लोकसभा चुनाव 2019: गडकरी से मुकाबला करेंगे पटोले, अपनों को मनाना है पहली चुनौती

लोकसभा चुनाव 2019: गडकरी से मुकाबला करेंगे पटोले, अपनों को मनाना है पहली चुनौती

Anita Peddulwar
Update: 2019-03-14 05:41 GMT
लोकसभा चुनाव 2019: गडकरी से मुकाबला करेंगे पटोले, अपनों को मनाना है पहली चुनौती

डिजिटल डेस्क, नागपुर। नागपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में इस बार रोचक मुकाबला होने जा रहा है। भाजपा के नितिन गडकरी का मुकाबला कांग्रेस के नाना पटोले से होगा। 1951 में नागपुर लोकसभा बनने के बाद यहां केवल दो बार भाजपा जीत पाई है। 1996 में मंदिर आंदोलन में शामिल हुए बनवारीलाल पुरोहित को कांग्रेस से बाहर होना पड़ा। तब पुरोहित ने भाजपा उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था। उनकी जीत भाजपा की पहली जीत थी। बाद में भी यहां कांग्रेस ही जीतती रही।

1996 के बाद यहां लोकसभा के लिए भाजपा उम्मीदवार तय करने में गडकरी की प्रमुख भूमिका रहती थी, लेकिन भाजपा के लिए उम्मीदवार ढूंढकर लाने की स्थिति बनी रही। कभी उद्यमी रमेश मंत्री तो कभी लोकमंच के अटलबहादुर सिंह पर भाजपा ने दांव लगाया। राजनीतिक जोखिम को दूर से भी भांप लेने में कुशल गडकरी यहां से चुनाव नहीं लड़ते थे। 1985 में विधानसभा चुनाव लड़े भी तो सफल नहीं हुए थे। 29 वर्ष बाद गडकरी ने 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ा तब तक वे भाजपा के अध्यक्ष पद की पारी खेल चुके थे। उस चुनाव में गडकरी ने सर्वाधिक 5,87,867 मत लिए। 6 बार लोकसभा सदस्य रहे कांग्रेस के विलास मुत्तेमवार 3,02,939 मत ही पा सके। बसपा के मोहन गायकवाड़ ने 96,433 व आम आदमी पार्टी की अंजलि दमानिया ने 69,081 मत लिए थे। 2.85 लाख मतों के अंतर से गडकरी की जीत को नागपुर भाजपा के लिए ऐतिहासिक माना जाता है। 

गडकरी के कार्य दिल्ली तक सराहे गए
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा के लिए सब कुछ हरा भरा नहीं है। बसपा ने अनजान से गायकवाड़ को मैदान में उतारा था। दमानिया का नागपुर से कोई संबंध नहीं रहा है। ऐसे में दोनों को मिले मतों को भाजपा विरोध व कुछ हद तक चुनौती माना जाता है। फिलहाल यह जरूर है कि विकास मामले में गडकरी की सराहना नागपुर से दिल्ली तक विरोधी दल के नेता भी करते हैं।

कांग्रेस की गुटबाजी को खत्म करना आसान नहीं
नाना पटोले भंडारा जिले के साकोली क्षेत्र के विधायक रहे हैं। 2009 में उन्होंने भंडारा गोंदिया लोकसभा क्षेत्र में निर्दलीय चुनाव लड़ा। दूसरे स्थान पर रहे। तब गाेपीनाथ मुंडे जैसे भाजपा नेताओं से उनकी करीबी बनी। भाजपा में शामिल हुए। 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने राकांपा के प्रफुल पटेल को पराजित कर दिया। बाद में भाजपा से भी मन खट्टा कर बैठे। भाजपा व लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दिया। कांग्रेस में किसान मोर्चा के अखिल भारतीय अध्यक्ष बन गए। पटोले ओबीसी नेता के तौर पर भी पहचान बनाने का प्रयास करते रहे हैं। छावा संगठन का नेतृत्व करते हैं।

खैरलांजी हत्याकांड के समय निरपराधों पर अन्याय नहीं करने की मांग के साथ वे चर्चा में आए थे। अब वहीं मामला उनके लिए गले की हड्डी बनने की आशंका जताई जा रही है। शहर कांग्रेस में गुटबाजी सबको मालूम है। पटोले की उम्मीदवारी का अंदरूनी विरोध भी चर्चा में रहा है। ऐसे में सभी गुटों को साथ लेकर चलना चुनौती पूर्ण होगा। सुरेश भट सभागृह में सत्कार सम्मेलन व मानकापुर स्टेडियम में बहुजन सम्मेलन के नाम पर पटोले ने अपने समर्थकों के माध्यम से एकता का प्रयास अवश्य किया है। 

पटोले के सामने है चुनौती
नागपुर में जातीय आधार की बात हो तो पटोले की जाति की संख्या अधिक है। राजनीति में भी उनकी जाति के कार्यकर्ता नेता अधिक हैं। ऐसे में गुटबाजी व जातीय गणित पर कांग्रेस व पटोले की ताकत निर्भर रहेगी। दलित, अल्पसंख्यक मत विभाजन को रोकने के लिए मशक्कत करनी पड़ेगी। प्रकाश आंबेडकर से लेकर अन्य नेताओं की चुनौती को भी कांग्रेस नकार नहीं सकती है। फिलहाल नाम तय हुआ है। एक दो दिन में पटोले के समर्थन में कांग्रेस व अन्य घटक की तस्वीर साफ होने के आसार हैं। 
 

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