आरबीआई को हाईकोर्ट का निर्देश- नेत्रहीनों को नोट पहचानने में सहूलियत के लिए करें मोबाइल ऐप विकसित

आरबीआई को हाईकोर्ट का निर्देश- नेत्रहीनों को नोट पहचानने में सहूलियत के लिए करें मोबाइल ऐप विकसित

Tejinder Singh
Update: 2019-02-05 16:51 GMT
आरबीआई को हाईकोर्ट का निर्देश- नेत्रहीनों को नोट पहचानने में सहूलियत के लिए करें मोबाइल ऐप विकसित

डिजिटल डेस्क, मुंबई। नेत्रहीनों को नोटो को पहचनाने व परखने में आसानी हो इसके लिए रिजर्व बैंक आफ इंडिया(आरबीआई)  मोबाइल ऐप विकसित करने पर विचार करे। मंगलवार को बांबे हाईकोर्ट ने आरबीआई को एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह सुझाव दिया है। मुख्य न्यायाधीश नरेश पाटील व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ ने कहा कि आरबीआई नेत्रहीनों के लिए शुुरु की गई अपनी तकनीकि पहल को शीघ्रता से पूरा करने की कोशिश करे। ताकि उन्हें मुद्राओं को पहचानने में असानी हो। नेशनल एसोसिएशन फार ब्लाइंज(नैब) ने इस विषय पर हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है। जिस पर सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने आरबीआई को उपरोक्त सुझाव दिया। 
याचिका में दावा किया गया है कि आरबीआई की ओर से जारी की विभिन्न नोटों के बीच अंतर कर पाने में नेत्रहीनों को दिक्कत आ रही है। वे नए सिक्कों को पहचनने में भी कठिनाई महसूस कर रहे है। जबकि पुरानी नोटों व सिक्कों के साथ ऐसा नहीं था। नैब की अोर से अधिवक्ता उदय वारुंजकर ने खंडपीठ को नेत्रहीनों को नोट पहचानने में आनेवाली मुश्किलों की जानकारी दी। सुनवाई के दौरान आरबीआई की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता ने कहा कि हमने सौ रुपए से अधिक के नए नोटों को पहचानने में नेत्रहीनों को आसानी हो इसके लिए इंतजाम किए है। जिसके तहत नोट में एक चिन्न बनाया गया है। जिससे नेत्रहीन नोटों की पहचान असानी से कर सकते है। इसके अलावा आरबीआई ने एक तकनीकि पहल भी की है। जिसके लिए टेंडर भी जारी कर दिए गए है। इस पहल के तहत हार्डवेयर ड्राइवेन डिवाइस विकसित किया जाएगा। 
इस पर खंडपीठ ने कहा कि आरबीआई विदेशी मुद्राओं की उन विशेषताओं पर भी गौर करे जिससे वहां के नेत्रहीनों को नोट पहचानने में अासानी होती है। इस दौरान खंडपीठ ने कहा कि क्या अमेरिका में नोटों की पहचना के लिए मोबाइल आधारित ऐप है? खंडपीठ ने आरबीआई को नोटों की पहचान के लिए ऐप विकसित करने के सुझाव पर चार सप्ताह के भीतर अपना जवाब देने को कहा है। 

अंग प्रत्यारोपण को लेकर सरकार के हलफनामे पर हाईकोर्ट व्यक्त किया असंतोष
    
वहीं अंग प्रत्यारोपण को लेकर अदालत के निर्देशों के अनुरुप हलफनामा न दायर करने के लिए बांबे हाईकोर्ट ने मंगलवार को असंतोष व्यक्त किया है। इसके साथ ही कोर्ट ने मामले को लेकर राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग व मेडिकल शिक्षा विभाग के सचिव को संयुक्त रुप से हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट ने सरकार से जानना चाहा है कि उसने अंग प्रत्यारोपण को लेकर अस्पताल आधारित कमेटी के सदस्यों को जरुरी प्रशिक्षण प्रदान करने की दिशा में कौन से कदम उठाए है? जिन अस्पतालों में सालाना अंग प्रत्यारोपण के 25 मामले होते है ऐसे अस्पतालों की अस्पताल आधारित कमेटी को अंग प्रत्यारोपण की अनुतमि प्रदान करने की इजाजत दी गई है। जिन अस्पतालों में साल में 25 से कम अंग प्रत्यारोपण होते है वहां के मरीज को सरकार की एथारिइजेशन कमेटी से मंजूरी लेनी पड़ती है। 
 मामले की पिछली सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सरकार को प्रत्यारोपण के ताजा आकड़े अपलोड करने के लिए व्यवस्था बनाने, अस्पताल आधारित कमेटी को प्रशिक्षण प्रदान करने व सरकार की एथाराइजेशन कमेटी को जरुरी सुविधाएं व कर्मचारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था। लेकिन सोमवार को मामले को लेकर सरकार की ओर से दायर किए गए हलफनामे पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति अभय ओक व न्यायमूर्ति अजय गड़करी की खंडपीठ ने अप्रसन्नता जाहिर की। इस दौरान याचिकाकर्ता के वकील उदय वारुंजकर ने कहा कि सरकार ने एथाराइजेशन कमेटी के लिए स्टोनोग्राफर का पद मंजूर तो किया है लेकिन उस पर किसी की नियुक्ति नहीं की है। इसके अलावा सरकार ने कोर्ट के कई निर्देशों का पालन नहीं किया है। इन दलीलों को सुनने के बाद खंडपीठ ने राज्य के मेडिकल व सार्वजनिक स्वास्थय विभाग के अधिकारियों को मामले को लेकर संयुक्त रुप से तीन सप्ताह में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। 
 

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