मालेगांव विस्फोट : NIA कोर्ट से बांबे हाईकोर्ट नाराज, कहा- फोटोकॉपी को सबूत नहीं मानना चाहिए था

 मालेगांव विस्फोट : NIA कोर्ट से बांबे हाईकोर्ट नाराज, कहा- फोटोकॉपी को सबूत नहीं मानना चाहिए था

Tejinder Singh
Update: 2019-01-23 14:09 GMT
 मालेगांव विस्फोट : NIA कोर्ट से बांबे हाईकोर्ट नाराज, कहा- फोटोकॉपी को सबूत नहीं मानना चाहिए था

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत को मालेगांव बम धमाके के गवाहों के बयान व आरोपियों के इकबालिया बयान की छायांकित प्रति यानि फोटोकॉपी को सबूत (सेकेंडरी इविडेंस) के रुप में नहीं स्वीकार करना चाहिए था। हाईकोर्ट ने बुधवार को मामले को लेकर निचली अदालत के फैसले पर अप्रसन्नता जाहिर की। 

न्यायमूर्ति अभय ओक व न्यायमूर्ति अजय गड़करी की खंडपीठ ने कहा कि एनआईए ने मामले को लेकर कोर्ट में गवाहों के बयानों की सत्यापित प्रति तो पेश कर दी लेकिन यह नहीं साबित किया कि यह प्रति मूल प्रति की ही फोटोकॉपी है। एनआईए के अनुसार गवाहों के बयान व आरोपियों के इकबालिया बयान की मूल प्रति खो गई है। 

खंडपीठ ने एनआईए से सवाल करते हुए कहा कि किसने मूल प्रति से फोटोकॉपी निकाली है। फोटोकॉपी निकालने वालों से क्या किसी तरह की पूछताछ कि गई है? एनआईए को कैसे पता चला है कि जो प्रति उसके पास है, वह मूल प्रति की फोटोकॉपी ही है? इसलिए एनआईए कोर्ट को छायाकिंत प्रति को तब तक सबूत के तौर पर नहीं स्वीकार करना चाहिए था जब तक की उसकी प्रामाणिकता की पुष्टि न हो जाए। 

जनवरी 2017 में एनआईए कोर्ट ने गवाहों के बयान के छायाकिंत प्रति को सबूत के तौर पर स्वीकार किया था। इसके खिलाफ आरोपी समीर कुलकर्णी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 5 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी है। गौरतलब है कि साल 2008 में मालेगांव में हुए बम धमाके में 6 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 100 लोग घायल हो गए थे। 

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