मराठी साहित्य सम्मेलन : खुदकुशी करने वाले किसान की पत्नी ने कहा- हम जैसी महिलाओं का संघर्ष क्यों नहीं दिखाई देता ? 

मराठी साहित्य सम्मेलन : खुदकुशी करने वाले किसान की पत्नी ने कहा- हम जैसी महिलाओं का संघर्ष क्यों नहीं दिखाई देता ? 

Tejinder Singh
Update: 2019-01-11 16:24 GMT
मराठी साहित्य सम्मेलन : खुदकुशी करने वाले किसान की पत्नी ने कहा- हम जैसी महिलाओं का संघर्ष क्यों नहीं दिखाई देता ? 

डिजिटल डेस्क, यवतमाल। कृषक विधवा कलंब तहसील की राजुर निवासी वैशाली सुधाकर येडे ने मराठी साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस मौके पर उन्होंने कहा कि मैंने साहित्य ज्यादा पढ़ा नहीं है लेकिन इंसान को परखना जानती हूं और इंसान को पहचानने की कला किताब पढ़ने से नहीं आती, उसके लिए इंसानों के बीच ही रहना पड़ता है। फिर भी साहित्य से जीने का बल अवश्य मिलता है। मुझे मिला वैधव्य यह व्यवस्था की सौगात है। पति की आत्महत्या के बाद  जीवन से जूझते हुए घाटे की खेती को फायदे में लाने का प्रयास कर रही हूं। किसान आत्महत्या को लेकर सभी आंसू बहाते हैं लेकिन हम जैसी महिलाओं का जीने का संघर्ष किसी को क्यों नहीं दिखाई देता। साहित्यकार पुस्तक लिखते हैं, उन्हें पुरस्कार मिलता है लेकिन किसान और लेखक की हालत समान है। दोनों को कभी भाव नहीं मिलता जिसकी चर्चा इस सम्मेलन में होगी, ऐसी उम्मीद है। 

पोस्टल ग्राऊंड में आरंभ हुए ९२ वें अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ जब किसी भूमिपुत्र की विधवा को साहित्य सम्मेलन का उद्घाटन करने का सम्मान मिला हो। इस समय साहित्य सम्मेलन की अध्यक्ष डा.अरुणा ढेरे, शिक्षा व सांस्कृतिक कार्यमंत्री विनोद तावडे, पालकमंत्री तथा स्वागताध्यक्ष मदन येरावार, साहित्य सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख, साहित्य महामंडल की अध्यक्ष डा. विद्या देवधर, कार्याध्यक्ष डा. रमाकांत कोलते आदि मंचासीन थे। सम्मेलन की प्रस्तावना कार्याध्यक्ष डा. रमाकांत कोलते ने रखी। उन्होंने कहा कि, यवतमाल में ४५ वर्ष मराठी साहित्य सम्मेलन हुआ था और अब फिर से ९२वें साहित्य सम्मेलन की मेजबानी का सौभाग्य यवतमाल को प्राप्त हुआ है  जिसके लिए मैं मराठी साहित्य महामंडल का आभारी हूं।

आगे उन्होंने कहा कि, भविष्य में हम रहें न रहें, आनेवाली पीढ़ी इस सम्मेलन को जरूर याद रखेगी। इस समय मराठी साहित्य महामंडल की अध्यक्ष डा. विद्या देवधर ने अपने संबोधन में मराठी साहित्य महामंडल द्वारा देश-विदेश में मराठी भाषा के प्रसार व संवर्धन के लिए किए जा रहे कार्यों का लेखाजोखा रखा। उन्होंने कहा, मराठी साहित्य महामंडल का कार्य केवल महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, आंध्र प्रदेश, तेलंगना, राजस्थान व दिल्ली तक में चल रहा है। इससे पूर्व इंदौर, जबलपुर, बड़ोदा आदि हिंदी भाषीय क्षेत्रों में भी यह सम्मेलन हुए हैं। अंकुर साहित्य संघ की अध्यक्ष विद्या खडसे ने मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, सांसद तथा पूर्व केंद्रीय कृषिमंत्री शरद पवार आदि के शुभकामना संदेश पढ़कर सुनाए।

नगराध्यक्ष कांचन चौधरी ने इतने भव्य स्तर पर शहर में सम्मेलन का आयोजन करने के लिए आयोजकों तथा पालकमंत्री का आभार माना। सम्मेलन का उद्घाटन साहित्यकार नयनतारा सहगल के भाषण से होना था औरपूर्व अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने जब सहगल के अंगरेजी में लिखे भाषण के मराठी अनुवाद का कुछ अंश पढ़कर सुनाया तो आयोजकों के होश उड़ गए। इस समय देशमुख ने अपने भाषण में खुलकर विचार रखते हुए कहा कि, मैं नयनतारा सहगल के विचारों का समर्थन करता हूं और उन्हें भेजा गया निमंत्रण वापिस लिया गया इसका निषेध करता हूं। उन्होंने यह भी कहा कि, साहित्य क्षेत्र में नयनताराजी का योगदान भुलाया नहीं जा सकता।

साहित्य क्षेत्र में लेखकों की अभिव्यक्ति के लिए उनके कार्य स्मरणीय हैं। नयनतारा सहगल हों, बशीर अहमद हों या फिर नसीरुद्दीन शाह, किसी को भी अपने विचार रखने से रोकने का प्रयास करना या दबाव में आकर इस तरह के निर्णय लेना लोकतंत्र में दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि, ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण  के लिए मराठी साहित्य महामंडल को बगैर सरकारी चंदा लिए सम्मेलन के आयोजन का प्रयास करना चाहिए। सीमा शेटे (रोटे) ने साहित्य सम्मेलन का संचालन कर उपस्थितों का आभार माना।

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