पीएमजीकेपी को लेकर हाईकोर्ट ने केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय से मांगा जवाब

पीएमजीकेपी को लेकर हाईकोर्ट ने केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय से मांगा जवाब

Tejinder Singh
Update: 2020-12-26 13:35 GMT
पीएमजीकेपी को लेकर हाईकोर्ट ने केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय से मांगा जवाब

डिजिटल डेस्क, मुंबई। निजी तौर पर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करनेवालों को भी क्या प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज (पीएमजीकेपी) का भी लाभ दिया जा सकता है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव को इस बारे में अपना रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। न्यायमूर्ति एस जे काथावाल व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ ने यह निर्देश नईमुंबई निवासी किरण सुरगाडे की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। याचिका में सुरगाडे ने दावा किया था कि उसके पति आयुर्वेदिक डॉक्टर थे। नई मुंबई इलाके में उनका दवाखाना था। कोरोना संक्रमण के चलते मेरे पति ने अपना क्लिनिक बंद कर दिया था किंतु इस बीच 31 मार्च 2020 को नई मुंबई महानगरपालिका के आयुक्त ने उन्हें एक नोटिस जारी किया। जिसमें मेरे पति को क्लिनिक खोलने का निर्देश दिया गया था। नोटिस में कहा गया था कि यदि वे क्लिनिक नहीं खोलते है तो उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 188 के तहत मुकदमा चलाया जाएगा। 

याचिका के मुताबिक इस नोटिस के बाद याचिकाकर्ता के पति ने अपना क्लीनिक खोला था। इस दौरान वे मरीजो का इलाज करते समय कोरोना वायरस के संपर्क में आ गए। जिसके चलते उनका निधन हो गया। पति के निधन के बाद याचिकाकर्ता ने न्यू इंडिया एसुरेन्स कंपनी लिमिटेड पास पीएमजीकेपी के तहत 50 लाख रुपए के मुआवजे का दावा किया। किंतु कंपनी ने यह कह कर मुआवजा देने से इंकार कर दिया कि उसके पति ऐसे किसी अस्पताल के डॉक्टर नहीं थे जिसे कोरोना मरीज के इलाज के लिए निर्धारित किया गया था। इसके बाद सुरगाडे ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में बीमा कंपनी को 50 लाख रुपए मुआवजे के तौर पर जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई है। 

खंडपीठ के सामने सुनवाई के दौरान सहायक सरकारी वकील कविता सोलुंके ने कहा कि राज्य सरकार ने इस विषय को लेकर केंद्र सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय को पत्र लिखा है। सरकारी वकील ने कहा कि चूंकि निजी डॉक्टरों ने सरकार के निर्देश के बाद अपने क्लिनिक खोले थे। सरकार ने यह निर्देश मरीजों के हित में जारी किया था। जिससे उनकी परेशानी काम हो सके। इसे ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को  पत्र लिखा है।

 इस बात को जानने के बाद खंडपीठ ने केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव को इस मामले में अपना रूख स्पष्ट करने का निर्देश दिया। खंडपीठ ने फिलहाल इस मामले की सुनवाई 7 जनवरी 2021 तक के लिए स्थगित कर दी है। 

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