कागजों में कर दिया तालाबों का गहराईकरण, बुझे पड़े हैं जलस्रोत

कागजों में कर दिया तालाबों का गहराईकरण, बुझे पड़े हैं जलस्रोत

Anita Peddulwar
Update: 2019-05-17 08:09 GMT
कागजों में कर दिया तालाबों का गहराईकरण, बुझे पड़े हैं जलस्रोत

डिजिटल डेस्क, साकोली (भंडारा)। जिले के की जलस्रोत इस कदर सूख गए है कि गहराईकरण होने के बाद भी इनमें जलसंचय नहीं हो पा रहा है। साकोली उपविभाग में लघुसिंचाई उपविभाग साकोली अंतर्गत 3 तहसील शामिल हैं। इसमें साकोली, लाखनी व लाखांदुर है। साकोली उपविभाग में मामा तलाब की संख्या 568 है। इनमें से 97 तलाबों के गहराईकरण का काम किया गया, लेकिन तालाबों की हालात नहीं सुधरी। ग्रामीणों ने यहां के तालाबों का कार्य सिर्फ दस्तावेजों में होने का आरोप लगाया है।

इसी तरह साकोली तहसील में 248 मामा तालाब है। इनकी सिंचाई क्षमता 8071 .88 हेक्टेयर है। इनमें 28.56 दलघमी तक जलसंचय किया जा सकता है। लाखनी में तालाबों की संख्या 127 होकर इनकी सिंचाई क्षमता 2854.51 हेक्टेयर है। इसमें 10.1 दलघमी तक जलसंचय किया जा सकता है। वहीं लाखांदुर में तलाबों की संख्या 193 होकर सिंचाई क्षमता4558.25 हेक्टेयर है व 16.13 दलघमी जलसंचय किया जा सकता है। साकोली तहसील के 38 तालाबों का गहराईकरण करने के लिए आरक्षित किया गया था। इसमें 24 तलाबों के काम पूर्ण हो पाए। बाकी 14 तलाबों के गहराईकरण का काम निधि के अभाव से अटका पड़ा हुआ है।

तालाब के गहराईकरण के लिए बीते वर्ष प्रशासन द्वारा बड़ी मात्रा में निधि मंजूर की गई थी। इसमें मंजूर की गई पूर्ण निधि खर्च होने की जानकारी भी संबंधित विभाग द्वारा मिली। लेकिन यह निधि खर्च होकर भी तालाब के जलसंचय में बढ़ोत्तरी दर्ज नहीं हुई। इन तालाबों के सहारे फसल उगाने वाले किसानों का आरोप है कि प्रशासन द्वारा इतनी निधि मंजूर होने पर भी तालाबों के गहराईकरण का काम सिर्फ दस्तावेजों तक ही सीमित रह गया है। तालाब में कीचड़ बड़ी मात्रा में भरा पड़ा है। जिससे तालाब में बरसात का पानी संचय करने में असक्षम है। संबंधित अधिकारियों द्वारा तालाबों का नाममात्र का काम कर निधि का गलत उपयोग किया गया है। यही हाल लाखनी व लाखांदुर तहसील का भी होने का आरोप संबंधित किसानों द्वारा लगाया जा रहा है। तालाबों की गहरा कराने का मुख्य उद्देश किसानों की फसल के लिए ङ्क्षसचाई की सुविधा उलब्ध कराना था। मगर उनकी सिंचाई क्षमता में कोई बदलाव नहीं हुआ। 

बीते वर्ष बरसात के दिनों में बारिश के पानी के साथ बड़ी मात्रा में कीचड़ भी तालाब में गया। जिससे जलसंचय 25 से 30 फीसदी घटा है। तालाबों का कीचड़ नही निकालने से लगातार तालाबों की जलसंचय क्षमता घट रही है। इसका सीधा परिणाम किसानों की फसल पर हो रहा है। इसलिए प्रशासन द्वारा मंजूर की जा रही निधि पर खर्च की जांच करने की मांग क्षेत्र के किसानों द्वारा की जा रही है।

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