आदिवासियों की आय का प्रमुख साधन है दोना-पत्तल, आज भी शादियों में होता है उपयोग

आदिवासियों की आय का प्रमुख साधन है दोना-पत्तल, आज भी शादियों में होता है उपयोग

Bhaskar Hindi
Update: 2017-11-20 12:07 GMT
आदिवासियों की आय का प्रमुख साधन है दोना-पत्तल, आज भी शादियों में होता है उपयोग

डिजिटल डेस्क, गड़चिरोली। वैसे तो पत्तल और दोने बीते जमाने की चीजें मानी जाती है बावजूद इसके धार्मिक और सामाजिक दस्तूरों में इसकी अनिवार्यता रहती है। ग्रामीण अंचलों में तो हर कार्यक्रम में इसका उपयोग होता है। ये पत्तल बनाने वाले लोग अक्सर ग्रामीण क्षेत्र से ही होते हैं।  यूं तो गड़चिरोली जिला उद्योगों के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है, लेकिन इस जिले को वनसंपदा रूपी वरदान भी मिला है। यही वनसंपदा स्थानीय आदिवासियों  के जीवनयापन हेतु अर्थाजन का जरिया बन चुकी है।

पेड़ों के पत्तों से बनाते हैं पत्तल 
आदिवासी समुदाय के लोग विभिन्न प्रजाति के पेड़ों के पत्ते तोड़कर उनकी पत्तलें बनाकर बेचते हैं। इसके माध्यम से उन्हें जो आमदनी होती है उसी से उनका जीवन चलता है। गड़चिरोली जिले में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। फलस्वरूप गड़चिरोली जिले में विभिन्न प्रजाति के पेड़ आदिवासियों के जीने का सहारा बने हुए हैं। गड़चिरोली जिले में 78 फीसदी जंगल हैं। घने जंगलों से घिरे इस जिले में अब तक कोई बड़ा उद्योग स्थापित नहीं हो पाया है। फलस्वरूप जिले के सुदूर इलाकों में बसे आदिवासी समुदाय के लोगों को किसी भी तरह का रोजगार उपलब्ध नहीं हो रहा। ऐसे में इस समुदाय ने जंगल से ही अपने जीवनयापन का जरिया तलाश लिया है।

गौरतलब है कि आदिवासी नागरिक वनोपज जमा कर अपना जीवनयापन करते हैं। जंगल में विभिन्न प्रजाति के पेड़ों के पत्ते तोड़कर तथा उनके पत्तल तैयार कर उन्हें बाजार में बेचना, यह आिदवासियों के जीवन का अंग बन चुका है। दुर्गम क्षेत्र में प्रत्येक परिवार का एक व्यक्ति पत्तल का व्यवसाय करता ही है। एक तरफ शहरों में जहां शादी और पार्टियों के लिए प्लास्टिक की थालियां उपयोग में लायी जाती हैं वहीं दूसरी ओर दुर्गम क्षेत्र में विवाह समारोह या किसी भी सामाजिक व धार्मिक कार्यक्रम में पत्तल पर ही भोजन किया जाता है। पेड़ों के पत्ते तोड़ने के लिए यह लोग अलसुबह घर से जंगल की ओर निकलते हैं और दोपहर तक पत्ते जमा करने के बाद घर लौट आते हैं। उसके बाद दिनभर पत्तल बनाने के काम में जुट जाते हैं। दुर्गम क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विवाह होते हैं। 

सौ पत्तल का होता है बंडल
पत्तल सैकड़ा के हिसाब से बेचा जाता है। बाजार में पत्तल की कीमत काफी कम है। बावजूद इसके इसकी मांग कीमत की तुलना में अधिक है। शीत ऋतु खत्म होते ही ग्रीष्मकाल में विवाह समारोहों की धूम मची रहेगी। इसलिए अभी से ही पत्तलों की बुकिंग शुरू हो चुकी है जिससे पत्तल व्यवसाय करने वालों के अच्छे दिन आ गए हैं।

तेंदूपत्ता संकलन की आय से होता है दो माह गुजारा
ग्रीष्मकाल में महज 10 से 15 दिन तक चलने वाले तेंदूपत्ता संकलन के कार्य से मिलने वाली मजदूरी से दुर्गम क्षेत्र के लोगों का करीब दो माह तक गुजारा हो जाता है जिस कारण दुर्गम क्षेत्र के लोगों को तेंदूपत्ता संकलन का बेसब्री से इंतजार रहता है। बता दें कि तेंदूपत्ता संकलन करने की मजदूरी तो मिलती ही है, इसके साथ बोनस भी मिलता है। तेंदूपत्ता संकलन के दौरान गड़चिरोली जिले में बाहर जिले के लोग पड़े पैमाने पर आते हैं और दुर्गम क्षेत्र के गांवों में जाकर तेंदूपत्ता संकलन करते हैं। 

वनोपज पर उद्योग निर्माण  करने की  आवश्यकता 
जिले में दुर्गम क्षेत्र के लोग बांस, बेहड़ा, हिरड़ा, महुआ, टोरी, चार आदि वनोपज जमा करके अपना जीवनयापन करते हैं, लेकिन वनविभाग की ओर से अब तक वनोपज पर आधारित किसी केंद्र का निर्माण न किए जाने के कारण लोगों को वनोपज बाजार में बेचनी पड़ रही है। यदि संबंधित विभाग वनोपज जमा करने के लिए केंद्र का निर्माण कर वनोपज के माध्यम से उद्योग निर्माण करे तो दुर्गम क्षेत्र के अनेक लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकता है।
 

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