कल्पवृक्ष महुए की यहां है बहार, लोगों को मिल रहा रोजगार

कल्पवृक्ष महुए की यहां है बहार, लोगों को मिल रहा रोजगार

Anita Peddulwar
Update: 2018-04-05 06:04 GMT
कल्पवृक्ष महुए की यहां है बहार, लोगों को मिल रहा रोजगार

डिजिटल डेस्क,भंडारा।  महुए के फूल का नाम लेते ही लोगों के जेहन में सबसे पहले महुए से बननेवाली शराब का ही खयाल आता है किंतु यही महुआ फूल ग्रामीणों को ऐसे समय में रोजगार देता है जब वे बेरोजगार होते हैं क्योंकि इससे केवल शराब ही नहीं बनती बल्कि औषधियों के निर्माण में भी महुआ अहम भूमिका निभाता है। ग्रीष्मकाल के दौरान खेतिहर मजदूरों को जब काम नहीं मिलता तो वे महुआ एकत्रित कर इसे बेचने का कार्य करते हैं। वहीं इसके संग्रहण पर सरकार द्वारा लगाई गई पाबंदी यदि हटा दी जाती है तो यही महुआ फूल ग्रामीणों को वर्षभर रोजगार मिल सकता है। पूर्व विदर्भ के भंडारा व गोंदिया जिले में महुए को रानमेवा कहा जाता है जबकि यह  विदर्भवासियों के लिए कल्पवृक्ष से कम नहीं। 

पीढ़ियों से करते आ रहे हैं मुहुआ चुनने का काम
कई पीढिय़ों से यहां के किसान व खेतिहर मजदूर  महुए का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करते आ रहे हैं। गीष्म्रकाल में महुआ फूल के संग्रहण से किसानों को मौसमी रोजगार प्राप्त होता है। मार्च माह आरंभ होते ही महुआ फूल बीनने की शुरुआत हो जाती है। भंडारा तथा गोंदिया जिला यह जंगलों से घिरा होने के साथ ही यहां के जंगलों में महुए के अनगिनत पेड़ हैं जिनमें से 10 प्रतिशत पेड़ जंगल परिसर में हैं जबकि शेष  खेती की भूमि पर।  महुए के पेड़ पर जनवरी से मई माह के अंत तक फूल लगते हंै। यह फूल पेड़ से तोडऩे की आवश्यकता नहीं होती। इस मौसम में यह फूल रात्रि के समय अपनेआप ही वृक्ष से झड़ जाते हैं जिस कारण ग्रामीण तड़के चार बजे से ही फूल संकलन के लिए निकल जाते हंै। पेड़ के नीचे गिरे फूलों का संग्रहण कर उसे सुखाकर फूलों की ब्रिकी की जाती है। दोनों जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिवर्ष महुआ बिक्री के माध्यम से करोड़ो रुपए का व्यवहार हो जाता है। 

बनते हैं पत्तल भी
महुए के पेड़ यह पूर्व विदर्भ के नागरिकों के लिए व किसानों के लिए कल्पवृक्ष से कम नहीं है क्योंकि  जहां इस पेड़ के फूल बिकते हैं वहीं इस पेड़ की पत्तियां भी काम आती हैं। इस पेड़ के पत्तियों से ही पत्तलों का निर्माण होता है। इसके फूलों से तेल भी निकाला जाता हैं। साथ ही यह पेड़ प्राकृतिर्क रूप से काफी बड़े होते हैं। इस पेड़ को खाद, पानी की भी आवश्यकता नहीं होती। इसी कारण इन जिलों में महुए के पेड़ नागरिकों व किसानों की आय के महत्वपूर्ण साधन हैं। महुआ फूल से तैयार किए गए राब का उपयोग प्राचीन लोग भोजन में किया करते थे। इस राब से लड्डू, पपड़ी, आचार आदि खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं। यही नहीं इससे बनने वाला शरबत ग्रीष्मकाल में शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है। यह महुआ फूल जितना इंसानों के लिए लाभदायक हैं उतने ही मवेशियों के लिए भी उपयुक्त हैं। गाय, बैल, भैंस आदि पालतु जानवरों को महुआ खिलाया जाता है। फिलहाल महुआ फूल का संकलन किया जा सकता है किंतु इसके संग्रहण व परिवहन पर सरकार की ओर से पाबंदी लगाई गई है।

उद्योग निर्माण से दूर हो सकती है बेरोजगारी
महुआ फूल दवायुक्त होने के कारण इस पर प्रक्रिया उद्योग शुरू कर इससे स्थानीय नागरिकों को बड़े पैमाने पर रोजगार प्राप्त हो सकता है। यदि इस पर से पाबंदी हटा दी जाए तो ग्रामीणों को पूरे वर्ष इससे बननेवाली वस्तुओं के माध्यम से आय प्राप्त हो सकती है, यानी पूरे वर्ष रोजगार मिल सकता है।  छत्तीसगढ़ तथा मध्यप्रदेश में महुआ फूल पर प्रक्रिया कर उद्योग शुरू किए गए हैं जिस कारण स्थानीय नागरिकों को रोजगार मिल रहा है। पूर्व विदर्भ में महुआ फूल से दवा तैयार करने वाले या अन्य खाद्य पदार्थों के निर्माण के कारखाने यदि खुलते हैं तो इस क्षेत्र के नागरिकों के लिए भी पूरे वर्ष के लिए रोजगार का साधन मिल जाएगा। इस प्रकार के कारखानों को सरकार से यदि मंजूरी मिलती है तो हर दृष्टि से पिछड़े गोंदिया-भंडारा जिले के हालात में काफी हद तक सुधार हो सकता है।


 

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