विवाहित बेटियों को मुआवजा देना उचित -हाईकोर्ट

 विवाहित बेटियों को मुआवजा देना उचित -हाईकोर्ट

Anita Peddulwar
Update: 2020-03-24 12:13 GMT
 विवाहित बेटियों को मुआवजा देना उचित -हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। सड़क दुर्घटना में मां के निधन के चलते विवाहित बेटी भी मुआवजे के लिए पात्र है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र स्टेट रोड ट्रांसपोर्ट कॉर्पोरेशन  (एमएसआरटीसी) की ओर से बेटियों को मुआवजे के लिए अपात्र ठहराए जाने की अपील को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया है। एमएसआरटीसी ने यह अपील मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल की ओर से मुआवजे के संबंध में दिए गए आदेश के खिलाफ की थी। 

अपील में दावा किया था कि मृतक महिला की उम्र 65 साल थी। उसकी बेटियां विवाहित थी इसलिए वे अपनी माँ पर आश्रित नहीं थी। लिहाजा वे बिल्कुल भी मुआवजा पाने की हकदार नहीं हैं। बाजार में प्याज बेचकर अपनी जीविका चलाने वाली 65 वर्षीय द्रुपदबाई शेलके की सड़क पार करते समय हुई दुर्घटना के चलते मौत हो गई थी। यह सड़क दुर्घटना एमएसआरटीसी की बस से हुई थी। इसलिए शेलके के बेटे व बेटियों ने मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल में मुआवजे के लिए आवेदन दायर किया था। साल 2016 में ट्रिब्यूनल ने शेलके के परिजनों को नौ लाख 25 हजार रुपये नौ प्रतिशत ब्याज के साथ मुआवजा देना का आदेश दिया। इसमें से ट्रिब्यूनल ने शेलके की हर बेटी को एक-एक लाख रुपए देने को कहा। 

ट्रिब्यूनल के इस आदेश के खिलाफ एमएसआरटीसी ने हाई कोर्ट में अपील की। न्यायमूर्ति भारती डागरे के सामने अपील पर सुनवाई हुई। एमएसआरटीसी के वकील ने दावा किया कि ट्रिब्यूनल का शेलके की मासिक आय 5000 रुपये तय करने का निष्कर्ष उचित नहीं है। क्योंकि उसकी उम्र 65 वर्ष थी। सड़क दुर्घटना शेलके की लापरवाही से हुई थी। इस लिहाज से मुआवजे की रकम काफी अधिक प्रतीत हो रही है। इसके अलावा विवाहित बेटियों को मुआवजा देने का निर्देश भी खामीपूर्ण है। क्योंकि वे अपनी माँ पर आश्रित नहीं थीं। वहीं शेलके के परिजनों के वकील ने ट्रिब्यूनल के आदेश को न्यायसंगत बताया। 
 
मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि शेलके के बेटे खेती करते थे, शेलके बजार में कृषि उत्पाद बेचकर अपना घर चलाती थी। इस लिहाज से 5000 रुपए उसकी मासिक आमदनी मानना पूरी तरह से उचित है। जहां तक बेटियों की बात है तो वे अपनी माँ पर किस तरह से निर्भर थी इसको लेकर उन्होंने  कोई प्रमाण नहीं दिया है। ऐसे में एमएसआरटीसी का बेटियों को एक लाख रुपए मुआवजे की रकम पर आपत्ति जताना तर्क संगत है, लेकिन विवाहित बेटियां मुआवजे के लिए बिल्कुल भी पात्र नहीं है इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। 

न्यायमूर्ति ने कहा कि सड़क दुर्घटना मां के निधन के चलते बेटियां अपनी मां के प्रेम व स्नेह से वंचित हुई है चूकि बेटिया अपनी मां पर किस तरह निर्भर थी इसको लेकर किसी तरह का प्रमाण नहीं पेश किया गया है इसलिए मुआवजे की रकम को एक लाख से 50 हजार किया जाता है। मुआवजे की यह रकम बेटियों को माँ के प्रेम व स्नेह से वंचित होने के लिए दी जा रही है। इस तरह से न्यायमूर्ति ने ट्रिब्यूनल के बेटियों को मुआवजे देने के लिए तय की गई रकम के हिस्से में सिर्फ बदलाव किया और कॉर्पोरेशन की अपील को खारिज कर दिया। 

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