जिप की डिजिटल स्कूलों का वजूद खतरे में, कान्वेंट कल्चर आ रहा पसंद

जिप की डिजिटल स्कूलों का वजूद खतरे में, कान्वेंट कल्चर आ रहा पसंद

Anita Peddulwar
Update: 2019-04-25 10:13 GMT
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डिजिटल डेस्क, लाखांदुर (भंडारा)। जिला परिषद की डिजिटल स्कूलों का वजूद कान्वेंट कल्चर के चलते खतरे में आ गया है। हालात ऐसे हो गए हैं कि नए सत्र के लिए टीचर्स अब स्टूडेंट्स की तलाश के लिए घूम रहे हैं। स्टूडेंट्स की घटती संख्या के कारण ग्रामीण क्षेत्र की स्कूलें खतरे में आ गई है। शासन द्वारा जिले की कई स्कूलों को डिजिटल बनाया गया है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के पैरेंट्स अपने बच्चों को शहरों की स्कूलों में दाखिला करा रहे हैं। स्तरीय शिक्षा व आवाजाही की सुविधा उपलब्ध होने से ग्रामीण अंचल के पैरेंट्स विद्यार्थियों को जिला तथा तहसील स्थानों की शालाओं में भेज रहे हैं। परिणामवश ग्रामीण क्षेत्र की शालाएं बंद होने की कगार पर पहुंच गई है। 

स्टूडेंट्स की तुलना में स्कूलों की संख्या बढ़ गई है। इस बीच सीबीएसई शालाओं के प्रति पैरेंट्स का रूझान अधिक बढ़ रहा है। परिणामवश कई पालक अपने पाल्यों की शिक्षा के लिए जिला मुख्यालय में स्थानांतरित हो रहे हैं। शिक्षा क्षेत्र में तेजी से प्रतियोगिता बढ़ रही है। इसलिए पाल्यों को अंग्रेजी शालाओं में दाखिला दिलानेवाले पालकों की संख्या अधिक है। शहरी स्टूडेंट्स की तरह ग्रामीण भी शिक्षा में आगे बढ़े इसलिए पालक जद्दोजहद करते नजर आ रहे हैं। अधिकांश पैरेंट्स अपने बच्चों की शिक्षा के लिए गांव, घर छोड़कर शहरों में पहुंच रहे हैं। जिला परिषद शालाएं डिजिटल होने के मार्ग पर होते हुए भी शिक्षकों को विद्यार्थियों की तलाश में दर-ब-दर भटकना पड़ रहा है।

ऐसे में शहरी क्षेत्र के शिक्षक भी ग्रामीण परिसर में जाकर विद्यार्थियों की तलाश कर रहे हैं। शाला प्रबंधन द्वारा शिक्षकों को स्टूडेंट्स की तलाश करने के लिए भेजना पड़ रहा है। स्टूडेंट्स को घर से लाने व छोडऩे की व्यवस्था स्कूलों द्वारा की जाती है। उधर ग्रामीण अंचल की जिला परिषद व निजी स्कूलों में स्कूलों की संख्या घटने पर शाला की कक्षाएं अतिरिक्त साबित होने का खतरा शिक्षकों में बना हुआ है। कुछ वर्षों पूर्व शिक्षक को आदर्श मानकर ग्रामीण उसे सम्मान देते थे। अब उन शिक्षकों को विद्यार्थियों की तलाश में दर-ब-दर भटकना पड़ रहा है। 

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