27 सालों से काका चला रहे फ्री कोचिंग, सड़क पर पढ़कर गरीबों के बच्चे बने इंजीनियर, बैंक मैनेजर

27 सालों से काका चला रहे फ्री कोचिंग, सड़क पर पढ़कर गरीबों के बच्चे बने इंजीनियर, बैंक मैनेजर

Anita Peddulwar
Update: 2018-12-21 06:58 GMT
27 सालों से काका चला रहे फ्री कोचिंग, सड़क पर पढ़कर गरीबों के बच्चे बने इंजीनियर, बैंक मैनेजर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। समाज सेवा का कोई अपना विशेष क्षेत्र नहीं होता जिसे जैसा मौका मिले समाज उत्थान में अपना योगदान दे सकता है। समाज सेवा की मिसाल बने हैं रामनगर (पांडराबोडी) हनुमान मंदिर के पास में रहने वाले के.डी. हेट्टेवार  जिन्हें लोग "काका" हेट्टेवार कहकर पुकारते हैं। वे एक ऐसा कोचिंग संस्थान चला रहे हैं, जिसमें 50 से 60 बच्चों को निःशुल्क शिक्षा मिल रही है। इस कोचिंग संस्थान का नाम " निःशुल्क शिकवणी केन्द्र" है। यहां पढ़ाने के लिए और भी टीचर हैं, जो अपनी पढ़ाई के साथ ही गरीब बच्चों को भी पढ़ा रहे हैं। यहां 8 लोग हैं जो अलग-अलग विषय बच्चों को पढ़ाते हैं। यह काम ये लोग सिर्फ सेवा के लिए करते हैं।  

27 साल से चला रहे कोचिंग संस्थान
के.डी. हेट्टेवार 1989 में आरबीआई बैंक से सेवानिवृत्त होकर जब मुंबई से नागपुर आए, तब उनकी बेटी छोटी थी, जिसे वह आंगन में बैठाकर पढ़ाया करते थे। यह देखकर आसपास के छोटे-छोटे बच्चे भी उनसे पढ़ने आने लगे। 1991 में हेट्टेवार 78 बच्चों को पढ़ाते थे। जब इन 78 बच्चों का परीक्षा परिणाम आया, तो सभी परिजनों के चेहरे खिल उठे। कुछ बच्चे तो ऐसे थे, जो 80% और इससे भी ज्यादा अंकों से उत्तीर्ण हुए। तब से हेट्टेवार ने संकल्प किया कि वे सेवा संस्थान शुरू करेंगे। साथ ही यहां पढ़ चुके बच्चे भी अपनी सेवाएं देंगे। कोचिंग संस्थान का सत्र 2 अक्टूबर से 20 मार्च तक चालू रहता है। 

खुले आसमान के नीचे सड़क पर करते हैं पढ़ाई
वर्तमान में रामनगर के पांडराबोडी क्षेत्र में हनुमान मंदिर के पास खुली गली में सड़क पर बच्चों को बैठाकर पढ़ाया जाता है। दीवारों पर ब्लैक बोर्ड लटकाए गए हैं। यहां तीसरी से नौवीं कक्षा के विद्यार्थियों को एक साथ पढ़ाया जाता है। इसका समय शाम 6:30 से 8:30 तक रहता है।

गरीब परिवार के बच्चे आते हैं पढ़ने
इस संस्थान में ऐसे बच्चे पढ़ने आते हैं, जिनके पिता पानठेला चलाते हैं, तो कोई ऑटो चलाता है। किसी के मां-बाप सब्जी का ठेला, तो कोई मजदूरी करता है। इनमें कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जिनके पिता नहीं हैं, उनकी मां घरों में काम करके बच्चों को पढ़ाती हैं। 

सीखो और सिखाओ है लक्ष्य                             
हेट्टेवार बताते हैं कि ऐसे गरीब लोग जो अपने बच्चों का स्कूल में दाखिला तो करवा देते हैं, लेकिन कोचिंग की फीस की व्यवस्था नहीं कर पाते। ऐसे बच्चों की सहायता करना वे अपना दायित्व समझते हैं। सीखो और सिखाओ की विचारधारा के साथ काम कर रहे हेट्टेवार ने मराठी भाषा में इसका स्लोगन भी बनाया हैं। ‘शिकु आणि शिकवू’ निःशुल्क शिकवणी केंद्र से पढ़कर निकलने वाले कुछ ऐसे होनहार छात्र भी हैं, जो आज बड़े पदों पर हैं। छात्र प्रशांत पठाड़े, आईआईटी, इंजीनियर, पंकज चिखले, एसबीआई बैंक मैनेजर, बादल मांढरे, पुलिस की नौकरी कर रहे हैं।
 

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