलीय घटना को देखने के लिए इंतजाम किए जाने की जानकारी दी है।

आकर्षित करती हैं खगोलीय घटनाएं
पृथ्वी के आस-पास होने वाली खगोलीय घटनाएं हमें अंतरिक्ष की जानकारियों के प्रति आकर्षित करती हैं। और जब-जब इस तरह की घटनाएं होती है लोगों में कई तरह की जिज्ञासा भी इसे लेकर रहती है। 

दिख सकती है 15 से 20 उल्काएं 
माना जा रहा है कि ये घटना 33 साल बाद घट रही है, जहां सिंह राशि की परिक्रमा के कारण उल्का वर्षा होने की संभावनाएं दर्शाई जा ही है। शुक्रवार आधी रात 12 बजे के बाद पूर्व दिशा के क्षितिज में सिंह राशि उदित हो चली है जो शनिवार-रविवार की रात अद्भुत दृश्य का कारक बनेगा।  प्रति घंटे 15 से 20 उल्काएं देखने मिल सकती हैं। इस दौरान पृथ्वी टेम्पल टटल धूमकेतु के मार्ग की कक्षा को पार करेगी, तब टेम्पल टटल धूमकेतु का मार्ग में पीछे छूट चुका मलबा पृथ्वी के संपर्क में आने पर जल उठेगा। कई बार धूलकण महीन होने से रात में हल्का उजाला जैसा दिखाई दे जाता है। कई बार बड़े टुकड़े पृथ्वी के संपर्क में आने से किसी अग्नि पिंड की तरह रोशनी की लकीर खींचते चली आती हैं। धूमकेतु का यह मलबा असल में सिंह राशि की दिशा में पड़ने से इसे आम तौर पर सिंह राशि से उल्काएं गिरने का भ्रम आम जन के बीच पाया जाता है। 

अंधेरे में अच्छे से देखे जा सकेंगे
घने अंधेरे में इस उल्का वर्षा को और अच्छे से देखा जाता है। घर की छत या किसी ऊंची जगह पर इस खगोलीय घटना को देखा जा सकता है।

क्या होती है उल्का वर्षा
उल्का वर्षा एक खगोलीय घटना है जिसमें किसी ग्रह पर अकाश के एक ही स्थान से बार-बार कई उल्का बरसते हुए प्रतीत होते हैं। यह उल्का वास्तव में खगोलीय मलबे की धाराओं के ग्रह के वायुमंडल पर अति-तीव्रता से गिरने से प्रस्तुत होते हैं। अधिकतर का आकार बहुत ही छोटा (रेत के कण से भी छोटा) होता है इसलिए वह सतह तक पहुंचने से बहुत पहले ही ध्वस्त हो जाते हैं।

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