ओपन कैप में रख्री  58.80 करोड़ की 32 हजार मीट्रिक टन धान हो गई मिट्टी ! 

ओपन कैप में रख्री  58.80 करोड़ की 32 हजार मीट्रिक टन धान हो गई मिट्टी ! 

Bhaskar Hindi
Update: 2020-11-30 12:46 GMT
ओपन कैप में रख्री  58.80 करोड़ की 32 हजार मीट्रिक टन धान हो गई मिट्टी ! 

डिजिटल डेस्क सतना। समर्थन मूल्य पर खरीफ के विगत उपार्जन वर्ष (2019-20) के दौरान  40 हजार किसानों से  4 अरब 53 करोड़ 75 लाख रुपए के एवज में खरीदी गई  25 लाख क्ंवटल धान में से ओपन कैप में भंडारित कराई गई तकरीबन 58 करोड़ 80 लाख रुपए मूल्य की लगभग 32 हजार मीट्रिक टन धान समय रहते मिलिंग नहीं होने के कारण मिट्टी हो चुकी है। सिजहटा स्थित मार्फेड का ओपन कैप इसका सबसे बड़ा साक्ष्य है। जानकारों के एक अनुमान के मुताबिक यहां भंडारित 50 हजार क्ंिवटल धान इस कदर बर्बाद हुआ है,अब इस पर मवेशी भी मुंह नहीं मारते हैं। मौहारी, रेवरा, बाबूपुर और चोरहटा के ओपन कैप में भंडारित पिछले साल के धान का भी यही हाल है। 
 आखिर कौन जिम्मेदार 
सवाल यह है कि किसानों ने खरीदे गए करोड़ों रुपए के धान की इस बर्बादी के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? सरकार को राजस्व की इस भारी क्षति की भरपाई क्या अब जिला उपार्जन समिति, नागरिक आपूर्ति निगम (नान),मार्फेड और  स्टेट वेयर हाउङ्क्षसग कारपोरेशन (एसडब्ल्यूसी) के बीच दौडऩे वाले कागजी घोड़ों से हो जाएगी? जिले के ओपन कैप में भंडारित करोड़ों रुपए मूल्य के अन्न भंडारण की सुरक्षा के लिए सतत निगरानी की जिम्मेदारी जिला उपार्जन समिति और नान से शुरु होती है। हर माह प्रति टन पर 80 रुपए का  स्टोरेज चार्ज  वसूलने वाले मार्फेड , एसडब्ल्यूसी और प्रायवेट एजेंट भी इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं। 
अंधेरगर्दी की हद : आज आखिरी दिन :-------- 
शासनादेश के  तहत ओपन कैप पर भंडारित धान की सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर खरीदी सीजन के दौरान मिलिंग हो जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। समर्थन मूल्य पर धान खरीदी  का नया सत्र (वर्ष-2020-21) 15 दिन पहले शुरु हुआ था,मगर पिछले साल के धान की मिलिंग अभी तक नहीं शुरु हो पाई है। इसी बीच अहम तथ्य यह भी है कि शासन के निर्देशों के तहत भंडारित धान की शत-प्रतिशत मिलिंग 30 नवंबर तक हर हाल में पूरी हो जानी चाहिए थी। 
 क्यों आई यह नौबत :------
ओपन कैप पर भगवान भरोसे पड़े करोड़ों रुपए के धान की बर्बादी के सवाल पर अब जिम्मेदार परस्पर एक दूसरे के सिर पर ठीकरा फोड़ रहे हैं। आरोप यह भी हैं कि शीर्ष स्तर पर  कस्टम मिलिंग राइस (सीएमआर) पॉलिसी ही विलंब से बनाई गई। विभिन्न मदों के दाम ही देर से तय हुए।  सीएमआर पॉलिसी मार्च में जब आई तब तब खरीदी का काम बंद हो चुका था। लॉकडाउन के बीच जैसे-तैसे अप्रैल में मिलिंग का काम शुरु हुआ तो नान के साथ राइस मिलर के एग्रीमेंट की नई पेंच फंस गई। अभी कस्टम मिलिंग शुरु ही हुई थी कि 15 अप्रैल से समर्थन मूल्य पर गेहं की खरीदी का काम शुरु हो गया। इस बीच मिलिंग के बीसवें दिन एमडी ने गेहंू उपार्जन का हवाला देकर मिलिंग का काम बंद करा दिया। मिलिंग मई में फिर से शुुरु हुई। विगत वर्ष ही एक इत्तेफाक यह भी रहा कि खरीदी सीजन और गर्मी के मौसम भी बारिश से पैदा हालातों को जिला उपार्जन समिति संभाल नहीं पाई।
 

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