टिपेश्वर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के संरक्षण पर 19 को सुनवाई, बिना अनुमति विकास कार्य पर दायर जनहित याचिका

टिपेश्वर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के संरक्षण पर 19 को सुनवाई, बिना अनुमति विकास कार्य पर दायर जनहित याचिका

Anita Peddulwar
Update: 2018-09-01 11:50 GMT
टिपेश्वर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के संरक्षण पर 19 को सुनवाई, बिना अनुमति विकास कार्य पर दायर जनहित याचिका

डिजिटल डेस्क, नागपुर। बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में मानवीय गतिविधियों के कारण बर्बाद होती टिपेश्वर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी के संरक्षण का मुद्दा उठाया गया है। वासुदेव विधाते द्वारा दायर इस जनहित याचिका में केंद्र, महाराष्ट्र और कर्नाटक की सरकारों समेत प्रधान वन संरक्षक नागपुर, यवतमाल जिलाधिकारी, राष्ट्रीय महामार्ग प्राधिकरण, नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी व अन्य को प्रतिवादी बनाया गया है। मामले में याचिकाकर्ता का पक्ष सुन कर हाईकोर्ट ने प्रतिवादियों से 19 सितंबर तक जवाब तलब किया है। 

बाघों के लिए उपयुक्त क्षेत्र
याचिकाकर्ता के अनुसार यवतमाल जिले में वर्ष 1997 में टिपेश्वर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी को मान्यता प्रदान की गई थी। 148.632 वर्ग किमी के इस वन क्षेत्र को भारत सरकार ने ईको-सेंसटिव जोन घोषित किया था। यह वन क्षेत्र विदर्भ के यवतमाल से लेकर आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के वन क्षेत्रों तक जुड़ा हुआ है तथा बाघों के रहने के लिए सबसे उपयुक्त इलाका है। यहां कई बाघ रह रहे हैं, लेकिन हाल के दिनों में इस वन क्षेत्र में मानवीय गतिविधियां काफी बढ़ गई हैं, जिसके कारण यह क्षेत्र बर्बाद हो रहा है। 

ये हो रहे विकास कार्य
टिपेश्वर के 400 मीटर के नजदीक  कोपामंडवी बीट में 4 पत्थर की खदानें हैं। जहां रात को भी कार्य जारी रहता है। यहां निरंतर ब्लास्टिंग और खनन का काम चलता है, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। टिपेश्वर वन क्षेत्र की सीमा पर बड़ी संख्या में व्यवसायिक दृष्टिकोण से रिसाॅर्ट बनाए जा रहे हैं। इस जोन में 35 एकड़ जमीन पर करीब 100 से अधिक विले तैयार किए जा रहे हैं, जिसके चलते यहां के 1000 से भी अधिक पेड़ों की कटाई कर दी गई है।

दूसरी ओर यहां 3.5 किमी लंबा अंतरराज्यीय छन्नका-कोराटा बैराज का कार्य शुरू किया गया है। इसी तरह टिपेश्वर से राष्ट्रीय महामार्ग क्रमांक 44 होकर जा रहा है। ये कार्य बगैर वन्यजीवों की परवाह किए और बिना नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ की अनुमति के किए जा रहे हैं। याचिकाकर्ता के अनुसार इस जोन में बढ़ी मानवीय दखलअंदाजी के कारण बाघों और मनुष्यों का आमना-सामना बढ़ गया है। करीब 15 लोगों की इसमें जान चली गई है।

याचिकाकर्ता का आरोप है कि बेतरतीब ढंग से चलाए जा रहे इन विकास कार्यों के चलते यह सेंचुरी बर्बाद हो रही है। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से विनती कि है कि वे बगैर नियमों का पालन किए चलाए जा रहे इन विकास कार्यों के विपरीत असर की गंभीरता को देखते हुए सरकार को आवश्यक आदेश जारी करें। याचिकाकर्ता की ओर से एड. अविनाश कपगाते और एड. वंदन गडकरी ने पक्ष रखा। 

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