जिंदगीभर न भूल पाएंगे केरल की वो बरसात... NDRF टीम ने साझा किए अनुभव

जिंदगीभर न भूल पाएंगे केरल की वो बरसात... NDRF टीम ने साझा किए अनुभव

Anita Peddulwar
Update: 2018-08-24 10:09 GMT
जिंदगीभर न भूल पाएंगे केरल की वो बरसात... NDRF टीम ने साझा किए अनुभव

डिजिटल डेस्क, चंद्रपुर। हम ऐसी जगह रेस्क्यू करने गए, जहां बोट चलाना काफी मुश्किल था। बिजली के बड़े-बड़े टॉवर और खम्भे गिरे हुए थे, बोट उठाकर हमें जाना पड़ रहा था। कई बार बोट पंक्चर हो जाया करती थी। पानी का बहाव तेज होने के कारण भी बचाव कार्य में काफी दिक्कतें आ रही थीं, लेकिन जब बुजुर्गों, बच्चों, महिलाओं की बेबसी को देखते तो बस एक ही लक्ष्य दिखाई देता कि किसी भी स्थिति में इन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाना है और दोगुने जोश के साथ हम कार्य में जुट जाते। लगभग एक सप्ताह तक भीगे वस्त्रों में यह चुनौतीपूर्ण कार्य हमने किया। आज जब उन पलों को याद करते हैं तो सिहर उठते हैं। यह पल अब गुजर चुके हैं, लेकिन फिर भी जेहन में रह-रहकर वह दृश्य कौंध जाते हैं। संभवत: ताउम्र हम केरल की इन भयावह स्थितियों को न भूल पाएं। यह जानकारी दी एनडीआरएफ टीम में शामिल घुग्घुस के जवान प्रवीण घोरपड़े ने।

केरल में आयी बाढ़ के दौरान बचाव कार्य के लिए पहुंचे घोरपड़े ने अपने अनुभव साझा करते हुए केरल में बाढ़ के कारण उपजी भयावह स्थिति जब बयां की तो सुनने वालों के रोंगटे खड़े हो गए। उन्होंने बताया कि, उनकी टीम ने करीब 2 हजार लोगों को सुरक्षित स्थल पर पहुंचाने में सफलता पायी। जिनमें से 500 से 600 लोगों को बचाने का श्रेय महाराष्ट्र के चार जवानों को जाता है। महाराष्ट्र के इन जवानों में चंद्रपुर जिले के मेजर प्रवीण घोरपड़े के साथ नगर जिले के निवासी मेजर सदाशिव वाघ, जालना जिले के मेजर बबन बोर्डे, सोलापुर जिले के मेजर नामदेव आगलावे का समावेश था। इनके अलावा लेफ्टनंट कमांडर अभिजीत गरूड ने हेलीकाप्टर से 23 नागरिकों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया।

उन्होंने बताया कि केरल में बाढ़ से उपजी स्थिति से निपटने हमें भेजा गया था। 10 अगस्त को हम एरनाकुलम जिले के अलुवा पहुंचे। एनडीआरएफ की एक टीम में 30 जवान थे, जिसमें हम चारों का भी समावेश था। टीवी पर बाढ़ के भयावह दृश्य देख हमारे परिजन चिंतित हो रहे थे। कई बार उनके मोबाइल पर फोन आते और हमारी बात भी नहीं हो पाती। जब हमारी बोट पंक्चर होती तो हमें वापस अपने स्थान पर आना पड़ता। उसी समय एक-दो मिनट घरवालों से बात हो पाती। घोरपड़े ने बताया कि, गत 5 वर्ष से एनडीआरएफ की टीम में हूं और इन पांच सालों में कई अनुभव आए, लेकिन केरल का वह मंजर मैं कभी भी भूल नहीं पाऊंगा।  कमांडर गणेश प्रसाद के नेतृत्व में हमारी टीम जी-जान से राहत कार्य में जुटी रही। 

बेटे का फोन आया तो आयी जान में जान 
जैसे ही हमारे बेटे ने हमें फोन करके बताया कि वह केरल जा रहा है तो हमें चिंता होने लगी थी। दो-चार दिन उसका फोन नहीं आया तो मेरी पत्नी, बेटी और घर के अन्य सदस्य रोने लगे थे। जब उसका  उसका फोन आया तब कहीं हमारी जान में जान आयी। उसने वहां के हालात से अवगत करवाया। विपरीत परिस्थितियों और खान-पान के चलते उसकी भी तबीयत बिगड़ गई थी। हालांकि उसने और उसकी टीम ने जो कर दिखाया है उस पर हमें गर्व है। 
( रमेश घोरपड़े, मेजर प्रवीण घोरपड़े के पिता)

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