पीके को लेकर शिवसेना में अगल-अलग राग, प्रियंका को मिला नंदूरबार आने का न्यौता

पीके को लेकर शिवसेना में अगल-अलग राग, प्रियंका को मिला नंदूरबार आने का न्यौता

Tejinder Singh
Update: 2019-02-06 16:44 GMT
पीके को लेकर शिवसेना में अगल-अलग राग, प्रियंका को मिला नंदूरबार आने का न्यौता

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। राजनीतिक रणनीतिकार और जदयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर की शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे और युवा नेता आदित्य ठाकरे से हुई मुलाकात के बाद कयासों का दौर तेज हो गया है। माना जा रहा है कि प्रशांत किशोर (पीके) आगामी लोकसभा और विधानसभा के चुनाव में शिवसेना के लिए चुनावी रणनीति बनाएंगे। पीके की रणनीतिक कौशल से परिचित शिवसेना के सांसद पार्टी की इस पहल से जहां खुश हैं तो वहीं पार्टी का ही एक अहम धड़ा प्रशांत को भाजपा के एजेंट के तौर पर देख रहा है। प्रशांत किशोर और उद्धव की मुलाकात के बाद इस बात के स्पष्ट संकेत हैं कि भाजपा और शिवसेना के बीच युति होगी। ऐसे में अब शिवसेना नेतृत्व का फोकस चुनाव में ज्यादा-से-ज्यादा सीटें जीतने पर है। दरअसल शिवसेना के पास चुनाव जिताने वाला कैडर तो है परंतु उसके पास चुनाव अभियान को धार देने वाली रणनीति का अभाव है। यही वजह है कि उसने पीके में रूचि दिखाई है और उनसे पहले दौर की बातचीत की है। सूत्र बताते हैं कि उद्धव ठाकरे के बेटे और शिवसेना युवा इकाई के अध्यक्ष आदित्य ठाकरे प्रशांत किशोर को अपने साथ जोड़ने को लेकर ज्यादा उत्साहित हैं। यही वजह रही कि पार्टी के सांसदों के साथ प्रशांत की भेंट कराई गई। मंगलवार को प्रशांत किशोर के साथ चर्चा में शामिल शिवसेना के एक सांसद ने बताया कि इससे एक बात तो शीशे की तरह साफ हुई कि युति बनी रहेगी और दूसरा यह कि पीके का साथ मिला तो चुनाव अखाड़े में गए पार्टी सांसदों का ज्यादा भला होगा।  

भाजपा का आदमी बता खारिज करने की हो रही कोशिश 

हालांकि शिवसेना के साथ पीके को जोड़ने के खिलाफ पार्टी के अंदर भी विरोध शुरू हो गया है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने पीके के शिवसेना के साथ जुड़ने की संभावना को खारिज करते हुए कहा कि शिवसेना और ठाकरे इतना बड़ा ब्रांड है कि उसे किसी पीके की जरूरत नहीं है। पीके को भाजपा और जदयू का आदमी बताते हुए उन्होने कहा कि उनसे शिवसेना को कोई फायदा नहीं होगा। इस मामले में आदित्य ठाकरे को यह समझाने की कोशिश हो रही है कि यदि प्रशांत को चुनावी रणनीतिकार बनाया गया और पार्टी जीती तो इसका श्रेय पीके के खाते में जाएगा, उद्धव के खाते में नहीं। उन्होने पूछा कि यदि पीके इतने अच्छे रणनीतिकार हैं तो उनके रहते कांग्रेस उत्तरप्रदेश विधानसभा के चुनाव में बुरी तरह क्यों हारी। सियासी हलकों में माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की सलाह के बाद प्रशांत उद्धव ठाकरे से मिले हैं ताकि भाजपा और शिवसेना के बीच संबंध सुधरे। अब देखना यह है कि शिवसेना पीके को आखिरकार अपने साथ जोड़ती है या नहीं। बता दें कि 2014 में नरेन्द्र मोदी की जीत और बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जीत का श्रेय पीके के कुशल चुनावी प्रबंधन को दिया जाता है। फिलहाल पीके आन्ध्रप्रदेश में जगनमोहन रेड्डी का चुनाव प्रबंधन भी देख रहे हैं।

 

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