वारदात के समय नाबालिग होने के आधार पर माफ हुई फांसी- रेप और हत्या के आरोपी को राहत 

वारदात के समय नाबालिग होने के आधार पर माफ हुई फांसी- रेप और हत्या के आरोपी को राहत 

Tejinder Singh
Update: 2019-10-22 12:59 GMT
वारदात के समय नाबालिग होने के आधार पर माफ हुई फांसी- रेप और हत्या के आरोपी को राहत 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने घटना के समय नाबालिग होने के आधार पर हत्या व दुष्कर्म के मामले में फांसी की सजा पाए एक युवक को बरी कर दिया है। आरोपी ने दावा किया था कि पुलिस ने जब उसे हत्या व दुष्कर्म के मामले में गिरफ्तार किया था उस समय उसकी उम्र 16 साल नौ महीने में थी। इसलिए उसे हत्या व दुष्कर्म के लिए सुनाई गई फांसी व आजीवन कारावास की सजा नियमों के विपरीत है। नियमानुसार उसका मामला बाल न्याय बोर्ड के पास चलना चाहिए। ठाणे सत्र न्यायालय ने आरोपी को इस मामले में साल 2017 में फांसी की सजा सुनवाई थी। किंतु आरोपी ने नाबालिग होने का दावा करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति संदीप शिंदे की खंडपीठ के सामने आरोपी की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान अतिरिक्त सरकारी वकील अरुणा पई ने कहा कि मौजूदा दुष्कर्म व हत्या के मामले में पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार किया था। जिसमें से एक आरोपी ने खुद को नाबालिग बताया है।

9 मई 2012 को इन दोनों ने नई मुंबई इलाके में दो लड़कियों के साथ नशे की हालात में दुष्कर्म किया था । इसमे से एक लड़की की मौत हो गई थी जबकि एक को आरोपी ने मरा हुआ समझकर छोड़ दिया था। पर वह जीवित थी और उसी ने सारी घटना के बारे में पुलिस को जानकारी दी। दोनों लड़कियां कचरा बिनकर अपना गुजर बसर करती थी। यह मामला बेहद गंभीर है और विरलतम मामलों की श्रेणी में आता है। इसलिए आरोपी को सुनाई गई सजा को यथावत रखा जाए। उन्होंने कहा कि निचली अदालत में भी आरोपी ने खुद के नाबालिग होने का दावा किया था। उस समय ऑसिफिकेशन व रेडियोलॉजी टेस्ट (उम्र जानने के लिए की जाने वाली मेडिकल जांच) के जरीए आरोपी की उम्र की पड़ताल की गई थी। उस दौरान उसकी उम्र 18 साल से अधिक पायी गई थी। इस लिहाज से घटना के समय आरोपी वयस्क था। 

वहीं आरोपी की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता युग चौधरी ने दावा किया कि उनके मुवक्किल की जन्म तारीख 29 अगस्त 1995 है। इस तरह से घटना के समय मेरे मुवक्किल की उम्र 16 साल 9 महीने थी। उन्होंने अपने मुवक्किल की उम्र को लेकर आरोपी के स्कूल से जुड़े दस्तावेज पेश किए। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने व तथ्यों पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि जांच से जुड़े मेडिकल दस्तावेज आरोपी की सही उम्र को नहीं दर्शाते। आरोपी की उम्र के संबंध में अभियोजन पक्ष ने कोई पुष्ट सबूत नहीं पेश किया है। मेडिकल जांच रिपोर्ट से आरोपी की सही उम्र सामने नहीं आयी है। इसलिए हम आरोपी को मामले से मुक्त करते हैं और सत्र न्यायाधीश द्वारा सुनाई गई सजा को रद्द करते है। खंडपीठ ने अब आरोपी को बाल न्याय बोर्ड के सामने आगे की कार्रवाई के लिए पेश करने को कहा है। 
 

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