सिंचाई घोटाला: अजित पवार को क्लीन चिट मिलने के बाद ईडी या सीबीआई से जांच कराने की उठ रही मांग

सिंचाई घोटाला: अजित पवार को क्लीन चिट मिलने के बाद ईडी या सीबीआई से जांच कराने की उठ रही मांग

Anita Peddulwar
Update: 2019-12-10 05:38 GMT
सिंचाई घोटाला: अजित पवार को क्लीन चिट मिलने के बाद ईडी या सीबीआई से जांच कराने की उठ रही मांग

डिजिटल डेस्क, नागपुर। प्रदेश के बहुचर्चित सिंचाई घोटाले में नागपुर और अमरावती एसीबी द्वारा पूर्व उप मुख्यमंत्री अजित पवार को क्लीन चिट देने के बाद याचिकाकर्ता अतुल जगताप ने एसीबी और एसआईटी की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं। याचिकाकर्ता ने हाल ही में नागपुर खंडपीठ में शपथ-पत्र प्रस्तुत कर पवार को क्लीन चिट दिए जाने का विरोध किया है। जांच में विरोधाभास याचिकाकर्ता के अनुसार घोटाले की जांच करने वाली एसीबी और एसआईटी जैसी जांच एजेंसियां हाईकोर्ट के समक्ष खुद की ऐसी तस्वीर प्रस्तुत करने की कोशिश कर रही हैं कि वह बहुत प्रामाणिकता के साथ सही दिशा में जांच कर रही हैं, लेकिन उनके शपथ-पत्रों, कोर्ट के आदेशों और अन्य रिकाॅर्डों पर गौर करने के बाद पता चलता है कि इस मामले में जांच एजेंसियां ठीक से काम नहीं कर रही हैं, न ही सच सामने ला रही हैं। उनकी जांच में कई खामियां हैं। जानबूझ कर मामले में असली दोषियों को बचाने का काम किया जा रहा है। याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से इस पूरे प्रकरण की ईडी या फिर सीबीआई जांच कराने के आदेश जारी करने की प्रार्थना की है। याचिकाकर्ता की ओर से एड. श्रीधर पुरोहित कामकाज देख रहे हैं। पवार को

दी गई थी क्लीन चिट
नागपुर खंडपीठ में प्रस्तुत अपने शपथपत्र में एसीबी नागपुर अधीक्षक रश्मि नांदेडकर और एसीबी अमरावती अधीक्षक श्रीकांत धीवारे ने राहत देते हुए बताया है कि सिंचाई घोटाले में अजित पवार के खिलाफ आपराधिक मामला नहीं बनता है। न ही अपनी जांच में एसीबी ऐसे किसी निष्कर्ष पर पहुंची, जिसमें पवार के ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने की बात सामने आई हो। पवार के जलसंपदा मंत्री होने के कारण घोटाले में उनकी भूमिका की जांच की गई थी। एसीबी के अनुसार जांच समिति ने सभी प्रकार के पहलुओं का अध्ययन किया।

समिति के अनुसार वीआईडीसी के कार्यकारी संचालक या विभाग के सचिव की जिम्मेदारी थी कि टेंडर से जुड़े तमाम पहलुओं का अध्ययन करके मंत्री को रिपोर्ट दें और बताएं कि कहां क्या गड़बड़ी है, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उनके टेंडर में कुछ आपत्ति नहीं ढूंढ़ पाने के कारण ऐसे में तत्कालीन मंत्री अजित पवार का सीधे ठेकेदारों को लाभ पहुंचाने में हाथ था, यह बात सिद्ध नहीं होती। अब तक हुई जांच के अनुसार टेंडर से जुड़ी फाइलों की पड़ताल नहीं की गई। एक कंपनी की ओर से अनेक टेंडर प्रस्ताव भरे गए और कंपनी को ठेका दिया गया। यह सारी लापरवाही प्रशासनिक स्तर पर हुई। इसमें जलसंपदा मंत्री या वीआईडीसी अध्यक्ष की जिम्मेदारी नहीं बनती है।

पूर्व में जिम्मेदार ठहराया था
 27 नवंबर 2018 को एसीबी महासंचालक ने हाईकोर्ट मंे 40 पन्नों का एक शपथ-पत्र दायर किया था, जिसमें अजित पवार को घोटाले का जिम्मेदार ठहराया गया था। 11 नवंबर 2005 के एक दस्तावेज के अनुसार अजित पवार ने विदर्भ के प्रकल्पों को गति देने के लिए फैसलों में जल्दबाजी दिखाते हुए फाइलों को कार्यकारी संचालक से सीधे अपने पास मंगा ली थी। नियमानुसार यह फाइलें पहले सचिव द्वारा जांची जानी थीं। फाइलें सीधे पवार के पास गईं और उन्हें मंजूरी दे दी गई, लेकिन अब नए शपथ-पत्र मंे एसीबी ने अपनी भूमिका बदल ली है।

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