लोकसेवक की जाँच के पहले अनुमति लिए जाने के प्रावधान को कोर्ट में चुनौती

लोकसेवक की जाँच के पहले अनुमति लिए जाने के प्रावधान को कोर्ट में चुनौती

Bhaskar Hindi
Update: 2021-01-16 10:30 GMT
लोकसेवक की जाँच के पहले अनुमति लिए जाने के प्रावधान को कोर्ट में चुनौती

केन्द्र एवं राज्य सरकार को नोटिस, अगली सुनवाई 23 फरवरी को
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
मप्र हाईकोर्ट में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 में संशोधन कर लोकसेवक की जाँच के पहले अनुमति लिए जाने के प्रावधान जोडऩे को चुनौती दी गई है। चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की डिवीजन बैंच ने केन्द्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई 23 फरवरी को नियत की गई है। नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के डॉ. पीजी नाजपांडे और डॉ. एमए खान की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया है कि केन्द्र सरकार ने भ्रष्टाचार रोकने के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 बनाया था। 2 जुलाई 2018 को इस अधिनियम में संशोधन कर नई धारा 17 ए जोड़ दी गई, जिसके तहत अब लोकसेवकों की जाँच के पूर्व अनुमति लेना आवश्यक होगा। याचिका में कहा गया है कि लोकसेवकों की परिभाषा में सरकारी अधिकारियों के साथ नेता भी आते हैं। जाँच की अनुमति के लिए सरकारी अधिकारियों के पास जाना होगा। सरकारी अधिकारी और नेता अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर जाँच की अनुमति नहीं देने देंगे। अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने तर्क दिया कि लोकसेवकों के खिलाफ जाँच के पूर्व अनुमति लिए जाने का प्रावधान पूरी तरह असंवैधानिक है। इस प्रावधान का फायदा भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं को होगा। प्रारंभिक सुनवाई के बाद डिवीजन बैंच ने केन्द्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया है। 

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