7 साल से लापता व्यक्ति नहीं मिला तो माना जाएगा मृत : HC

7 साल से लापता व्यक्ति नहीं मिला तो माना जाएगा मृत : HC

Tejinder Singh
Update: 2017-11-21 13:25 GMT
7 साल से लापता व्यक्ति नहीं मिला तो माना जाएगा मृत : HC

डिजिटल डेस्क, कृष्णा शुक्ला, मुंबई। यदि किसी शख्स के बारे में 7 साल तक कुछ भी पता नहीं चल सका, तो उसे मृत माना जाएगा। इस बात का हवाला देकर दो साल से लापता पिता के दो बच्चों को बांबे हाईकोर्ट ने मुआवजे की रकम देने से इंकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि यदि किसी का सात साल तक कोई पता न चले, तभी उसे मृत माना जा सकता है। मुआवजे की यह रकम जमीन अधिग्रहण के बदले मिली है। 

कोर्ट में बच्चों की दलील

रत्नागिरी निवासी रमेश सवरडेकर की जमीन सरकारी परियोजना के लिए अधिग्रहित की गई थी। इस जमीन का मुआवजा 10 लाख रुपए बना है। जिसे दिए जाने की मांग को लेकर रमेश के दो बच्चों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में बच्चों ने दावा किया था कि वे अपने पिता के उत्ताराधिकारी हैं। दो साल पहले उनकी मां का निधन हो गया और पिता दो साल से लापता हैं। इस संबंध में साल 2015 में पुलिस में पिता की गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई गई थी। फिलहाल उनके माता-पिता नहीं है, इसलिए सरकारी अधिकारियों को निर्देश दिया जाए की मुआवजे की रकम का उन्हें भुगतान करें।  

जमीन मालिक के निधन को लेकर कोई प्रमाण नहीं 

मुख्य न्यायाधीश मंजूला चिल्लूर और न्यायमूर्ति एमएस सोनक की खंडपीठ ने कहा कि हमारे पास कोई सबूत नहीं है कि याचिकर्ताओं के पिता और जमीन मालिक का निधन हो गया है। ऐसा कोई दस्तावेज भी नहीं है, जो यह साबित करे कि मुआवजे की रकम अपने बच्चों को ही देना चाहता था। अदालत ने कहा कि हम पिता की गुमशुदगी की शिकायत को उनके मृत होने का प्रमाण नहीं मान सकते। थोड़ी देर के लिए मान लें कि बच्चों के पिता नहीं है, लेकिन पिता के लापता होने की शिकायत साल 2015 में दर्ज कराई गई है। कानूनन किसी व्यक्ति के सात साल तक लापता रहने पर ही उसे मृत माना जा सकता है। इसलिए बच्चों को 2022 तक इंतजार करना पड़ेगा।

रकम को फिक्स डिपॉजिट में रखने का निर्देश

खंडपीठ ने साफ किया कि ऐसी स्थिति में मुआवजे की रकम बच्चों को देने का निर्देश नहीं दे सकते । बच्चों के पिता का फिलहाल पता नहीं है, इसलिए अधिकारियों को मुआवजे की इस रकम को जमीन के मालिक के नाम पर राष्ट्रीयकृत बैंक में फिक्स डिपॉजिट में रखने का निर्देश देते हैं। जिस पर रकम पर उचित ब्याज मिले। यह कहते हुए खंडपीठ ने याचिका को समाप्त कर दिया। 

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