NOTA पर गए अधिक वोट तो होगा पुनर्मतदान : चुनाव आयोग
NOTA पर गए अधिक वोट तो होगा पुनर्मतदान : चुनाव आयोग
डिजिटल डेस्क, नागपुर। नोटा यानि जनता को सियासी पार्टी द्वारा चुनाव में खड़े किए गए उम्मीदवारों में कोई पसंद नही है। मतदाताओं को चुनाव आयोग द्वारा दिया गया विकल्प कई जगहों पर मतदाताओं को इतना पसंद आ रहा है की बहुमत नोटा के साथ चला जाता है और मामूली वोट हासिल करने वाले चुनाव जीत जाते हैं। इस तरह के बढ़ते मामलों के मद्देनजर राज्य चुनाव आयोग अब नियमों में बदलाव चाहता है। आयोग ने इसके लिए प्रस्ताव तैयार किया है। प्रस्ताव के मुताबिक जहां नोटा को सबसे ज्यादा वोट मिलेंगे, वहां फिर से मतदान कराया जाए।
चुनाव परिणामों ने खोली आंख
दरअसल पंचायत चुनाव में नोटा के इस्तेमाल से आए चुनाव परिणाम को देख कर राज्य चुनाव आयोग का ध्यान इस तरफ गया। हाल ही में हुए ग्राम पंचायत चुनावों में करीब 200 जगहों पर मतदाताओं ने करीब 80 फीसदी वोट नोटा को दे दिए। यहां नोटा के बाद दूसरा सर्वाधिक वोट पाने वाला बेहद मामूली वोट हासिल कर सरपंच बन गए। राज्य चुनाव आयोग सूत्रों के अनुसार एक ग्राम पंचायत में कुल 1179 वोट में से नोटा को 950 वोट मिले, जबकि दूसरे क्रमांक वाला केवल 170 वोट पाकर चुनाव जीत गया।
राज्य चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने दैनिक भास्कर से बातचीत में कहा यह लोकतांत्रिक व्यवस्था का मजाक बनाने जैसा है। इसे जनमत नहीं कहा जा सकता। इस लिए राज्य चुनाव आयोग ने इसे गंभीरता से लिया और नियमों में बदलाव के लिए प्रस्ताव तैयार किया है। इसी साल पालघर जिले के दाभाडी ग्राम पंचायत चुनाव में चार उम्मीदवारों में से कोई भी सौ का आकड़ा पार नहीं कर सका जबकि 632 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना।
पंसद आ रहा नोटा
मतदान केंद्र तक जाने और किसी उम्मीदवार को वोट न देकर नोटा का विकल्प चुनने वालों की संख्या बढ रही है। बीते महिने हुए विधान परिषद की शिक्षक व स्नातक सीटो के लिए हुए चुनाव में भी मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना। कोकण स्नातक सीट पर 336 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया, जबकि नाशिक शिक्षक सीट पर 103 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना।
2014 से 2017 तक आम चुनावों में नोटा का आकड़ा इस प्रकार रहा
बिहार 9.47, पश्चिम बंगाल 8.31, उत्तर प्रदेश 7.57, मध्य प्रदेश 6.43, राजस्थान 5.89, तमिलनाडु 5.62, गुजरात- 5.51, महाराष्ट्र 4.83, छत्तीसगड 4.01, आंध्र प्रदेश 3.08, मिजोरम 0.38.