पेड़ों की कटाई से पक्षियों का आशियाना तबाह, एक्वेटिक प्रजातियां भी लुप्त

पेड़ों की कटाई से पक्षियों का आशियाना तबाह, एक्वेटिक प्रजातियां भी लुप्त

Anita Peddulwar
Update: 2019-04-22 06:39 GMT
पेड़ों की कटाई से पक्षियों का आशियाना तबाह, एक्वेटिक प्रजातियां भी लुप्त

डिजिटल डेस्क, नागपुर। एक समय था जब बर्ड वाचर अंबाझरी तालाब और गोेरेवाड़ा तालाब पक्षियों को देखने और फाेटोग्राफी करने आते थे। अलग-अलग मौसम में बाहरी पक्षी भी शहर में आते थे, लेकिन अब हालात यह है कि शहर में ही पाई जाने वाली प्रजातियां ही लुप्त हो रही हैं। कही भी पक्षियों के रहने की जगह नहीं बची है। पेड़ों के काटे जाने से उनका आशियाना तबाह हो गया, तो तालाबों में एक्वेटिक प्रजातियां भी लुप्त होने लगी है। डिसॉल्वड ऑक्सीजन के कम होने से मछलियां मरने लगी हैं।  

यह हैं लुप्त हो रही प्रजातियां
नागपुर शहर महाराष्ट्र राज्य की ग्रीनेस्ट सिटी में से एक है। जिसमें विकास तो तेजी से हो रहा है, लेकिन पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों और जीवों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। नागपुर शहर में भी कई ऐसी प्रजातियां है जो लगातार कम होती जा रही है और अब इनका मिलना भी मुश्किल हो रहा है। लुप्त हो रहे पक्षियों में गौरैया (स्पैरो), लेसर फ्लोरिकन (खरमोर), क्वालिस बटेर, क्यूटोरनिक्स, ब्लैक पैट्रीज (काला तीतर), ओरिएंटल बर्ड, फिशिंग ईगल आदि शामिल हैं।

ग्लोबल वार्मिंग बड़ा खतरा
धरती के तापमान का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है, जिसे ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। ग्लोबल वार्मिंग धरती का सबसे बड़ा खतरा है। औद्योगिकीकरण के बाद कार्बन डाई ऑक्साइड का उत्सर्जन पिछले पंद्रह सालों में कई गुना बढ़ा है। पूरे विश्व के कार्बन उत्सर्जन में भारत का योगदान 7.8 प्रतिशत है जो कि बहुत अधिक है। साथ ही विश्व में प्रतिवर्ष दस करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक का उत्पादन हो रहा है।

अंतरिक्ष में भी होड़
पृथ्वी पर जीवित प्राणियों और प्राकृतिक संसाधनाें का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। तापमान बढ़ने से ग्लेशियर पिघल रहे हैं। अंतरिक्ष में भी अलग तरह का प्रदूषण बढ़ने लगा है। सैटेलाइट और अन्य उपकरणों की उपस्थिति वहां खतरा पैदा कर सकती है। इसमें सबसे बड़ा योगदान चीन और अमेरिका का है। 

आज वर्ल्ड अर्थ डे
पहली बार अर्थ डे 22 अप्रैल को मनाया गया था। इसका उद्देश्य पूरी पृथ्वी पर हर जीवित प्राणी और संसाधनों में संतुलन बनाए रखना है। इस दिन पर्यावरण संरक्षण और पृथ्वी को बचाने का संकल्प लिया जाता है। हर वर्ष ‘अर्थ डे नेटवर्क’ संस्था द्वारा इस दिवस पर एक थीम निश्चित कर उस थीम से लोगों में जागरूकता फैलाई जाती है। इस वर्ष पृथ्वी दिवस की थीम ‘प्रोटेक्ट आवर स्पीशीस’ है। 

अतिरिक्त विकल्प खोजना आवश्यक
हमें हर पहलू को ध्यान में रख कर विकास की आेर बढ़ना होगा। हम ग्लोबल वार्मिंग, कार्बन उत्सर्जन, पेड़ों की कटाई तो कर ही रहे हैं। प्रदूषण को लेकर अंतरिक्ष तक पहुंच गए हैं। प्रयास यह होना चाहिए कि इसके अलावा अतिरिक्त विकल्प भी खोजें। 
कौस्तभ चटर्जी, पर्यावरणविद

गंगा नदी स्वच्छ करने जागरूकता
अगले वर्ष 2020 में अर्थ डे नेटवर्क को 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं। हमने ग्रेट ग्लोबल क्लीपअप कैंपेन की शुरूआत की है, जिसमें भारत की गंगा नदी को स्वच्छ रखने के लिए जागरूकता फैलाएंगे और कार्य करेंगे। यह 15 माह यानि 2020 में पूरा हो जाएगा।
माेनोदीप दत्त, असिस्टेंट मैनेजर इंडिया अर्थ नेटवर्क

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