नानाजी को भारत रत्न मिलने से चित्रकूट में रहा उत्सव का माहौल

नानाजी को भारत रत्न मिलने से चित्रकूट में रहा उत्सव का माहौल

Bhaskar Hindi
Update: 2019-01-28 07:57 GMT
नानाजी को भारत रत्न मिलने से चित्रकूट में रहा उत्सव का माहौल

डिजिटल डेस्क, सतना। नानाजी देशमुख को मरणोपरांत भारत रत्न मिलने से समूचा चित्रकूट गदगद है। नानाजी के साथ वर्षों साथ रहने वाले विद्वानों ने उनके साथ बिताए गए पलों के संस्मरणों को साझा किए। सियाराम कुटीर (नानाजी का निवास) समेत दीनदयाल शोध संस्थान में तो मानो उत्सव जैसा माहौल है। आने-जाने वाले और लोगों के बधाइयां देने का तांता लगा है। गौरतलब है कि 60 बरस की उम्र में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने के बाद नानाजी ने चित्रकूट को अपनी कर्मस्थली बनाई। बताते हैं कि अनुसुइया आश्रम के परमहंस स्वामी भगवानानंद जी महराज के कहने पर नानाजी चित्रकूट आए थे।

क्या कहते थे संत
दीनदयाल शोध संस्थान के राष्ट्रीय महासचिव अभय महाजन बताते हैं कि अनुसुइया आश्रम के परमहंस महंत भगवानानंद जी महराज हमेशा कहते थे कि नानाजी पूर्व जन्म में यहीं के संत थे और उनके कुछ जीवन के कार्य अधूरे रह गए थे, जिसे पूरा करने के लिए वो चित्रकूट आए हैं। श्री महाजन के मुताबिक नानाजी जीवनमुक्त आत्मा थे। उन्होंने पहली मर्तबा कहा था कि राजनीति में भी रिटायरमेंट की उम्र होनी चाहिए। यही वजह रही कि उन्होंने 60 वर्ष की आयु में सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया था। नानाजी ने हमेशा अपने ध्येय वाक्य मैं अपने लिए नहीं, अपनों के लिए हूं...मेरे अपने वो हैं जो पीड़ित और उपेक्षित हैं उनको लक्ष्य में लेकर लोगों के लिए काम किया।

शुरुआत और अंत में मैं ही साथ था- डॉ. जैन
सदगुरु सेवासंघ ट्रस्ट के ट्रस्टी डॉ. बीके जैन अपने अनुभव बांटते हुए कहते हैं कि यह मेरा सौभाग्य रहा कि जब वर्ष 1991 में नानाजी चित्रकूट आए तो उन्होंने नेत्र चिकित्सालय में मुझसे मिले। चूंकि उनका अच्छा परिचय अरविंद भाई मफतलाल से था तो इस लिहाज से नानाजी हमारे यहां आए। उन्होंने अस्पताल, गौशाला और स्कूल देखा तो बहुत खुश हुए। उनके अंदर एक पीड़ा थी ग्रामीणों के लिए, किसानों के लिए, कृषि के लिए और गरीबों के लिए। उन्होंने इसके उत्थान के लिए कार्य करके भी दिखाया। उन्होंने एक संदेश दिया...एक विजन दिया और एक मिशन दिया कि गांव का उत्थन कैसे किया जाता है। गांधीजी ने भी सही कहा था कि गांव को शहर की ओर मत ले जाओ शहर को गांव की ओर ले जाओ। इसी पर नानाजी ने काम किया।

विश्वविद्यालय वरदान बन गई- डॉ. गौतम
महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. नरेशचन्द्र गौतम कहते हैं कि 25 बरस पहले जब नानाजी यहां आए तो उन्हें लगा कि यहां का क्षेत्र...यहां के लोग बड़े उपेक्षित हैं। उत्पादन की दृष्टि से कृषि क्षेत्र बड़ा पिछड़ा था। उन्होंने दीनदयाल शोध संस्थान के जरिए लोगों को जोड़ा, गांवों को गोद लिया। लक्ष्य ये था कि यदि हम गांवों का विकास करेंगे तो देश का उत्थान होगा। इसी दृष्टि से नानाजी ने शिक्षा को महत्व दिया। प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक उनकी चिंता थी। इसको लेकर उन्होंने सुरेन्द्रपाल ग्रामोदय विद्यालय और महात्मा गांधी विश्वविद्यालय की बुनियाद रखी। 25 वर्ष पहले नानाजी ने कहा था कि यदि हम गांवों को आगे बढ़ाना चाहते हैं तो कौशल की शिक्षा बहुत जरूरी है।

 

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