सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण पर सुनवाई, चव्हाण बोले - केंद्र की भूमिका निराशाजनक
सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण पर सुनवाई, चव्हाण बोले - केंद्र की भूमिका निराशाजनक
डिजिटल डेस्क, मुंबई। मराठा आरक्षण को लेकर गठित मंत्रिमंडल की उपसमिति के अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने आरक्षण के संदर्भ में केंद्र सरकार की भूमिका को निराशाजनक व हैरानीपूर्ण बताया है। इस बारे में पत्रकारों से बातचीत के दौरान चव्हाण ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में आरक्षण को लेकर केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की भूमिका उन्हें संदिग्ध नजर आयी हैं। जबकि भाजपा ने चव्हाण के आरोपों को बेबुनियाद बताया है। उन्होंने कहा कि सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल ने कोर्ट में कहा कि संविधान में किए गए 102 वें संसोधन के अंतर्गत राज्यों को सामाजिक व शैक्षणिक रुप से नए पिछड़े वर्ग की पहचान करने अथवा तैयार करने का अधिकार है कि नहीं यह परखना पड़ेगा। चव्हाण ने कहा कि हमे अपेक्षा थी कि मराठा आरक्षण के बारे में केंद्र के अट्रानी जनरल की भूमिका बेहद स्पष्ट व सकारात्मक होगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अट्रानी जनरल की मामले को लेकर भूमिका से साल 2018 में महाराष्ट्र विधिमंडल द्वारा पारित किए आरक्षण के वैध न होने के संकेत मिल रहे हैं। चव्हाण ने कहा कि मुझे मराठा आरक्षण के बारे में केंद्र सरकार की भूमिका बेहद हैरानीपूर्ण व निराशाजनक लगी है।
उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने भले ही सुप्रीम कोर्ट में मामले को लेकर प्रतिकूल भूमिका अपनाई है इसके बावजूद सर्वोच्च न्यायलय ने राज्य सरकार के आग्रह को स्वीकार किया है। इसके लिए मैं सुप्रीम कोर्ट का आभारी हूं। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय से आग्रह किया था कि देश के जिन राज्यों में आरक्षण के मुद्दे सुनवाई के लिए प्रलंबित है, उन्हें नोटिस जारी किया जाए। जिसे सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है। इसलिए हम सुप्रीम कोर्ट के आभारी है। क्योंकि इससे अन्य राज्यों के आरक्षण के मुद्दे को भी सुना जाएगा।
102 वां संशोधन एसईबीसी कानून पर नहीं होता लागू-शेलार
वहीं इस बारे में भारतीय जनता पार्टी के विधायक आशीष शेलार ने कहा है कि संविधान का 102 वां संशोधन एसईबीसी कानून पर लागू नहीं होता है। क्योंकि महाराष्ट्र में पहले से इस बारे में कानून था। इसलिए यह संसोधन एसईबीसी के बारे में प्रसांगिक नहीं है। बांबे हाईकोर्ट ने भी अपने आदेश में इस बात को स्पष्ट करते हुए मराठा आरक्षण को कायम रखा था। उन्होंने कहा कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान जो भूमिका अपनाई गई है। उससे किसी भी रुप में मराठा आरक्षण का विरोध नहीं होता है। उन्होंने कहा कि अटॉर्नी जनरल को सिर्फ आर्थिक पिछड़े वर्ग (ईडब्लयूएस) के आरक्षण के लिए पैरवी के लिए बुलाया गया था। इसलिए उन्होंने सिर्फ इस संदर्भ में अपना पक्ष रखा है।