महाराष्ट्र के इस गांव में नाबालिग नहीं कर सकेंगे मोबाइल का इस्तेमाल, नहीं तो लगेगा फाइन

अजब फैसला महाराष्ट्र के इस गांव में नाबालिग नहीं कर सकेंगे मोबाइल का इस्तेमाल, नहीं तो लगेगा फाइन

Tejinder Singh
Update: 2022-11-15 15:41 GMT
महाराष्ट्र के इस गांव में नाबालिग नहीं कर सकेंगे मोबाइल का इस्तेमाल, नहीं तो लगेगा फाइन

डिजिटल डेस्क, यवतमाल, हरिप्रसाद विश्वकर्मा। बच्चों में मोबाइल का एडिक्शन बढ़ता ही जा रहा है और परिजन भी बच्चों की जिद के आगे मजबूर से नजर आते हैं, लेकिन महाराष्ट्र के बांसी गांव में कुछ ऐसा हुआ, जो किसी ने सोचा न होगा। ग्राम पंचायत ने बच्चों के मोबाइल इस्तेमाल करने पर प्रतिबंध ही लगा दिया है। इसके साथ ही सख्त हिदायत दी गई है कि यदी नाबालिगों के हाथ में मोबाइल दिखा, तो खामियाजा परिवारवालों को जुर्माना चुकाकर भरना पड़ सकता है। 

ग्राम पंचायत अपने अनोखे फैसले के कारण चर्चा में बनी है। ग्राम पंचायत ने 11 नवंबर को ग्रामसभा का आयोजन कर नाबालिगों के मोबाइल इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी। 18 वर्ष के कम उम्र के बच्चे मोबाइल का उपयोग नहीं कर सकते। सभा में गांव के अध्यापकों, ग्रामीणों और अभिभावकों के साथ सरपंच की दो घंटे तक बैठक हुई। जिसमें कहा गया कि ऑनलाइन क्लासेस शुरू नहीं होने के बावजूद बच्चे दिन-रात मोबाइल से चिपके रहते हैं। यह लत बच्चों का भविष्य बर्बाद कर रही है। सरपंच गजानन टाले ने कहा कि ग्रामीणों की मांग पर बच्चों का भविष्य सुधारने के लिए यह निर्णय लिया गया है। इसके खिलाफ बच्चे मोबाइल का उपयोग करेंगे, तो देना होगा जुर्माना और मकानों का टैक्स भी बढ़ा देंगे।  

मोबाइल की लत में बच्चों को खाने-पीने की भी सुध नहीं  

सरपंच गजानन टाले ने कहा कि सबसे पहले गांव की जिला परिषद स्कूल के अध्यापक उनके पास आए थे, जिसमें उन्होंने बताया कि कोरोनाकाल में बच्चे स्कूल नहीं आ पा रहे थे, इसलिए ऑनलाइन कक्षा ली जा रही थी। उसी समय से मोबाइल की लत बच्चों को लग गई है। बच्चे मोबाइल से पढ़ाई करने की बजाय गेम खेल रहे हैं। साथ ही ऐसी चीजें भी देख रहे हैं जो उन्हें नहीं देखनी चाहिए। मोबाइल की लत में खाने-पीने की सुध नहीं रहती। पढ़ाई नहीं करते और घर के काम भी न के बराबर करते हैं।   

मानसिकता बिगड़ रही 

ग्राम पंचायत की सभा में बताया गया कि कक्षा 4थीं और 5वीं के बच्चों के बारे में सर्वाधिक शिकायतें हैं। बच्चों की मानसिकता मोबाइल के कारण बिगड़ती जा रही है। 

शिक्षकों ने बताया मोबाइल के लिए रोते हैं बच्चे

अध्यापकों ने बताया था कि कोरोना के बाद ऑनलाइन पढ़ाई नहीं होने के बावजूद बच्चे मोबाइल से चिपके रहते हैं। माेबाइल के लिए रोते हैं । पढ़ाई में वे पिछड़ते जा रहे हैं, जिससे यह विषय सरपंच तक पहुंचा। इस गांव की जनसंख्या 3 हजार है, जिसमें विद्यार्थियों की संख्या 350 से 400 है। गांव में एक हाईस्कूल, 2 जिला परिषद की प्राथमिक स्कूलें हैं। यहां पढ़नेवाले बच्चे कोरोना के पहले पढ़ाई में अच्छे नंबर लाते थे, लेकिन अब वे पिछड़ गए हैं। इस ग्रामसभा की अध्यक्षता गांव के युवा सरपंच गजानन टाले ने की। 

गजानन टाले ने बताया कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अब मोबाइल का उपयोग नहीं कर पाएंगे। यदि कोई बच्चा मोबाइल का उपयोग करता है जुर्माना लगाया जाएगा।  मकान टैक्स बढ़ाया जाएगा। बच्चाें की काउंसिलिंग की जाएगी। 

स्क्रीन टाइम की ललक भी खराब 

नागपुर के जानेमाने बाल रोग डॉक्टर उदय बोधनकर ने कहा कि बच्चे जितनी फिजिकल एक्टिविटी करेंगे, उतनी ही स्क्रीन टाइम की ललक कम होगी। अच्छा है कि बच्चों को खेलने के लिए मोटिवेट करना चाहिए। उन्हें स्पोर्ट्स, आउटडोर, ट्रैकिंग, डांस, सिंगिंग और दोस्तों के साथ बाहर जाने के लिए कहना चाहिए। जब आस-पास बाहर जाएं, तब मोबाइल न ले जाएं, अगर ले गए तो ऑफलाइन मोड पर रखें। बच्चों को पढ़ने के लिए फिजिकल बुक्स देनी चाहिए।

समझने वाली बात

एक अध्ययन में पाया गया कि स्क्रीन टाइम के उपयोग से डोपमीन का स्राव उसी तरह होता है, जैसे कोकीन जैसी दवाएं मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं, हालांकि इनका असर ड्रग्ज जैसा भी खतरनाक नहीं होगा। ब्रेन में इन चेंज से पढ़ाई में ध्यान न लगना, याद रखने में कठिनाई, सोचने, पढ़ने और गहरे स्तर पर लिखने की क्षमता में भी खासा परिवर्तन हो सकता है।

एक पहलू यह भी

देखा जाए तो मोबाइल से बच्चों को जानकारी भी मिलती है, बच्चे यूट्यूब और गूगल की मदद से कई तरह की जानकारी जुटा लेते हैं, ऐसे में इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि बच्चों के हाथ कोई गलत बात न लग जाए, बच्चे अडल्ट कंटेंट तो नहीं देख रहे हैं, परिजन को इस बात की जानकारी भी रखनी जरूरी है। समय समय पर बच्चों का मोबाइल चेक करते रहना जरूरी 

 

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